बिहार में हर जिले की नदियों के बड़े हिस्से से पानी गायब

आने वाले समय में और बिगड़ेंगे हालात

Update: 2024-04-17 07:58 GMT

दरभंगा: सूबे में अभी गर्मी का चढ़ना शुरू ही हुआ है और नदियों के सूखने का सिलसिला जारी हो गया. इस समय 40 से अधिक नदियां सूख चुकी हैं. इन नदियों के बड़े हिस्से से पानी गायब है. कई नदियों में जो कुछ पानी है तो उनका बहाव पूरी तरह खत्म है. वहीं बड़ी संख्या में ऐसी नदियां भी हैं, जिनका पानी तेजी से खत्म हो रहा है. कई नदियों के कुछ हिस्से में पानी है, पर इसके बड़े हिस्से में धूल उड़ रही है.

कई नदियों में थोड़ा-बहुत पानी जलस्रोत बनकर या फिर नाले की तरह बह रहा है. हैरत की बात तो यह है कि अब मानसून के बाद ही नदियों के सूखने का सिलसिला शुरू हो जाता है. दिसंबर के बाद नदियों में पानी की मात्रा कम होने लगती है और फरवरी में ही उसके सूखने का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है. पहले नदियों में पानी की मात्रा मई में जाकर कम होती थी. दरअसल, 50-60 के दशक में पानी घटता था, उसकी कमी होती थी लेकिन पानी पूरी तरह खत्म नहीं होता था. रात में कुआं तक रिचार्ज हो जाता था. नदियां कलकल बहती थीं. यहां तक कि 1967 के अकाल, 1972-73 और 1992-93 के संकट के समय भी नदियों में पानी की ऐसी स्थिति नहीं थी. नदियों के सूखने का प्रतिकूल प्रभाव खेती और पेयजल पर पड़ रहा है. बड़े इलाके का भूजल काफी नीचे चला गया है. इसके कारण चापाकल सूख रहे हैं.

दक्षिण बिहार के 8 जिलों की 24 पंचायतों में 50 फीट तक पानी नीचे चला गया है. इसका परिणाम यह है कि खेती-किसानी गहरे संकट में आ गयी है. जमीन की नमी पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है.

90 के दशक के बाद से बिगड़ने लगी स्थिति

नदियों का संकट 90 के दशक के बाद बढ़ने लगा था. इसका सबसे बड़ा कारण भूजल का अत्यधिक दोहन है. हमने जमीन के अंदर से बेतहाशा और अराजक तरीके से पानी निकाला है. नदियां जमीन को रिचार्ज करती हैं. वे भूजल का स्तर मेंटेन रखने में मदद करती हैं. लेकिन, हमने जब जमीन से ही पानी निकालना शुरू कर दिया तो नदियों का पानी भूतल में जाने लगा. परिणाम यह हो रहा है कि नदियों के सूखने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है.

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