Raipur. रायपुर। 1997 बैच के प्रिंसिपल सिकरेट्री रैंक के आईएएस सुबोध सिंह दिल्ली से लौट रहे हैं। भारत सरकार ने उनका आदेश जारी कर दिया है। आदेश में स्पष्ट लिखा है...छत्तीसगढ़ सरकार के आग्रह पर उन्हें भेजा जा रहा है। चूकि हायर लेवल के निर्देश के बाद उन्हें छत्तीसगढ़़ भेजने का आदेश हुआ है, इसलिए आजकल में कभी भी वे इस्पात मिनिस्ट्री से रिलीव हो जाएंगे। हो सकता है अगले सप्ताह वे रायपुर भी पहुंच जाएं। पता चला है, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दो दिन के छत्तीसगढ़ दौरे में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सुबोध को भेजने के संदर्भ में आग्रह किया था। अमित शाह दो दिन का दौरा खतम कर 16 दिसंबर की देर रात रायपुर से दिल्ली रवाना हुए और 17 दिसंबर को सुबोध सिंह का आदेश निकल गया। ठीक उसी तरह जिस तरह सीएम के आग्रह के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शनिवार अवकाश का दिन होने के बाद भी आईपीएस अमरेश मिश्रा को छत्तीसगढ़ लौटने का आदेश जारी कर दिया था। चूकि अमित शाह का निर्देश था, अमरेश ने भी देर नहीं लगाई। रिलीव होते ही अगले दिन रविवार शाम रायपुर आए और सोमवार को ज्वाईनिंग दे दी थी। अमरेश को बुलाकर लाया गया, इसलिए उन्हें एसीबी चीफ बनाने के साथ ही रायपुर रेंज आईजी का अहम दायित्व सौंपा गया। जाहिर सी बात है, जब मुख्यमंत्री किसी अफसर को केंद्र से बुलाए तो उसका मकसद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देना ही होता है। छत्तीसगढ़
आईएएस सुबोध सिंह को प्रदेश के सबसे बड़े पावर सेंटर मुख्यमंत्री सचिवालय में प्रमुख सचिव बनाने की खबरें आ रही हैं। याने पीएस टू सीएम। सीएम सचिवालय में इस समय तीन सिकरेट्री हैं। पी0 दयानंद, राहुल भगत और बसव राजू। मुख्यमंत्री के शपथ लेने के बाद सबसे पहली पोस्टिंग दयानंद की हुई थी, उनके बार राहुल की और फिर बसव की। सीएम सचिवालय में काम के हिसाब से शुरू से ही ये माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री अपने सचिवालय में अफसरों की संख्या और बढ़ाएंगे। क्योंकि, वहां काम इतना है कि इन तीनों अफसरों को सांस लेने की फुरसत नहीं मिलती। आधी रात तक सीएम हाउस की वर्किंग चलती रहती है। आमतौर पर सीएम सचिवालयों में एक प्रमुख सचिव या अपर मुख्य सचिव का अफसर होता ही है, उसके बाद भी सिकरेट्री की अच्छी-खासी संख्या होती हैं। डॉ0 रमन सिंह के सचिवालय में बैजेंद्र कुमार एसीएस थे। उनके बाद अमन सिंह प्रमुख सचिव। सुबोध सिंह और एमके त्यागी सिकरेट्री थे। समय-समय पर रोहित यादव, मुकेश बंसल और रजत कुमार ज्वाइंट सिकरेट्री रहे। सलाहकार के तौर पर रिटायर्ड चीफ सिकरेट्री शिवराज सिंह अलग से थे। जब कोई जटिल मामला फंसता था, जिसमें दीर्घ प्रशासनिक अनुभव की जरूरत होती थी, तब बैजेंद्र, अमन और सुबोध उसे शिवराज सिंह के पास ले जाते थे।
सीएम सचिवालयों में सचिवों की संख्या इसलिए अधिक होती है कि प्रदेश का सबसे बड़ा पावर सेंटर सीएम का आफिस होता है। सीएम सचिवालय के पास सारे विभागों की फाइलें तो आती ही है, मुख्यमंत्री के विभाग, उनके गृह जिला, पीएमओ या केंद्र सरकार के विभागों से समन्वय, प्रदेश के संवेदनशील मामले से लेकर राजनीतिक मामले भी आते हैं। मुख्यमंत्री से किसे मिलवाना है, उनका कार्यक्रम, भाषण से लेकर मुख्यमंत्री की छबि और उन्हें विवादित मामलों से बचाने का जिम्मेदारी भी सीएम सचिवालय की होती है। मुख्यमंत्री को मामलों से बचाने की जिम्मेदारी का मतलब मुख्यमंत्री के पास भांति-भांति की फाइलें आती हैं। मुख्यमंत्री के पास इतने वक्त नहीं होते कि वे सारी फाइलों को पढ़े या नियम-कायदों की स्टडी करें। सचिवालय के अफसर ही उन्हें सलाह देते हैं। सुबोध सिंह के सीएम के पीएस बनने से मुख्यमंत्री सचिवालय का न केवल वर्क लोड कम होगा बल्कि विष्णुदेव का आफिस ताकतवर बनेगा। सुबोध सिंह पहले भी रमन सचिवालय में ज्वाइंट सिकरेट्री से लेकर स्पेशल सिकरेट्री, सिकरेट्री रहे हैं। सीएम सचिवालय का उन्हें करीब आठ साल का अनुभव है। सुबोध को पोस्टिंग मिलने पर सीएम सचिवालय में सिकरेट्री की संख्या चार हो जाएगी। याने वन प्लस थ्री। एक पीएस और तीन सिकरेट्री। ये आदर्श संख्या होगी। विवादित