भूपेश चाहते हैं कर्मचारियों का भला, अधिकारी मनसूबे पर फेर रहे पानी

दैनिक वेतनभोगियों के नियमितिकरण को लेकर मांगी गई जानकारी देने में कर रहे हीला-हवाला

Update: 2021-01-28 05:27 GMT

आखिर विभाग की सूची में कर्मचारी शामिल नहीं तो कैसे चल रहा काम, इन्हें कौन देता है वेतन

दैनिक वेतन भोगियों के नियमितिकरण के मामले में कोई कार्यवाही नहीं

कर्मचारियों में आक्रोश बजट में प्रस्ताव रखने की मांग

आउटसोर्सिंग के माध्यम से कार्यरत कर्मियों को भी नियमित किया जाए

भूपेश बघेल सरकार को बदनाम करने की साजिश

सरकार की योजनाओं को क्रियान्वयन करने के बजाय लगा रहे पलीता

ज़ाकिर घुरसेना

रायपुर । प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने दैनिक वेतन भोगियों का नियमित करने का वादा किया था। वादे के अनुसार नई सरकार के गठन के पश्चात मुख्यमंत्री के निर्देश पर सामान्य प्रशासन विभाग ने विभिन्न विभागों, निगमों और मंडलों से कार्यरत संविदा और दैनिक वेतन भोगी कर्मियों की जानकारी मांगी है। इसके तहत विभागों में नियमित पदों पर की गई नियुक्ति और की जा रही अथवा निकट भविष्य में की जाने वाली नियुक्तियों सहित अनुकंपा नियुक्ति से संबंधित लंबित प्रकरणों तथा आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति देने एवं शासन के विभिन्न विभागों एवं उनके अधीन निगम मंडलों में दैनिक वेतन भोगी, कार्यभारित, संविदा अथवा प्लेसमेंट एजेंसी नियुक्त या अन्य अस्थाई पदों पर कार्यरत कर्मचारियों की सूची शासन को पे्रषित करने का स्पष्ट आदेश दिया गया है। लेकिन विभिन्न विभागों में बैठे अधिकारी अपने फायदे को देखते हुए आधी अधूरी या गलत जानकारी भेज रहे हैं।

छ.ग. में कई वर्षां से कार्यरत दैनिक वेतन व अनियमित कर्मचारियों के नियमितिकरण हेतु गठित समिति की किसी भी बैठक में आज पर्यन्त नियमितिकरण की कोई भी कार्यवाही नहीं की जा सकी है जिससे कर्मचारियों में असंतोष की स्थिति निर्मित हो रही है। उल्लेखनीय है कि विभिन्न संघों द्वारा नियमितिकरण की मांग किये जाने के कारण कांग्रेस पार्टी ने विधान सभा चुनाव के पूर्व अपने घोषणा पत्र में अनियमित व दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमितिकरण किये जाने की घोषणा की किन्तु मुख्यमंत्री द्वारा जानकारी मांगे जाने पर भी कुछ विभाग के अलावा किसी विभाग ने जानकारी नहीं दी इससे प्रतीत होता है कि पूर्व की भाजपा सरकार जैसे कांग्रेस में भी अफसरशाही चरम पर है। वर्तमान स्थिति में छ.ग. के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तो घोषणा कर दी है किन्तु घोषणा को क्रियान्वयन करने हेतु अधिकृत अधिकारियों ने उनकी अनदेखी कर रहे हैं। जिसके कारण कर्मचारियों में आक्रोश व्याप्त है। इस सम्बन्ध में छ.ग.संयुक्त प्रगतिशील कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष बजरंग मिश्रा, उपाध्यक्ष शाहिद मंसूरी, महासचिव राजकुमार कुशवाहा, कोषाध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह ठाकुर, सह सचिव कमलेश सिन्हा, मानसिंह चौहान तथा छ.ग. वन कर्मचारी दैनिक वेतन भोगी संघ के उपाध्यक्ष अरविंद वर्मा, तुलसी कृत डोंगरे, भूपेन्द्र वर्मा, अमीनुद्दीन सहित अनेक कर्मचारी संगठनों ने बताया कि केवल वन विभाग की दैनिक वेतन व जॉबदर की जानकारी भेजी गई हैं वह भी आधी अधूरी है, साथ ही अन्य विभाग की जानकारी नहीं भेजी गई है। लोक निर्माण विभाग ने भी दैनिक वेतन कर्मचारियों की जानकारी निरंक भेजी है जबकि लोक निर्माण व लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, जल संसाधन विभाग में हजारों की संख्या में दैनिक वेतन कर्मचारी कार्यरत हैं तथा उन्हें विभागीय मजदूरी मद से भुगतान किया जाता है। छ.ग. में समस्त विभागों में दैनिक वेतन भोगियों की कुल संख्या लगभग 20-25 हजार के आस-पास है, संविदा में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 30-35 हजार है इनके नियमितीकरण के लिये अधिक बजट की आवश्यकता नहीं होगी इसलिये कर्मचारी महासंघ ने शासन से आगामी बजट सत्र में नियमितिकरण का प्रावधान करने की मांग की है। जो भूपेश बघेल के चुनावी घोषणा पत्र का एक महत्वपूर्ण बिंदु भी था। छ.ग. में बड़ी संख्या में आउटसोर्सिंग के माध्यम से भी कर्मचारियों से कार्य लिया जाता है जिनकी संख्या लगभग 40-45 हजार है किन्तु उनके नियमितिकरण के लिये शासन द्वारा कोई योजना नहीं बनाई गई है। एक प्रकार से देखा जाये तो ये आउटसोर्स द्वारा भर्ती किये गए कर्मचारी भी तो शासन की ही सेवा करते हैं। इन्हें भी अनियमित कर्मचारी मानकर इन्हें भी नियमित किया जाय ताकि इनके साथ अन्याय न हो। तत्संबंध में कर्मचारियों ने मांग की है कि आउटसोर्सिंग में कार्यरत् कर्मचारियों को पहले दैनिक वेतन कर्मचारी बनाया जाये तथा उनकी वरीयता उनके कार्य अवधि से मानी जाये ताकि भविष्य में होने वाले नियमितिकरण का लाभ उन्हें भी मिल सके इसके लिये भी प्रावधान किया जाना चाहिए।

पीडब्ल्यूडी में दैनिक वेतनभोगी नहीं?

एसडीओ राजीव नशीने व्दारा विभाग में एक भी कार्यभारित, अथवा अनियमित कर्मचारी नहीं होने की जानकारी शासन को भेजी है जबकि पूरे विभाग में लगभग 3500 दैनिक वेतन भोगी, संविदा कर्मचारी होना बताया जा रहा है जिसमें केवल रायपुर में अधीक्षण अभियंता कोर्राम के जोन में लगभग 2200 कर्मचारी इस श्रेणी के हैं लेकिन शासन को इस जोन की जानकारी निरंक भेजी गई है। इस विषय में विधानसभा में बहस भी हुई है लेकिन हमेशा की तरह गलत जानकारी देकर मामले की लीपापोती कर दी गई।

एक ही जगह में जमे हैं नशीने

पीडब्ल्यूडी के एसडीओ के बारे में कहा जाता है कि वह हर मंत्री को सेट करने में माहिर हैं इसी के चलते विगत लगभग दो दशक से अधिक समय से एक ही जगह पर जमे हुए और वो भी राजधानी के अति संवेदनशील पद पर। चाहे कोई सरकार रहे चाहे कोई मंत्री हो इन साहब का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाया। बल्कि वह उपकृत ही होते रहा। एसडीओ नशीने पूर्व पीडब्लूडी मंत्री राजेश मूणत के नाक के बाल हुआ करते थे और अब विकास उपाध्याय के कान के बाल हो गए हैं एवं वर्तमान पीडब्लूडी मंत्री ताम्रध्वज साहू के सिर के बाल हो गए हैं। आखिर ऐसा कौन सा गुण या योग्यता है इनके पास? या उन उच्च अधिकारियों और तमाम मंत्रियों की ऐसी कौन सी मजबूरी है? या क्या फिर मजबूरी के आलावा कोई ख़ास वजह! पूर्व मंत्री राजेश मूणत रहे हो या अब ताम्रध्वज साहू इन इंजीनियर साहब को सुबह शाम इनके बंगले में देखा जा सकता है। और शहर के तमाम सड़कों पर इनके मंत्री प्रेम और ख़ास योग्यता की छाप भी आसानी से देखी जा सकती है। सूत्र यह भी बताते हैं कि सभी उच्च अधिकारियों को मजदूरों के मस्टररोल की हेराफेरी में लाखों रुपए की कमाई होती है. इसलिए गलत जानकारी भेजा जाता है ताकि ऊपरी कमाई चलती रहे। यह भी कहा जाता है कई अधिकारी मुख्यमंत्री की मंशा अनुसार इस दैनिक वेतन भोगियों या अनियमित कर्मचारियों, प्लेसमेंट के कर्मचारियों की भला चाहते हुए नाम ऊपर भेजना चाहते हैं लेकिन एसडीओ राजीव नशीने द्वारा अपनी लंबी कमाई को देखते हुए सूची में निरंक लिखकर भेजा जाता है एसडीओ राजीव के खिलाफ गंभीर शिकायतें भी है लेकिन ऐसा क्या है जो कोई सरकार उन्हें अपने जगह से टस से मस नहीं कर पाई।

रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता के बंगले में दैवेभो कर्मचारी कार्यरत

सूत्रों से जानकारी मिली है कि विभाग के रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता जो अभी भी अनाधिकृत रूप सरकारी बंगले में जमे हुए हैं। ऐसी जानकारी मिली कि उनके बंगले में कई दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी कार्यरत हैं। जो नियमत: इसकी पात्रता नहीं रखते।

आनन-फानन में सूची सुधारी गई

वन विकास निगम में भी 20 हजार कर्मचारी दैनिक वेतन भोगी हैं और अधिकारियों व्दारा शासन को इस विभाग में दैनिक वेतन भोगी कर्मी नहीं होने की जानकारी दी गई थी। तत्कालीन पीसीसीएफ व्दारा शासन को ऐसी जानकारी भेजी गई थी, लेकिन शासन के ध्यान में आने पर आनन-फानन में सूची सुधार कर भेजी गई थी। इसी की पुनरावृत्ति अभी भी अधिकारी कर रहे हैं।

 इन तस्वीरों में इस संबध में मुख्यमंत्री कार्यालय से मुख्य सचिव को जारी पत्र और पीडब्ल्यूडी विभाग के एसडीओ द्वारा भेजी गई जानकारी से संबंधित दस्तावेज नजर आ रहे हैं। एसडीओ द्वारा प्रेषित जानकारी में साफ-साफ 'निरंक' दर्शाया गया है, जब की विभाग में लगभग 3500 दैनिक वेतनभोगी कार्यरत हैं। जिनके वेतन के लिए बाकायदा बजट भी प्रावधानित हो रहे हैं।





 


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