बिहार: सामाजिक समीकरण के हिसाब से वशिष्ठ नारायण सिंह के बाद मनोनीत कर प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए उमेश कुशवाहा इस बार निर्वाचन प्रक्रिया से उसी कुर्सी पर फिर बैठेंगे। इसके साथ ही यह तय हो गया है कि रामचंद्र प्रसाद सिंह को हटाने के बाद मनोनीत हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह भी अगले महीने निर्वाचन प्रक्रिया से दोबारा उसी कुर्सी पर बैठेंगे। मतलब, जदयू में फिलहाल कुछ नहीं बदलेगा। शनिवार को प्रदेश अध्यक्ष के लिए जदयू की निर्वाचन प्रक्रिया में नामांकन दाखिल करने से लेकर नाम वापसी तक की प्रक्रिया होनी थी और रविवार को चुनाव। लेकिन, राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह खुद प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए उमेश कुशवाहा के प्रस्तावक बनकर आए और किसी दूसरे प्रत्याशी के सामने आने की उम्मीद शून्य हो गई। इसी के साथ उमेश कुशवाहा का निर्विरोध प्रदेश अध्यक्ष बनना तय हो गया। रविवार को सिर्फ औपचारिकता होगी।
जातिगत समीकरण में 'कुशवाहा' टाइटल तय था
जदयू के जिला स्तरीय पद को लेकर कई जगह हंगामा हुआ और नतीजा यह रहा कि 51 सांगठनिक जिलों में से 9 के अध्यक्ष चुने नहीं जा सके थे। इसके बाद 26-27 नवंबर को प्रदेश स्तर के चुनाव की तारीख थी। पहले से यह तय माना जा रहा था, कि जातीय समीकरण के हिसाब से 'कुशवाहा' टाइटल वाले को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा। जदयू में तीन जातियों का इन दिनों गणित है- कुर्मी, कोइरी और अगड़ी। कुर्मी जाति से खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। नीतीश मुख्यमंत्री हैं और राष्ट्रीय राजनीति के लिए कदम बढ़ाने की तैयारी में हैं। कोइरी, यानी कुशवाहा समाज से उमेश कुशवाहा प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे। उस समय कुर्मी जाति से रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी) राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। तब अगड़ी जाति से प्रतिनिधित्व नहीं मिलने को लेकर बवाल था। तीन जातियों का समीकरण जदयू में स्थायी तौर पर रहता है। ऐसे में जब बिहार प्रदेश अध्यक्ष चुनाव की तैयारी शुरू हुई तो मगध क्षेत्र से कुशवाहा जाति के एक जदयू नेता ने टाइटल से उम्मीद लगाते हुए ताकत झोंक दी कि अगर कोई विकल्प हो तो उनका नाम पक्का हो। लेकिन, शनिवार को जब राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह खुद ही प्रस्तावक बन गए तो उनकी संभावना शून्य हो गई।
अगले महीने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव, समीकरण तय
दिसंबर में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है। कुर्मी और कोइरी को संतुष्ट करने की कोई स्थिति बचती नहीं है। सिर्फ अगड़ी जातियों का संगठन में प्रतिनिधित्व चाहिए। ऐसे में ललन सिंह का कोई विकल्प नहीं है। चाणक्य स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं कि "राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए एकमात्र विकल्प हो सकते थे संजय झा, लेकिन वह राज्य में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री हैं। दूसरा संकट यह भी कि ललन सिंह के लिए उसके बाद पार्टी में इससे महत्वपूर्ण पद कोई नहीं है।" इसलिए, प्रदेश अध्यक्ष की तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी महज औपचारिकता ही है। राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो ललन के अलावा किसी और को राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद देना चमत्कार ही होगा, जिसकी उम्मीद शून्य है।
सोर्स - दैनिकदेहात
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