रायपुर। आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में रविवार प्रात: आयोजित सामूहिक क्षमापना समारोह एवं 55 दिवसीय दिव्य सत्संग महाकुंभ के समापन अवसर पर संबोधित करते हुए राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने कहा कि क्षमा मांगने से जीव धन्य हो जाता है। 'माफ कर देना रात को सोने से पहले। जरा सा मुस्कुरा देना सोने से पहले, हर गÞम को भुला देना सोने से पहले, जिसने भी दिन में दिल दुखाया है आपका, माफ कर देना रात को सोने से पहले। ' हम अपने मनोमालिन्य को साफ करें। अगर आपने तीन को माफ कर दिया तो आपको तेले के तप का पुण्य मिल जाएगा और अगर आपने 8 को माफ कर दिया तो आपको अट्ठाई तप का सौभाग्य मिल जाएगा। जिंदगी बड़ी ग़जब की है, जब हम पैदा होते हैं तब हमारी सांस होती है पर तब हमारा नाम नहीं होता, जब हम मरते हैं तब नाम होता है पर सांस नहीं होती। ये जिंदगी नाम और सांस के बीच की जिंदगी है। जो जिंदगी को बेफिक्री से जी लेता है वह जिंदगी की बाजी जीत जाता है। तस्वीर में तो हर कोई मुस्कुराता है पर जो व्यक्ति तकलीफ में भी मुस्कुराना सीख जाए, मानलो वह जीवन की बाजी जीत गया। अपने वे नहीं होते जो तस्वीर में हमारे साथ होते हैं, असली अपने वे होते हैं जो तकलीफ में भी हमारे साथ होते हैं।
'प्रेम हमारी साधना है, प्रेम हमारा मंत्र है, जो भी भरा है प्रेम से वो ही हमारा संत है'... इस प्रेरक भावगीत से सत्संग का शुभारंभ करते हुए संतप्रवर ने कहा कि पर्यूषण पर्व के इन पावन दिनों में पहला संकल्प हम यह करें कि मैं अपनी जिंदगी में कभी किसी से ऐसे शब्द या भाषा का उपयोग नहीं करुंगा, जिससे आपस में मनोमालिन्य हो।
उन्होंने आगे कहा- मंदिर इसके लिए नहीं बनते कि दुनिया में पाप करके मंदिर में आकर धोते रहो, मंदिर इसलिए बनते हैं कि मंदिर में जाकर संकल्प करो कि मैं बाहर जाकर पाप नहीं करुंगा। इसीलिए तो मंदिर में जाकर माथे पर चंदन की टीकी लगाते हैं और संकल्प करते हैं कि हे भगवान मैंने आपके चंदन की टीकी ही नहीं लगाई, मैंने आपके संदेशों को सिर पर धारण किया है, मैं बाहर जाकर भी नैतिक और पवित्र जीवन जीने की कोशिश करुंगा। मंदिर में ही मंदिर को मानना बड़ी बात नहीं है लेकिन जो व्यक्ति बाजार को भी मंदिर मानकर सद्व्यवहार करता है, वही व्यक्ति जीवन की बाजी जीतता है। यह संकल्प कर लो कि मैं कभी किसी के साथ लेशमात्र भी बैर-विरोध की गांठ नहीं बाधुंगा। मैं ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करुंगा जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे। शब्दों में बड़ी जान होती है, इनसे आरती-अरदास और अजान होती है, ये समंदर के वे मोती हैं जिनसे एक अच्छे आदमी की पहचान होती है।
संतश्री ने कहा कि प्लीज, थैंक्यू और सॉरी ये तीन शब्द आपकी जिंदगी को हमेशा मीठा रखेंगे। जब भी किसी से काम कराना हो, आदेश की भाषा मत बोलो हमेशा सम्मान की भाषा बोलो। जब भी सामने वाले ने आपका काम कर दिया है तो उसे धन्यवाद-थैंक्यू जरूर बोलो। और अगर आपसे किसी को जरा सी भी असहजता हुई है तो उसे सॉरी जरूर बोलो। उन्होंने आगे कहा कि जिंदगी ऐसी जियो कि जहां तुम रहो वहां सब तुम्हें प्यार करें। जहां से तुम चले जाओ, पीछे सब तुम्हें याद करें और जहां तुम जाने वाले हो वहां सब तुम्हारा इंतजार करें। तुलसीदासजी ने कहा था- ईश्वर अंश जीव अविनाशी। जीव ईश्वर का अंश है। भगवान महावीर ने कहा है- अप्पा सो परमप्पा। अर्थात् आत्मा का विकास ही परमात्मा है। सिद्ध कोई अलग नहीं होता, हममें से कोई सिद्ध होता है। श्रद्धालुओं को बैर-विरोध को समाप्त करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए संतश्री ने कहा कि कब तक किसी की कही बात को लेकर चलोगे, जो बीत गई सो बीत गई, कब तक बैर-विरोध की गांठ साथ लेकर चलोगे। तुम भी मर जाओगे, वह भी मर जाएगा पर बैर-विरोध की गांठें अगर जन्म-जन्मान्तर तक साथ चलती रही तो हर गति आपकी बिगड़ती चली जाएगी। लोग कहते हैं- सात फेरे-सात जनम तक। शादी का रिश्ता सात जनम तक चलता है या नहीं चलता मुझे नहीं पता पर बैर-विरोध का रिश्ता 70 जनम तक पीछा करता है। परमाणु बम से भी ज्यादा ताकत प्रेम में होती है। जिससे आदमी पूरी दुनिया को जीत सकता है। प्रेम का दामन कभी मत छोड़ना। हाथ उठाकर आदमी दस लोगों के दिलों को नहीं जीत सकता, पर हाथ जोड़कर आदमी लाखों लोगों के दिलों को जीत सकता है। तीसरा संकल्प आज यह कर लो कि मैं अपने जीवन में हमेशा प्रेम की गंगा-यमुना को बहाने की कोशिश करुंगा। जो व्यक्ति प्रेम की गंगा में नहाता है वो कभी दूसरों के दिलों से नहीं हटता। टेढ़ा आदमी लोगों के दिल से उतरता है और मधुर आदमी दिल में उतरता है। हम ऐसा जीवन जिएं की सामने वाले के दिल में उतर जाएं। भगवान महावीर हमें अहिंसा, प्रेम और शांति को जो संदेश देते हैं उसका मूल राज यही है।
जैन किसी धर्म या पंथ का नाम ही नहीं यह जीवन जीने का एक सन्मार्ग है, यह सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा- किसे कहें हम जैन और किसे कहें भगवान महावीर का अनुयायी। जिसके जीवन में सदाचार का संचार है, अहिंसा जिसका अलंकार है। जिसे जीवमात्र से प्यार है, जो गुणों का भंडार है। जिसमें नम्रता और सरलता है, जो बुराई से टलता है और सच्चाई पर चलता है। जो खुद भी नेक है, जिसमें विनय और विवेक है, जो जनता है-जो मानता है कि मुक्ति के मार्ग अनेक हैं फिर भी हम सब एक हैं। जो मानवता में विश्वास रखता है, शांतिदूत बनकर जीता है, जो आतंकवादी नहीं अनेकांतवादी है। जो अन्यायी नहीं, अहिंसा और प्रेम का अनुयायी है। जो महावीर का फैन है, सच तो यही है दुनिया में वही सच्चा जैन है।
आरंभ में संतश्री ने कहा कि लोग कहते हैं, आज युवा पीढ़ी धर्म से दूर है। मैं आपको बता दूं जितनी युवा पीढ़ी आज धर्म के करीब है, जितने युवक आज धार्मिक जीवन जी रहे हैं, जितने युवक आज तप-त्याग, धर्म-आराधना, प्रभु भक्ति, पूजा-पाठ कर रहे हैं, उस युवा पीढ़ी का अभिनंदन कीजिए, इस युवा पीढ़ी का अभिनंदन कीजिए। आज की युवा पीढ़ी बहुत धार्मिक है। मुझे हमारे युवाओं पर गर्व है। जितनी आज युवा पढ़ी धर्म के करीब है, इतिहास में कभी इतनी नहीं हुई। इन पर गर्व कीजिए, इन्हें प्रोत्साहन दीजिए।
यूनान के सेनापति और एक फकीर के मध्य संवाद के कथानक से प्रेरणा प्रदान करते हुए उन्होंने कहा कि जब-जब आदमी के भीतर क्षमा के भाव पैदा हो जाएं तो इसी का नाम स्वर्ग है और दिलोदिमाग में किसी के प्रति क्रोध का पैदा होना इसी का नाम नर्क है। क्रोध या गुस्सा दियासलाई की तरह है, याद रखना दियासलाई जब भी किसी को जलाने के लिए निकलती है और जब वह चाहती है कि मैं दूसरे को जलाऊँ पर सामने वाला जले या ना जले, दियासलाई पहले ही जल जाती है। दिलाईसलाई के माथे पर बारुद गोला है जो थोड़ा सा घर्षण लगते ही जलने लगता है। दियासलाई के माथे पर दिमाग नहीं होता, पर हमारे माथे में दिमाग है तो भला जरा से घर्षण से हम गरम क्यों हो जाएं। जो व्यक्ति किसी की एक गलती को माफ करता है, भगवान उसकी सौ गलतियों को माफ कर देते हैं। जब-जब आदमी क्षमा में आता है तब-तब उसके कसाय, अहंकार खत्म होते हैं। आदमी के डूबने का मुख्य कारण उसके भीतर पलने वाला कसाय होता है। तूफान में डूब जाती हैं कश्तियां और घमंड में डूब जाती हैं बड़ी-बड़ी हस्तियां। इसीलिए हमें जीवन में हमेशा इस मंत्र को याद रखना चाहिए कि मैं अपने जीवन में हमेशा प्रेम, मिठास और माधुर्य को जीने की कोशिश करुंगा। आखिर में संतश्री ने कहा कि मुझसे व मुनिश्री शांतिप्रियजी से भूल से यदि किसी को भी असातना हुई हो तो वे पूरे मनोयोग से मिच्छामि दुक्कड़म करते हैं।
जो सुख-शांति से जीता है वह स्वयं का मित्र है: डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय
धर्मसभा के पूर्वार्ध में मधुरभाषी डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी महाराज ने कहा कि इस दुनिया में हर चीज का मोल है लेकिन हमारा मनुष्य जीवन यह अनमोल है। अगर यह जीवन ही न रहे तो करोड़ों भी कौड़ी जैसे हो जाया करते हैं। जहां सुख-शांति हो वहां झोपड़ी में भी स्वर्ग है और जहां सुख-शांति नहीं वहां महल में भी नर्क है। खास बात यह है कि हम जीवन किस तरह जीते हैं। सुख व दुख ये हमारे ही हाथ में है। भगवान श्रीमहावीर कहते हैं कि इंसान स्वयं का शत्रु और मित्र भी हो जाया करता है, यदि वह अपना जीवन प्रेम व शांति से नहीं जीता तो वह स्वयं का शत्रु हो जाता है और जो सुख-शांति से जीवन जीता है वह स्वयं का मित्र बन जाता है। वास्तव में दोस्त वह है जो हमारे दोषों का अस्त करे। जीवन में दुख व अशांति के कारण बैर व मोह के भाव हैं और भीतर में पलने वाली मैत्री व प्रेम की भावना यह हमारे सुख का कारण है। सुखी होना चाहते हैं तो अपने मन में पल रहे बैर-प्रतिशोध को प्रेम और मैत्री में बदल दें। प्रेम और मिठास के साथ हम जिएंगी तो हमारी खुशियां दुगुनी होती चली जाएंगी। हम जन्म से किसी से शत्रुता या मित्रता लेकर नहीं आते, हमारा व्यवहार ही किसी को हमारा मित्र तो किसी को शत्रु बना दिया करता है। प्राणीमात्र के प्रति प्रेम और मैत्री का भाव बढ़ाते चले जाएं।
किसी को दर्द नहीं दे सबके हमदर्द बनें: साध्वी स्नेहयशाश्री
सामूहिक क्षमापणा समारोह में साध्वीश्री मनोरंजनाश्रीजी व साध्वीश्री स्नेहयशाश्रीजी का आगमन हुआ। धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वीश्री स्नेहयशाश्री ने कहा कि पूज्य गुरुदेव ने पिछले 52 दिनों में सबके दिलों को धोकर साफ कर दिया है। इसीलिए संवत्सरि तो 10 जुलाई से ही हो चुकी है। पर फिर भी कोई मन में मैल रह जाता है तो उसे धोते-धोते आत्मा की दीपावली यानि संवत्सरि में उसे जरूर हम धो लेते हैं। परमात्मा की वाणी और यह संवत्सरि महापर्व हमें यह बताता है कि अगर हमारे पास वास्तव में दिल है तो हम फील जरूर करेंगे। जो नर्म होता है वो कभी किसी को दर्द नहीं देता, वो हमेशा हमदर्द होता है, किसी का सर दर्द कभी नहीं बनता है। यह पर्व हमें एक ही शिक्षा देता है कि हमें भूलों का भूलना है। वो व्यक्ति अपने जीवन में कभी विकास नहीं कर पाएगा, जो व्यक्ति र्इंट का जवाब पत्थर से दे, थप्पड़ का जवाब गाली-गलौज से दे। जो छोटी-छोटी बातों का जवाब बहुत तेज-तर्रार होकर देता है वो कभी जीवन में विकास नहीं कर पाता है। जिसके पास किसी कटु वचन का जवाब मधुर वचनों से है, बैर का जवाब प्रेम से है उस व्यक्ति के जीवन का विकास हुए बिना नहीं रहता है।
दुर्ग की बालिकाएं तीन बहनों मिलकर इस धर्मसभा में समूह गुरुभक्ति गीत ओ गुरुदेवा पार करो मेरी नैया... की सस्वर मधुर प्रस्तुति दी।