उत्तर बस्तर कांकेर: वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग के फायदों की जानकारी देते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र कांकेर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बीरबल साहू ने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से मिट्टी की भौतिक, रसायनिक एवं जैविक दशा में सुधार होने के साथ-साथ भूमि में जल धारण करने की क्षमता, प्रत्यारोधन क्षमता, वायु संचार की मात्रा, ताप शोषण करने की क्षमता, भस्म विनिमय क्षमता में वृद्धि करने के अलावा मृदा कटाव की कमी, जल निकासी में सुधार, पी.एच. संधारण करना इत्यादि बनाये रखता है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बीरबल साहू ने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट खाद में गोबर खाद की तुलना में मुख्य पोषक तत्व जैसे- नत्रजन 0.50 प्रतिशत स्फूर, फास्फोरस-0.25 प्रतिशत एवं पोटाश 0.40 प्रतिशत के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे तांबा, लोहा, जस्ता, मैग्नीज, कैल्शियम आदि भी प्रचूर मात्रा में पाये जाते हैं। वर्मी कम्पोस्टिंग में कच्चेमाल अपघटन तथा केंचुए द्वारा खाने, पचाने और मल, विष्ठा के रूप परिवर्तित करने के कारण मौजूदा पोषक तत्वों की हानि नहीं होती। वर्मी कम्पोस्ट खेत, प्रक्षेत्र में फसल अपशिष्ट, रसोई, घरेलू कचरा (प्लास्टिक मुक्त) इत्यादि को गोबर के साथ मिलाकर अपघटित कर, केचुओं के द्वारा भोजन के रूप में उपयोग कर खाने, पचाने एवं मल के रूप में परिवर्तित कर बनाया जाता है। वर्मी कम्पोस्ट में स्फूर, फास्फोरस का विघटन सरल एवं घुलन शील अवस्था में होने के कारण पौधों, फसलों को आसानी से प्राप्त होते है। ह्यूमस का निर्माण ज्यादा होने के कारण मृदा उर्वरता में बढ़ोत्तरी होती है। वर्मी कम्पोस्ट निर्माण में अमोनिया वाष्पीकरण नहीं होने के कारण नत्रजन की हानि नहीं होती अथवा नाइट्रेट आयन भी ज्यादा बनते है, जो पौधे को सरलता से प्राप्त होते हैं। वर्मी कम्पोस्ट निर्माण के लिए लगभग अपशिष्ट पदार्थ या कार्बनिक कचरे के बराबर मात्रा की गोबर (लगभग 50 प्रतिशत कचरा तथा 50 प्रतिशत गोबर की मात्रा) की आवश्यकता पड़ती है। वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए पक्का फर्श या टांका होने के कारण पोषक तत्वों का नुकसान नहीं होता। केचुआ खाद या वर्मी कम्पोस्ट की मात्रा गोबर खाद की तुलना में कृषि एवं उद्यानिकी फसलों में कम है। सामान्यतः 2 से 3 टन प्रति हेक्टेयर है।