2 मंत्रियों का इस्तीफा, आंदोलनों में हंगामा हुआ; विभागों में रद्द करनी पड़ी ट्रांसफर-पोस्टिंग

विभागों में रद्द करनी पड़ी ट्रांसफर-पोस्टिंग

Update: 2023-08-09 10:10 GMT
9 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। नई सरकार बनी तो सीएम नीतीश ने तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम बना दिया। तब भाजपा ने इसे जनमत का अपमान बताया था। आज नीतीश-तेजस्वी सरकार को एक साल हो गए हैं। पिछले एक साल में इस सरकार को 4 बार फजीहत झेलनी पड़ी है।
नई सरकार बनने के बाद से ही तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा होने लगी। राजद की ओर से दबाव भी बनाया जा रहा है। इतना ही नहीं नीतीश कुमार को राजनीति से संन्यास लेने और आश्रम में जाने की सलाह भी दी गई।
पहले ग्राफिक से जानिए नीतीश ने कब-कब पाला बदला...
जानिए एक साल में वो कौन से ऐसे 4 बड़े कारण रहे जिसकी वजह से नीतीश-तेजस्वी की सरकार को फजीहत झेलनी पड़ी..या कहें की खूब चर्चा में रही।
1. दो मंत्रियों का इस्तीफा, चरम पर रहा शिक्षा मंत्री और विभागीय सचिव का विवाद
नीतीश-तेजस्वी सरकार बनने के बाद राजद के मंत्री और अनंत सिंह के करीबी रहे कार्तिक कुमार का पहले विभाग बदला गया। फिर मंत्री पद से इस्तीफा हुआ। इससे शुरूआती दौर में ही सरकार की काफी भद पिट गई।
इसके बाद राजद कोटे के ही मंत्री सुधाकर सिंह ने बागी तेवर दिखाए। उन्होंने नीतीश कुमार के कृषि रोड मैप पर सवाल उठाए। बतौर कृषि मंत्री मुख्यमंत्री को खूब घेरा। विभाग में कई पीत पत्र लिखे।
कैबिनेट की बैठक में नीतीश कुमार और सुधाकर सिंह के बीच बहस हुई और आखिरकार सुधाकर सिंह ने कृषि मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद से अब तक वे नीतीश कुमार को घेरते आ रहे हैं।
फिर राजद कोटे के ही शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर ने रामचरितमानस पर विवाद खड़ा कर दिया। महागठबंधन में ही इसको लेकर दो राय बन गई। जदयू ने विरोध करना शुरू कर दिया।
सीएम नीतीश कुमार ने आईएएस अधिकारियों का ट्रांसफर किया तो शिक्षा विभाग में अपर मुख्य सचिव के रूप मे केके पाठक को भेज दिया। फिर केके पाठक और प्रो. चंद्रशेखर के बीच तनातनी बढ़ गई। स्थिति यह हुई कि तीन सप्ताह तक शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर विकास भवन स्थित अपने ऑफिस नहीं आए।
2. क्राइम बढ़ने के आरोप पर विपक्ष मुखर
क्राइम के मामले में बिहार चर्चा में है। राजधानी पटना में हत्या की घटनाएं बढ़ गई है। हाल के दिनों की बात करें तो पटना में 30 दिनों में 30 हत्याएं हुई हैं। इसके साथ ही 16 लूट और दो डकैती की घटनाएं भी हुई।
इसके अलावा वाहन चोरी की 421और चेन स्नैचिंग की 14 घटनाएं घटीं। राज्य में बढ़ते क्राइम की वजह से विपक्षी पार्टियों को बोलने का मौका मिल गया है।
3. शिक्षकों और आशा कार्यकर्ताओं का आंदोलन
शिक्षक नियुक्ति की मांग को लेकर एसटीइटी अभ्यर्थी और राज्य कर्मी का दर्जा देने की मांग को लेकर नियोजित शिक्षकों ने खूब धरना-प्रदर्शन किया। महागठबंधन में शामिल माले विधायक नियोजित शिक्षकों के साथ खड़े दिखे।
इसके साथ ही बीजेपी का भी आंदोलन हुआ, जिसपर लाठीचार्ज किया गया। अब शिक्षकों के इस मुद्दे पर सरकार ने महागठबंधन नेताओं की बैठक बुलाई और समाधान का आश्वासन दिया।
आशा कार्यकर्ताओं का धरना-प्रदर्शन लगातार जारी है। इनके धरना-प्रदर्शन से प्राइमरी लेवल की स्वास्थ्य व्यवस्था लचर हो गई है।
4. विभाग में रद्द करने पड़े ट्रांसफर
राजस्व और भूमि सुधार विभाग में किया गया 497 अफसरों का ट्रांसफर रद्द किया गया। जून माह में यह ट्रांसफर किया गया था। इस पर काफी विवाद हुआ। सरकार पर सवाल भी उठे।
इससे पहले स्वास्थ्य विभाग में 500 कर्मियों का ट्रांसफर भी रद्द किया गया। इससे सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठ गए थे।
अब जानिए, सरकार के सालगिरह पर क्या कह रहे अलग-अलग पार्टियों के नेता
बिहार में सकारात्मक विपक्ष नहीं: जदयू
जदयू के प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक झा कहते हैं कि बिहार में महागठबंधन सरकार का एक साल हो गया है। नीतीश कुमार ने सात पार्टियों का समन्वय बनाकर महागठबंधन का स्वरूप तय किया। बदलाव की बयार हमेशा बिहार से बही है और न्याय के साथ विकास के एजेंडे पर सरकार काम कर रही है। युवाओं को कैसे रोजगार मिले, इस दिशा में सरकार की ओर से प्रयास हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार यानी हर क्षेत्र में सरकार काम कर रही है। दूसरी तरफ भाजपा के लोग सत्ता विलाप कर रहे हैं। नकारात्मक मुद्दों को लेकर वे हमेशा सरकार को घेरने का प्रयास करते हैं। सकारात्मक विपक्ष की भूमिका नहीं निभाते हैं।
नफरत की राजनीति से ऊपर उठे भाजपा के लोग: राजद
राजद विधायक रणविजय साहु कहते हैं कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सरकार ने अपना कमिटमेंट पूरा किया है। दस लाख युवाओं को रोजगार देने का काम जारी है। सभी सेक्टर में नियुक्तियां निकल रही हैं। बिहार में जितना विकास इस साल हुआ, उतना पहले कभी नहीं हुआ।
उन्होंने कहा कि बीजेपी के लोग हताश और निराश हैं। विपक्षी एकता का आगाज पटना और बेंगलुरु में हुआ, जिससे वह घबरा गए हैं। नफरत की राजनीति से लोग ऊपर उठ गए हैं। लोग मुद्दे की बात कर रहे हैं। बिहार मॉडल बना है। बिहार ने करवट लिया है। देश में भी आगे बदलाव दिखेगा।
गवर्नेंस का तरीका बदलने की जरूरत: भाकपा-माले
भाकपा-माले महागठबंधन में शामिल है, लेकिन मंत्रिमंडल में नहीं है। माले पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेंद्र झा कहते हैं कि भाजपा को बाहर कर महागठबंधन की सरकार बनी, जो बड़ी उपलब्धि थी।
उन्होंने कहा कि बीजेपी समाज में सांप्रदायिकता फैलाने वाली पार्टी है, जिसे सत्ता से बाहर करना जरूरी था। हालांकि, इस सरकार को और अच्छा काम करना पड़ेगा। जनहित की योजना बनाकर काम करना होगा।
माले नेता ने कहा कि शिक्षकों के मुद्दे पर सरकार ने सकारात्मक रवैया दिखाया है। आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल चल रही है, लेकिन सरकार पहल नहीं कर रही है। इनकी संख्या एक लाख है। यह सरकार बेहतर तरीके से जनहित में काम करती है तो बिहार में बीजेपी की जमीन समाप्त हो जाएगी। वे कहते हैं कि गवर्नेंस का तौर-तरीका बदलना होगा।
भाई-भतीजावाद को बढ़ाने वाली सरकार: बीजेपी
बीजेपी नेता और नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा कहते हैं बिहार सरकार ठगा-ठगी वाली सरकार है। एक को प्रधानमंत्री बनाने और दूसरे को मुख्यमंत्री बनाने का सपना दिखा कर चलाई जा रही है। राज्य में भ्रष्टाचार चरम है। विकास कार्य ठहर गया है। यह सरकार अपनी लीक से हट गई है।
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाले को न्याय के साथ विकास दिख ही नहीं रहा। उन्होंने कहा कि राज्य में जो रोजगार सृजन हुआ, वह एनडीए की सरकार में हुआ। यह तो भाई-भतीजावाद को बढ़ाने वाली सरकार है।
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