Bihar: बिहार में बढ़े हुए आरक्षण पर लगी रहेगी रोक

Update: 2024-07-29 07:22 GMT

बिहार Bihar: बिहार में जातिगत समानता की सीमा को 65 प्रतिशत से अधिक की सरकार ने फैसले पर रोक लगा दी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। नीतीश कुमार सरकार Nitish Kumar government के इस फैसले के खिलाफ पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी, जिसके चलते राज्य ने शीर्ष अदालत का रुख किया था। कोर्ट ने बिहार सरकार की याचिका पर सुनवाई को लेकर सहमति जताई है। मुख्य न्यायाधीश दिवा चंद्रचूड़ की अवतरण वाली बेंच ने कहा, 'हम नोटिस जारी कर रहे हैं। इस मामले पर हम सितंबर में सुनवाई करेंगे। तब तक कोई अस्थायी राहत नहीं रहेगी।' बिहार सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पक्ष रख रहे थे।

उन्होंने शीर्ष अदालत में कहा कि इस मामले पर तत्काल कोई निर्णय नहीं लिया जायेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि सितंबर में नैच के तहत बहुत सी बेरोजगारी दर को बढ़ाया गया और उनके साक्षात्कार की प्रक्रिया चल रही है। फेथ ने कहा, 'इस कानून के आधार पर हजारों कलाकारों के इंटरव्यू चल रहे हैं।' इस दौरान सरकार का ही पक्ष रख रहे एक अन्य वकील ने छत्तीसगढ़ का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने भी जातिगत पूर्वोत्तर की सीमा 50 प्रतिशत की थी। उस राज्य के उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी, लेकिन फिर सर्वोच्च न्यायालय ने उस पर फैसला सुनाया था।

उनके इस डीजल बेंच में जस्टिस Justice in Diesel Bench जेबी पारडीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल नहीं थे। बेंच ने कहा कि हम कोई स्टे नहीं देंगे। उच्च न्यायालय ने पहले ही कह दिया था कि राज्य के 68 प्रतिशत लोगों को नग्न कर दिया गया है। बता दें कि नीतीश सरकार ने हाई कोर्ट की ओर से लगाई रोक को शीर्ष अदालत में चुनौती देते हुए कहा था कि हमने जो सर्वे किया था, उसका आधार ही नॉर्म स्केल है। यह सर्वेक्षण बताता है कि कौन सा समाज कितना भिन्न है और किसे नीतिगत सहायता की आवश्यकता है। सिद्धांत है कि 1992 के इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी जातिगत समानता की सीमा तय की थी। ऐसे में एक ही बात दी जाती है।

बता दें कि 20 जून को पटना हाई कोर्ट ने राज्य में कई आर्जियों की सुनवाई को खारिज कर दिया था और उस पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा कि यह नियम संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है। यह लेख रोजगार के अवसरों में असमानता, भेदभाव के खिलाफ़ के अधिकार की बात करता है। बिहार सरकार के वकील ने कहा कि 50 प्रतिशत पूर्वोत्तर सीमा को जातीय सर्वेक्षण के बाद नष्ट कर दिया गया है। इस सर्वेक्षण से पता चला है कि राज्य में परिजन समुदाय में सबसे अधिक गरीबी है और उन्हें नामांकन एवं शिक्षा में नीतिगत सहायता की आवश्यकता है।

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