बिहार | सदर अस्पताल में बेड की कमी की वजह से मरीजों को परेशानी उठानी पड़ती है. जगह फुल रहने की स्थिति में भर्ती होने वाले मरीजों को मजबूरन घर लौटा दिया जाता है. जिला अस्पताल में 500 बेड होनी चाहिए मगर आलम यह है कि अस्पताल के तमाम वार्डों को मिलाकर सिर्फ 61 बेड ही लगे हैं. वार्ड में बेड खाली नहीं रहने कारण मरीजों को मजबूरन निजी अस्पताल में इलाज कराने जाना पड़ता है.
सदर अस्पताल में कुल छह वार्ड हैं. इनमें से महिला वार्ड में 12 बेड, पुरुष वार्ड में 12 बेड, सर्जिकल वार्ड में 12 बेड, शिशु वार्ड में 10 बेड, रिकवरी वार्ड वार्ड में 5 बेड एवं लेबर रूम में 10 बेड हैं. वर्तमान में आलम यह है कि सभी बेड पूरी तरह से फुल हैं. अगर किसी मरीज की छुट्टी होती है तो दो से तीन मरीज भर्ती होने के
इंतजार में रहते हैं. सर्जिकल वार्ड में भी 12 बेड हैं, मगर अधिकतर समय यह वार्ड पूरी तरह से फुल रहता है. इसमें सामान्य रूप से कमर फैक्चर, पैर की हड्डी टूटी हुई, जंघा टूटा हुआ व अन्य कई तरह की परेशानी के बाद मरीज भर्ती रहते हैं, ऐसे में इन मरीजों को लंबे समय तक भर्ती होने की मजबूरी बन जाती है. अलीचक के सुरेश को पैर की हड्डी टूटी हुई थी, दो दिन पूर्व जब अस्पताल में बेड खाली नहीं था तो वे अपने गांव चले गये.
इमरजेंसी में 24 घंटे में आते हैं 100 से अधिक मरीज सदर अस्पताल के नोडल पदाधिकारी डॉ. कुणाल शंकर ने बताया कि सदर अस्पताल की इमरजेंसी में 24 घंटे और तीन शिफ्टों में करीब सौ से अधिक मरीज भर्ती होते हैं. हालांकि अधिकतर मरीजों को इलाज के बाद छोड़ दिया जाता है. हालांकि 12 से 15 मरीज प्रतिदिन ऐसे आते हैं, जिन्हें भर्ती करना जरूरी रहता है. इन मरीजों को किसी तरह बेड उपलब्ध करवाकर भर्ती करवा दिया जाता है. भी दिन के दो बजे तक करीब छह से सात मरीज ऐसे आए जिनको भर्ती करना अनिवार्य था.
इमरजेंसी में तैनात डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि कुछ मरीजों को तत्काल इमरजेंसी में रखकर इलाज करवाया जा रहा है. एक मारपीट में गंभीर रूप से जख्मी मरीज आया था, मगर आईसीयू की व्यवस्था नहीं रहने की वजह से उसका सिटी स्कैन करवाकर बेहतर इलाज के लिए रेफर कर दिया गया.