- जनता से रिश्ता की खबर सच साबित हुई, खम्हारडीह के बाद डंूडा में भी सरकारी जमीन पर खेल
- जनता से रिश्ता लगातार लिख रहा था, अब प्रशासन ने लिया संज्ञान
- आरटीआई एवं सामजिक कार्यकर्ता ने शासकीय जमीन पर अवैध कब्जा हटाने की मांग की - आरटीआई कार्यकर्ता एवं समाजिक कार्यकर्ता अब्दुल वाहिद ने राजस्व सचिव को पत्र लिखकर मांग की कि रायपुर स्थित ग्राम सरोना में करोड़ों की कीमत वाली शासकीय भूमि पर भू माफियाओं द्वारा अवैध रूप से कब्जा किया जाकर निर्माण किया जा रहा है। जिसका खसरा नं. 245/1 रकबा 4.913 हे. एव 245/35 रकबा 2.205हे है। उन्होनें मांग की कि संबंधित अधिकारी को निर्देशित करें कि उपरोक्त शासकीय भूमि पर किए गए अवैध कब्जे को तत्काल हटाया जाकर शासकीय जमीन को सुरक्षित रखा जाए।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। जनता से रिश्ता लगातार बिल्डरों की कारगुजारियों को उजागर कर शासन-प्रशासन के संज्ञान में सरकारी जमीन के कब्जे करने के दुस्साहस को प्रकाशित कर रहा है। जिस पर राजस्व विभाग ने कार्रवाई कर जनता से रिश्ता की खबर की सच्चाई पर मुहर लगा दी है। राजधानी के शातिर बिल्डर आउटरों और सरकारी योजना से जुड़े प्रोजेक्ट में सरकारी घासभूमि, कोटवारी भूमि की जानकारी अपने सोर्स से निकलवा लेते है, फिर उस पर प्लानिंग के तहत उसके आसपास की जमीन खरीदते है जिससे सरकारी जमीन को घेरते बन जाए। यह खेल पिछले कई सालों से तहसीलदार, पटवारी,आरआई,नगर निगम, टाउन कंट्री प्लानिंग विभाग अधिकारियों से सांठगांठ कर से सांठगांठ कर सरकारी जमीन से जुड़े मामले में नक्शा खसरा निकाल कर उसे कब्जाने दुस्साहस करते है। सरकारी जमीन और कमल बिहार की जमीन पर कब्जा करने वाले बिल्डर पर राजस्व विभाग ने ताबड़तोड़ कार्रवाई कर बिल्डरों में हड़कंप मचा दिया है। शिकायत मिलन पर रायपुर तहसीलदार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई के निर्देश दिए। ,पुलिस की मदद से राजस्व विभाग की टीम ने बुलडोजर चलाकार कब्जा तोड़ दिया। आरडीए के डायरेक्टर पप्पू बंजारे ने बताया कि कब्जे की शिकायत के बाद राजस्व विभाग से सीमांकन कराया गया। सीमांकन रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि डूंडा स्थित शसकीय भूमि और आरडीए की कमल बिहार स्थित भूमि पर अलास्का इंफ्रास्ट्रक्चर व्दारा कब्जा पाया गया था। इस पर अतिरिक्त तहसीलदार ने कब्जा हटाने का आदेश जारी किया। राजस्व विभाग आरडीए और पुलिस की उपस्थिति में कब्जा हटाने की कार्रवाई की गई। अलास्का इंफ्रास्ट्रक्चर ने लगभग 50 हजार वर्गफीट शासकीय जमीन में औैर 75 हजार वर्गफीट रायपुर विकास प्राधिकरण की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा था।
बिल्डर ने बेची सरकारी जमीन, बस गई कॉलोनी : डूंडा के पास कमल विहार और उससे सटी सरकारी जमीन को बिल्डर ने 10 साल पहले बेच दी। लोगों ने वहां मकान बनाकर कॉलोनी बसा ली। इस दौरान न तो आरडीए के अफसरों को भनक लगी न जिला प्रशासन के अधिकारियों को। अफसरों को अब कब्जे का पता चला। जानकारी होने पर अधिकारी तोडफ़ोड़ दस्ता लेकर वहां कब्जा हटाने पहुंच गए, लेकिन पक्के मकान देखकर हैरान रह गए। सरकारी जमीन पर बसी कालोनी में दो-दो मंजिला मकान बनाकर लोग रहने लगे हैं। जिसके चलते अफसरों को तोडफ़ोड़ कार्रवाई रोकनी पड़ी। जांच से पता चला कि बिल्डर की 75 हजार वर्गफुट जमीन कमल विहार में और उसी से सटी 50 हजार वर्गफुट जमीन है। इन दोनों जमीनों को कब्जे में ले लिया गया है। बाकी जिस जमीन पर कालोनी बस चुकी है, उसे खाली कराने को लेकर मंथन किया जा रहा है। रायपुर विकास प्राधिकरण ने 2010 में टीडीएस-4 (टाउन डेवलपमेंट स्कीम) के तहत कमल विहार योजना शुरू की थी।
15 करोड़ की जमीन पर खेल : सरकारी जमीन पर कब्जा फिर उस पर कालोनी बनाना उसके बाद प्लाटिंग कर बेचना सबकुछ अचानक और रातों रात नहीं हुुआ है। सरकारी जमीन पर कब्जा का यह खेल पिछले पांच-सात साल से या उससे भी पहले यहां चल रहा है। इतने वर्षों के बाद भी अफसरों को इसकी जानकारी नहीं होना बड़ी बात है। इस पूरे खेल में सरकारी सिस्टम की भी भूमिका जांच के घेरे में है। आरडीए के संचालक राजेंद्र पप्पू बंजारे का कहना है कि ये जमीन लगभग 15 करोड़ की है।
सरकारी जमीन पर कब्जा : सरकारी जमीन पर कब्ज़ा तो इनका सबसे आसान काम है निजी जमीनों को हथियाने में बिल्डर पीछे नहीं रहते। राजधानी रायपुर और उससे लगे आस-पास के इलाकों में सरकारी खाली जमीनों पर कब्जा कर प्लाटिंग और हाउसिंग प्रोजेक्ट डेव्हल्प किया रजा रहा है। अधिकारी भी इस मामले में कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि भू माफियो को राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ है जिसके चलते वे अपना काम बनवा लेते हैं। अपनी राजनीतिक रसूख और अधिकारियों से सांठगांठ कर ये भू-माफिया करोड़ों का प्रोजेक्ट लांच कर अपनी तिजोरी भर रहे हैं। सरकारी जमीनों से लगे किसानों की कृषि जमीनों को औने-पौनेे दाम पर खरीद कर सरकारी जमीनों की पटवारियों व राजस्व अधिकारियों की मिली भगत से फर्जी दस्तावेज तैयार कर कई बड़े-बड़े बिल्डर अपना धंधा चमका रहे हैं। ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें बिल्डरों ने खरीदे हुए जमीन के बीच में आने वाली सरकारी जमीनों और सडक़ व रास्ते के जमीनों को दबा कर अपने आलिशान प्रोजेक्ट तैयार किए। सरकारी जमीन के साथ कई निजी जमीनों को भी कूटरचना कर इन बिल्डरों ने लोगों के साथ धोखाधड़ी की।
निजी जमीन मालिक हलाकान: आम लोगों की जमीन पर कब्जे की शिकायतों पर न तो पुलिस कार्रवाई कर रहा है और न ही प्रशासन ही कारगर कदम उठा रहा है। पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए बिल्डरों ने सत्तापक्ष के नेताओं को भी साध रखा है। यही वजह है कि करोड़ों की जमीन हथियाने का खेल आउटर इलाके में चल रहा है। शहर के सबसे बड़े बिल्डर जो अपने हर प्रोजेक्ट में जंगल को किसी न किसी रूप में शामिल करता है उसने कबीरनगर हाऊसिंग बोर्ड में मकान खरीद कर पीछे रास्ता बनाया गया जो कि कानून के अंर्तगत अवैध माना जाता है। एक स्वीकृत ले आउट प्लान के अंदर दूसरा ले आउट प्लान के लिए रास्ता शासकीय जमीन से लेकर जाने का आरोप। रास्ते की जमीन को दबाकर अपना प्रोजेक्ट खड़ा किया, इसके अलावा 36 सिटी माल के पास निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में भी सरकारी जमीन दबाने के साथ कचना रोड के रास्ते की शासकीय भूमि छोटे जंगल की भूमि और बड़े झाडों का जंगल अपने प्रोजेक्ट में अवैध रूप में कब्जा लिया। जिसकी उच्च स्तरीय जांच करने की उपरांत ही सच्चाई उजागर हो सकती है। सड्डू में नाले की जमीन पर अतिक्रमण किसी से छुपी नहीं है। बड़े बड़े अधिकारी सड्डू में रहते हैं जिन्हे इनका अतिक्रमण नहीं दिखना आश्चर्यजनक है। आउटर की जमीन निशाने पर अवैध प्लाटिंग को लेकर सबसे ज्यादा खेल आउटर इलाके में किया जा रहा है। कुछ साल पहले ही गोगांव, गोंदवारा, भनपुरी, सिलतरा में 25 एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन को ग्रीनलैंड में तब्दील करने का पर्दाफाश हुआ था। वहां कई लोगों ने सरकारी और घास जमीन पर अवैध प्लाटिंग और कब्जा कर लोगों को बेचने की कोशिश की थी। इन सभी जगहों की जमीन पर निगम ने बाउंड्रीवाल बनाकर उसे ग्रीनलैंड में तब्दील किया था। जिस कृषि भूमि पर बिना अनुमति के अवैध प्लाटिंग की गई है, खेती की जमीन पर अवैध प्लाटिंग होने पर पूरे क्षेत्र की जमीन को फिर से ग्रीनलैंड में बदला जाएगा। मास्टर प्लान में जो क्षेत्र कृषि या आमोद-प्रमोद का है और वहां अवैध प्लाटिंग की गई है उसे फिर से ग्रीनलैंड में तब्दील किया जाएगा। फर्जी दस्तावेज कर लेते हैं तैयार दूसरों की खाली जमीनों को जानबूझकर बिल्डर विवादों में लाते हैं। जमीन मालिक उस जमीन को खोने के डर से विवश होकर सस्ती दरों पर भी बेचने के लिए तैयार हो जाता है। ऐसे में मध्यस्थता निभाने के लिए क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि या बड़े और छुटभैय्ये नेता आगे आते हैं। उनके द्वारा इन जमीनों को अपने खास लोगों को सस्ती दरों पर दिलवा दिया जाता है। इस तरह से महंगी जमीन भी सस्ती दर पर भू-माफियाओं को मिल जाती है। ऐसी कई शिकायतें पुलिस के पास पहुंचती है, जिसमें जमीन पर जानबूझकर कब्जा करने या उसके फर्जी दस्तावेज तैयार करने का मामला सामने आता है। पुलिस ऐसे लोगों को चिह्नित जरूर करती है, लेकिन उन पर कार्रवाई करने में सालों लगा देती है।
खम्हारडीह में 570 की जमीन नहीं हुई खाली
हाईकोर्ट के निर्देश पर नहीं हुई कार्रवाई छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2017 में रायपुर के शंकर नगर इलाके में 37 एकड़ जमीन कब्जाधारियों से वापस लेने के निर्देश प्रशासन को दिए थे। कोर्ट ने कब्जाधारियों से छह माह के भीतर यह सरकारी जमीन खाली करने के लिए कहा था। स्थानीय निवासी खैरूनिशा फरिश्ता ने अपने अधिवक्ता के जरिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। इस याचिका में शंकर नगर के खसरा नबर 570 और 571 के जमीन पर बेजा लोगों के द्वारा कब्ज़ा किये जाने की शिकायत की गई थी। मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद ही वैधानिक दस्तावेजों और उसमे निहित तथ्यों के आधार पर अदालत में सरकारी जमीन पर अवैध कब्ज़ा पाया। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने जमीन के जांच के आदेश देने के साथ ही स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के निर्देश प्रशासन को दिए थे। प्रशासन के द्वारा अदालत में रिपोर्ट पेश की गई थी। सब डिविजनल मजिस्ट्रेट द्वारा दी गई रिपोर्ट में कहा गया था कि कुछ निजी लोगों को यह जमीन संयुक्त मध्य प्रदेश के दौरान प्रशासन ने एलॉट की थी। रिपोर्ट में यह जानकारी भी दी गई है कि पूर्व में यहां बड़े और छोटे झाडिय़ों का जंगल था। मामले की सुनवाई के उपरांत हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस व जस्टिस शरद गुप्ता ने यह फैसला दिया कि अब इस जमीन को सरकार वापस ले ले। अदालत ने जमीन आवंटन की प्रक्रिया को गलत पाया। यही नहीं, आवंटन प्रक्रिया के दौरान कई क़ानूनी औपचारिकताएं भी पूरी नहीं पाई गईं। लिहाजा कोर्ट ने 6 महीने के भीतर इस जमीन को वापस लेने का निर्देश दिया था।
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