भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ झारखंड में रेप का आरोप, पड़ सकते हैं मुश्किल में
उपचुनाव में बलात्कार केस राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू
भाजपा प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम के अलावा 9 लोगों के नाम बलात्कार का आरोप
भाजपा प्रत्याशी नेताम ने एफिडेविट में कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होने की झूठी जानकारी दी
ज़ाकिर घुरसेना
रायपुर। जनता से रिश्ता ने कल के अंक में स्पष्ट किया था कि भानुप्रतापपुर उपचुनाव कांग्रेस के लिए आसान होगा। कल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने एक दस्तावेज पेश किया उस लिहाज से भाजपा प्रत्याशी मुश्किल में फंस सकते हैं। हालांकि जनता से रिश्ता इन दस्तावेजों की पुष्टि नहीं करता। प्रदेश अध्यक्ष ने सोशल मीडिया में चल रहे एक पर्चा को लेकर प्रेस कांफ्रेस के जरिये सार्वजनिक भी कर दी है। भाजपा प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम के खिलाफ उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस के जरिये आरोप लगाया है कि भाजपा प्रत्याशी झारखण्ड में एक बलात्कार केस में शामिल हैं। उन्होंने नगर पुलिस अधीक्षक पूर्वी सिंहभूम, जमशेदपुर का प्रतिवेदन दिखाया है जिसमे 10 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दिखाया जिसमे सरल क्रमांक 10 में स्पष्ट रूप से भाजपा प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम के अलावा 9 लोगों के नाम तथा 10 से 12 अज्ञात लोगों के विरुद्ध सत्य प्रतीत होने का उल्लेख किया है। जिसके तहत उन पर आपराधिक षड्यंत्र कर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कर तथा देह व्यापार में धकेलने का आरोप लगाया गया है साथ ही उन पर पास्को एक्ट के तहत धारा लगाया गया है। अगर आरोप सत्य है तो निश्चित रूप से भाजपा प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम की मुश्किलें बढ़ सकती है और कांग्रेस के लिए जीत आसान हो जाएगी। भाजपा प्रत्याशी नेताम ने एफिडेविट में भी स्पष्ट रूप से कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होने की जानकारी दी है यदि आरोप सिद्ध हुआ तो मुश्किल बढऩा तय दिख रहा है। हालाकी भाजपा प्रत्याशी इस आरोपा को निराधार बताया। दूसरी ओर आरक्षण में कटौती को लेकर सर्व आदिवासी समाज वाले सभी गावों से एक एक प्रत्याशी खड़ा करना चाह रहे थे। जिसके तहत 39 लोगों ने फार्म भी जमा किया था लेकिन उसमे 18 लोगों का फार्म अधूरा होने की वजह से निरस्त हो गया। अब सर्व आदिवासी समाज के 16 प्रत्याशी मैदान में हैं। इस सम्बन्ध में समाज की बैठक भी होने वाली थी। जिसमे निर्णय लिया जाना था कि सभी प्रत्याशी लड़ेंगे या किसी एक प्रत्याशी को सर्वसम्मति से चुनाव लड़ाएंगे। चूँकि भाजप प्रत्याशी पर लगे आरोप अगर सही होता है तो कांग्रेस नृत्य किसी भी तरह सर्व आदिवासी समाज को समझाने में अगर कामयाब होते है तो निश्चित तौर पर फिर से यहां पंजा दिखेगा। चुनाव तिथि घोषित होने के उपरांत सर्वआदिवासी समाज के दखल से दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टी के कान खड़े हो ही चुके थे। सर्व आदिवासी समाज के जिलाध्यक्ष जीवन ठाकुर ने बताया कि जब से समाज के लोगों ने नामांकन दाखिल किया. है तब से दोनों प्रमुख दलों के नेताओं की नींद उड़ गई है। लगातार घास डालने के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है। आदिवासी प्रत्याशी मैदान छोडऩ़े के लिए तैयार नहीं है। अब आगामी दिनों में तय होगा कि कौन चुनाव लड़ेगा और कौन बैठेगा।दोनों पार्टी बैठाने की फिल्डिंग कर रहे है लेकिन अभी तक कैच हाथ नहीं लगी है। भानुप्रतापपुर उपचुनाव अब सर्व आदिवासी समाज की अस्मिता और प्रतिष्ठा का प्रश्न बनकर खड़ा हो चुका है। एकाएक आरक्षण में कटौती ने आदिवासियों को जगा दिया है। जिसका असर भानुप्रतापपुर उपचुनाव में देखने मिलने वाला है। सोमवार को सर्वआदिवासी समाज कोई बड़ा फैसला लेकर भाजपा-कांग्रेस को संकट में डाल सकता है। उपचुनाव में सर्व आदिवासी समाज की दखल से चुनावी दंगल की रोचकता बढ़ गई है। थोक में समाज के लोगों ने नामांकन दाखिल किया और अब तमाम प्रयासों के बाद भी नाम वापसी का नाम नहीं ले रहे है। इस झटके से राज्य के दोनों प्रमुख दलों के रणनीतिकारों के पेशानी में बल पड़ते दिखाई दे रहे थे लेकिन मोहन मरकाम ने प्रेस कांफ्रेंस के जरिये भाजपाइयों की नींद गायब कर दिया है। चारामा के बड़े भाजपा नेता ने भी कहा अब हमको परेशानी का सामना करना पद सकता है। अब निर्णय चुनाव आयोग को लेना है। हालांकि भाजपा प्रत्याशी के चुनाव लडऩे पर दिक्कत तो नहीं हो सकती लेकिन झूठा एफिडेविट देने के मामले में जरूर कोई एक्शन ले सकती है। कुल मिलकर इससे भाजपा को नुकसान होते ररूर दिख रहा है। आदिवासी समाज के अंदर चल रही बैठकों से जो हलचल सामने आ रही है उसका संकेत साफ है कि भानुप्रतापपुर उपचुनाव को सर्वआदिवासी समाज एक परीक्षण की तरह लेने की तैयारी में है। गांव-गांव में प्रत्याशी उतारने की जगह संगठन केवल एक प्रत्याशी खड़ा कर सकता है। ताकि चुनाव के नतीजों से साफ हो पाए कि सामाजिक आधार पर संगठन को कितने वोट मिल सकते है। इस प्रयोग के आधार पर समाज अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी करेगा। हालांकि इस बारे में समाज ने अधिकृत तौर पर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है। सर्वआदिवासी समाज की बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा भी हुई। आज नाम वापसी के लिएअंतिम दिन का वक्त है। तीन माह पूर्व हाईकोर्ट ने राज्य शासन के आदेश को खारिज कर दिया है। जिसमें आदिवासियों की 32 प्रतिशत आरक्षण घटाकर 20 प्रतिशत हो गया है। इस मुद्दे पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट तक याचिकाएं लग चुकी है आरक्षण को लेकर आदिवासी समाज अपने आंदोलन को और तेज करने की तैयारी कर रहा था कि भानुप्रतापुपर में उपचुनाव कराने की घोषणा हो गई। अब समाज के हर गांव से प्रत्याशी उतारने संबंधित घोषणा ने प्रशासन व राजनीतिक पार्टियों के कान खड़े कर दिए है। समाज का हर गांव से प्रत्याशी उतारने में सफलता नहीं मिली कुल 39 नामांकन जमा हुए लेकिन कागजी कार्मियों के चलते 18 नामांकन निरस्त हो गए। सर्व आदिवासी समाज के बैनर चले जो 16 आदिवासी प्रत्याशी मैदान में हैं वो अब नाम वापस लेने टस से मस नहीं हो रहे है। दूसरी और राजनीतिक विश्लेषक यह भी बता रहे हैं कि इस प्रकार की घटना से यह चुनाव कांग्रेस के लिए सबसे आसान चुनाव साबित हो गया है । आज नाम वापसी के बाद सर्व आदिवासी समाज अपना निर्णय लेने वाला है कि एक आदिवासी लड़ेगा या हर ब्लाक से जिन लोगों ने नामांकन दाखिल किया है वो 16 यथावत रहेंगे। वैसे कांग्रेस ने जो मुद्दा उठाया है वह चुनाव में वोट पलटाने वाला हो सकता है।