गरीब के होनहार बच्चों को प्राइवेट स्कूल में प्रवेश नहीं देने का मामला, शासन से जवाब तलब

Update: 2024-07-28 06:25 GMT

बिलासपुर bilaspur news । प्रदेश के प्रमुख निजी स्कूलों में शिक्षा के अधिकार (आरटीई) एक्ट के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के बच्चों को प्रवेश न मिलने पर हाईकोर्ट ने राज्य शासन से जवाब तलब किया है। इस मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को निर्धारित की गई है। भिलाई के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सीवी भगवंत राय ने एडवोकेट देवर्षि सिंह के माध्यम से शिक्षा के अधिकार को लेकर एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में पेश की थी। याचिका में कहा गया कि आरटीई एक्ट के तहत 25 प्रतिशत सीटें ईडब्ल्यूएस के बच्चों के लिए निजी स्कूलों में आरक्षित की जानी चाहिए। यदि एक किलोमीटर की परिधि में स्थित स्कूलों में प्रवेश नहीं मिल पा रहा हो तो तीन किलोमीटर या अधिक के दायरे में स्थित स्कूलों में प्रवेश दिया जाना चाहिए। chhattisgarh

chhattisgarh news इस मामले में पहले चार दर्जन निजी स्कूलों को पक्षकार बनाया गया था और हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया था। सभी पक्षों ने अपने जवाब पेश किए थे। निजी स्कूलों की ओर से हाईकोर्ट में कहा गया कि वे आरटीई एक्ट के प्रावधानों का पूरा पालन कर रहे हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त आवेदन नहीं मिल रहे हैं। जो आवेदन प्राप्त होते हैं, उनके आधार पर प्रवेश दिया जाता है। याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में आरटीई एक्ट के तहत रिक्त 59 हजार सीटों के लिए करीब एक लाख 22 हजार आवेदन प्राप्त हुए हैं। रायपुर जिले में ही 5 हजार सीटों के लिए 19 हजार प्रवेश आवेदन प्राप्त हुए हैं।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने राज्य शासन से जानना चाहा कि अब तक कितने बच्चों को एडमिशन मिला है। शासन से विस्तृत जवाब मांगते हुए अगली सुनवाई 30 जुलाई को रखी गई है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि शीर्ष 19 स्कूलों में, जिनमें राजकुमार कॉलेज, डीएवी, डीपीएस समेत कई बड़े स्कूल शामिल हैं, केवल 3 प्रतिशत ही प्रवेश हो रहे हैं। बहस में बताया गया कि शासन के नोडल अधिकारी कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं। आरटीई एक्ट के तहत सभी निजी स्कूलों को ईडब्ल्यूएस के बच्चों को प्रवेश देना आवश्यक है। राज्य की जनसंख्या के हिसाब से, इस दस प्रतिशत में करीब 34 लाख लोग आते हैं। यदि आरटीई एक्ट का सही तरीके से पालन हो, तो करीब 3 लाख तक की आय वाले निजी कर्मचारी, दुकानदार, और चतुर्थ श्रेणी के कई शासकीय कर्मचारी भी इस दायरे में आ सकते हैं।


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