मुंगेर न्यूज़: प्राइवेट स्कूलों में प्रतिवर्ष बेतहाशा फीस सहित अन्य शुल्क बढ़ाये जाने से मध्यम आय वर्ग के लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला कराने को मजबूर हैं. कारण लगभग सभी प्राइवेट स्कूल वालों ने 1500-3000 हजार रुपए प्रतिमाह तक फीस रखी है. जो 30-35 हजार प्रतिमाह वेतन पाने वालों को भी परेशानी में डाल देता है. विशेषकर जिनके पास दो-तीन बच्चे हैं, वे तो इस महंगी हुई फीस में अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में दाखिला की सोच भी नहीं पा रहे हैं. अभिभावक मदन सिंह, आदित्य कुमार, सुरेश साव सहित कई ने बताया कि उन्होंने शुरू में अपने बच्चों को सरस्वती शिशु मंदिर, नेट्रोडेम एकेडमी मुंगेर में दाखिला करवाया था. पर वहां की फीस भी काफी बढ़ गई. जिस कारण उन्हें अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला कराना पड़ा. वहीं कई अन्य अभिभावकों ने बताया कि वे एलकेजी में नामांकन को लेकर नेट्रोडेम एकेडमी में प्रयास कर रहे थे. पर वहां की फीस के साथ ही अन्य शुल्क इतने बताए गए कि उन्हें प्राइवेट स्कूलों में नामांकन कराने की योजना पर विराम लगाना पड़ा. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार फीस बढ़ोतरी से परेशान लोगों ने अब प्राइवेट स्कूलों से अपने बच्चों का ट्रांसफर कराकर सरकारी स्कूलों में नाम लिखाना शुरू कर दिया है. प्राइवेट स्कूलों की महंगी फीस की जगह अब लोग, सरकारी स्कूलों की तरफ मुखातिब हो रहे हैं .
आमदनी कम, बढ़ा खर्च, सरकारी स्कूलों में पहुंचे लोग प्राइवेट स्कूलों में बढ़ती जा रही फीस लोगों पर कहर बनकर टूट रही है. फीस बढ़ोतरी की वजह से लोगों की आर्थिक स्थिति बुरी तरह से प्रभावित हुई है. आम आदमी को प्राइवेट स्कूलों की महंगी शिक्षा की जगह सरकारी स्कूलों में बच्चों को मिलने वाली मुफ्त शिक्षा रास आ रही है. मुंगेर के बासुदेवपुर इलाके में रहने वाले रवि कुमार अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाना चाहते हैं. प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले रवि कुमार महीने भर में मुश्किल से 25,000 रुपए कमाते हैं. माता पिता सहित सात सदस्यों का उनका परिवार है.
वहीं बेरोजगारी का कहर भी परिवारों पर टूटा है. लोगों की आर्थिक स्थिति पर भी इसका असर हुआ है. महंगी शिक्षा की वजह से अब पढ़ाई पर भी इसकी आंच देखने को मिल रही है.
प्राइवेट तथा सरकारी स्कूलों में पढ़ाई को उपलब्ध सीटें--
मुंगेर शहर में प्राइवेट स्कूलों की संख्या सीमित है, जिस कारण यहां प्राइवेट स्कूलों में नामांकन को सीटें कम रहती है. वहीं सरकारी स्कूलों की संख्या लगभग 1200 है. जिस कारण वहां नामांकन को लेकर काफी सीटें रहतीं हैं.