भगवान महावीर स्वामी का 2551वां निर्माणोत्सव मनाया गया

Update: 2024-11-01 12:30 GMT

रायपुर raipur news। राजधानी रायपुर के श्री आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर (लघु तीर्थ) मालवीय रोड में आज 1 नवंबर दिन शुक्रवार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन 24 वे तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का 2551 मोक्ष कल्याणक महोत्सव जिनालय की पार्श्वनाथ बेदी के समक्ष धार्मिक वातावरण में भक्ति भाव से मनाया गया। जिनालय के पूर्व उपाध्यक्ष श्रेयश जैन बालू ने बताया कि आज सुबह 8 बजे जिनालय की पार्श्वनाथ भगवान की बेदी के समक्ष समाज के धर्म प्रेमी बंधुओ ने सामूहिक पूजा में भाग लेकर सर्वप्रथम आज मंगलाष्टक का पाठ पढ़ कर 24 वे तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी को श्रीकार लेखनं कर पाण्डुक शीला ने विराजमान किया गया।जलशुद्धि कर अभिषेक पाठ पढ़ कर सभी ने प्रासुक जल से भगवान महावीर का रजत कलशों से जलाभिषेक किया।

आज महावीर भगवान की रिद्धि सिद्धि सुख शांति प्रदाता शांति धारा की गई जिसे करने का सौभाग्य शैलेंद्र अक्षत जैन जैन हैंडलूम परिवार को प्राप्त हुआ। शांति धारा का वचन रासु जैन द्वारा किया गया। शांति धारा पश्चात सभी ने समता भाव पूर्वक महावीर भगवान की भक्तिमय आरती की जिससे सारा जिनालय गुंजायमान हो गया। तत्पश्चात सभी ने अष्ट द्रव्यों ने निर्मित अर्घ्य चढ़ा कर नव देवता पूजन कर 24 वे तीर्थंकर भगवान महावीर का निर्वाण कांड पढ़ कर ॐ ह्रीं कार्तिककृष्ण-अमावस्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा मंत्र के साथ श्री फल एवं निर्माण लाडू चढ़ाया। अंत में विसर्जन पाठ पढ़ कर पूजन विसर्जन किया।अभिषेक पूजन उपरांत उपस्थित सभी समाजजन ने एक दूसरे को गले लगा कर निर्माण उत्सव एवं दीपावली पर्व बधाई दी। इस अवसर पर आज जिनालय में बड़ी संख्या में धर्म प्रेमी युवा, युवक, महिलाएं ,बच्चे सभी उपस्थित थे।

श्रेयश जैन बालू ने बताया कि जियो और जीने दो का संदेश देने वाले भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर हैं। महावीर स्वामी ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन स्वाति नक्षत्र में कैवल्य ज्ञान प्राप्त करके निर्वाण प्राप्त किया था। जैन धर्म में धन-यश और वैभव लक्ष्मी के बजाय वैराग्य लक्ष्मी की प्राप्ति पर बल दिया गया है। प्रतिवर्ष दीपावली के दिन जैन धर्म में भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन शाम को श्री गौतम स्वामी को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी, तब देवताओं ने प्रकट होकर गंधकुटी की रचना की और गौतम स्वामी एवं कैवल्यज्ञान की पूजा कर दीपोत्सव का महत्व बढ़ाया।  

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