अकेलापन दूर करने को ले रहे मोबाइल-नशे का सहारा

Update: 2023-05-26 11:09 GMT

गोरखपुर न्यूज़: बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर इन दिनों एक नई परेशानी से जूझ रहे हैं. इलाज से ठीक हो रहे सिजोफ्रेनिया के मरीज एकांत दूर करने के लिए मोबाइल या नशे की गिरफ्त में चले जा रहे हैं. इसने डॉक्टरों की चिंता बढ़ा दी है.

दरअसल मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग की ओपीडी में 15 फीसदी मरीज सिजोफ्रेनिया के आते हैं. रोजाना ओपीडी में 15 से 20 मरीज इसके पहुंच रहे हैं. इन मरीजों के कानों में आवाज सुनाई देती है. वह बुदबुदाते रहते हैं. दूसरों को लेकर वह हमेशा सशंकित रहते हैं.

बीआरडी के मानसिक रोग के विभागाध्यक्ष डॉ तपस आइच ने बताया कि इस बीमारी का पहले इलाज नहीं था. अब दवाएं अच्छी आ गई है. मरीज इलाज से ठीक हो रहे हैं. उनका मर्ज नियंत्रण में आ रहा है. ऐसे में एक नई समस्या शुरू हो गई. ठीक हो रहे मरीज किसी न किसी नशे की लत में गिरफ्त में चले जा रहे हैं. ज्यादातर मरीजों को मोबाइल की लत लग गई है. कुछ मरीजों में बीड़ी और नशे की लत लगी है. उनका इलाज चल रहा है.

आत्महत्या की प्रवृत्ति मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ आमिल हयात खान ने बताया कि सिजोफ्रेनिया के मरीजों में आत्महत्या की प्रवृत्ति देखी जाती है. करीब 45 फीसदी मरीज जीवन में कम से कम एक बार जरूर आत्महत्या का प्रयास करते हैं. इनमें पांच से दस फीसदी सफल रहते हैं. ये मरीज आक्रामक नहीं होते. दूसरों पर हमले नहीं करते. ऐसे मरीजों का अब सटीक इलाज हो रहा है. बीआरडी में इन मरीजों पर कुछ दवाओं का ट्रायल हुआ है. जो सफल रहा है.

मरीज कल्पना को मान लेता है हकीकत

जिला अस्पताल के डॉ. अमित शाही ने बताया कि सिजोफ्रेनिया मानसिक विकार है. इसमें मरीज कल्पना को हकीकत मान लेता है. वह अक्सर भ्रम की स्थिति में रहता है. ऐसे मरीजों के दिमाग में डोपामाइन नामक एक न्यूरोट्रांसमीटर का स्राव बढ़ जाता है. इससे दिमाग और शरीर के बीच तालमेल बिगड़ जाता है.

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