दो साल में 10 गुना बढ़ा गंगा में प्रदूषण

Update: 2023-05-28 07:04 GMT

पटना: देश की जीवन दायनी गंगा नदी गंगा सागर तक पहुंचते-पहुंचते कई जगहों पर गंगा जल पीने तो क्‍या स्नान करने के लायक भी नहीं रह गया है। यह स्थिति तब है, जब नमामि गंगा प्रोजेक्ट के तहत करोड़ों की राशि गंगा नदी के जल को निर्मल बनाने के मद में खर्च की जा चुकी है। इसमें प्लास्टिक की थैलियों, दूध की पॉलीथीन, नदी के किनारे शवों का जलाना, गंगा नदी को लगातार प्रदुषित कर रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस साल मार्च महीने में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के 94 जगहों से गंगा जल की जांच की।

शहर के सीवरेज ने गंगा जल की ऐसी दुर्दशा कर दी है कि अब गंगा के पानी को फिल्टर तक नहीं किया जा सकता है। पिछले दो वर्षों में पटना के घाटों पर गंगा जल का प्रदूषण 10 गुना अधिक हो गया है। वर्ष 2021 में गांधी घाट और गुलबी घाट पर गंगाजल में टोटल कोलिफॉर्म नामक खतरनाक जीवाणुओं की संख्या 100 मिलीलीटर पानी में 16000 थी। जबकि वर्ष 2023 के शुरुआती महीने में यह संख्या बढ़कर 160000 हो गयी है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। इसका मुख्य कारण शहर के सीवरेज का बिना उपचार में सीधे गंगा में जाना माना जा रहा है।

जांच में पाया गया है कि टोटल कोलिफॉर्म नामक जीवाणुओं की संख्या गंगा जल में मानक से 32 गुना अधिक हो गयी है। गंगा जल का प्रदूषण स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। गंगा का पानी पीना तो दूर नहाने लायक भी नहीं रहा है। ऐसी स्थिति बक्सर से लेकर पटना होते हुए कहलगांव तक है। सबसे अधिक पटना के घाटों पर गंगा जल प्रदूषित है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा देश भर की नदियों की गुणवत्ता जांच नियमित तौर पर करवायी जाती है।

इस जांच में गंगा नदी का कुल 5500 किलोमीटर की यात्रा की गई। रिपोर्ट में पाया गया कि नदी के पानी में प्रदूषण का बुरा हाल है। रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई कि गंगा नदी के पानी को पीना तो दूर उससे नहाना भी मुश्किल है। वहीं कानपुर में ग्रामीण इलाके तेनुआ के पास प्रति सौ मिलीग्राम जल में कोलीफॉर्म (TC) जीवाणुओं की कुल संख्या 33 हजार के पार थी, जबकि यह संख्या अधिकतम 5000 होनी चाहिए थी।

दो साल में दस गुना बढ़ा प्रदूषण: 5500 किलोमीटर की गंगा यात्रा में बिहार में गंगा नदी के कुल प्रवाह 445 किलोमीटर को कवर किया गया। बोर्ड ने राज्य में 33 जगहों पर गंगा जल की शुद्धता की जांच की।

पटना के बाद बक्सर से लेकर कहलगांव तक गंगा नदी के पानी में सबसे ज्यादा प्रदूषण पाया गया. मानकों के अनुसार यहां पर गंगा पानी का पीना तो दूर नहाने के लायक भी नहीं है। पटना के घाटों पर गंगा जल का प्रदूषण बीते दो साल में दस गुना बढ़ गया है। यहां पर गंगा के पानी में कोलीफॉर्म भारी मात्रा में मिला।

2021 में यानी दो साल पहले पटना के गांधी घाट और गुलबी घाट में कुल कोलीफॉर्म की संख्या प्रति सौ मिलीलीटर पानी में 16000 थी। अब कुल कोलीफॉर्म की कुल संख्या बढ़कर ( जनवरी, 2023 में ) 160000 हो गई है. कोलीफॉर्म एक बेहद ही खतरनाक जिवाणु है।

बढ़े हुए कोलीफॉर्म की मुख्य वजह बगैर ट्रीटमेंट किए शहर के सीवेज को सीधे गंगा नदी में प्रवाहित किया जाना है. केवल पटना में 150 एमएलडी (mega liters per day) गंदा पानी सीधे गंगा नदी में गिर रहा है। इसके अलावा 13 वैज्ञानिकों के एक शोध दल ने ये पाया कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी से बिहार के बेगूसराय के बीच 500 किलोमीटर की दूरी में गंगा नदी व इसकी उप धाराओं के पानी में 51 तरह के ऑर्गेनिक केमिकल्स हैं। ये केमिकल्स ना केवल मानव स्वास्थ्य के लिए बल्कि जलीय जीव और पौधों के लिए भी बेहद नुकसानदायक हैं।

बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक देश में चार जगहों, ऋषिकेश (उत्तराखंड), मनिहारी व कटिहार (बिहार) और साहेबगंज व राजमहल (झारखंड) में गंगा के पानी को ग्रीन कैटेगरी में रखा गया है. ग्रीन कैटेगरी में रखे जाने का मतलब ये है कि पानी से किटाणुओं को छान कर पीने में इस्तेमाल किया जा सकता है।

जबकि उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर गंगा का पानी ग्रीन कैटेगरी में नहीं है। 25 स्थानों पर गंगा जल को हाई लेवल पर साफ करने के बाद पिया जा सकता है। 28 जगहों के पानी को नहाने लायक बताया गया. गंगा जल में बढ़ रहे प्रदूषण की बड़ा वजह सॉलिड और लिक्विड वेस्ट है।

हाल ही में बिहार सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सॉलिड और लिक्विड वेस्ट का वैज्ञानिक तरीके से निपटारा नहीं कर पाने को लेकर राज्य सरकार पर चार हजार करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। पटना नगर निगम का 60 प्रतिशत हिस्सा आज भी ड्रेनेज नेटवर्क से जुड़ा हुआ नहीं है। वहीं नगर निगम क्षेत्र के 20 वार्ड में ड्रेनेज के साथ-साथ सीवरेज भी नहीं है।

Namami Gange में खर्च हुए करोड़ों रुपये: 13 फरवरी 2023 को केंद्रीय जल शक्ति (जल संसाधन) राज्य मंत्री विश्वेश्वर टुडू ने संसद को बताया कि नमामि गंगे कार्यक्रम गंगा नदी में प्रदूषण को कम करने में कारगर रही है। उन्होंने कहा कि 2014 से केंद्र ने नदी की सफाई के लिए 32,912.40 करोड़ रुपये के बजट के साथ 409 परियोजनाएं शुरू की हैं। लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक गंगा नदी के पूरे भाग के 71 प्रतिशत क्षेत्र में कोलीफॉर्म के खतरनाक स्तर पाए गए। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2022 की रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तर प्रदेश में कोलीफॉर्म का स्तर सात स्टेशनों पर सबसे ज्यादा था।

इसमें स्नान घाट (जाजमऊ पुल), कानपुर डाउनस्ट्रीम, मिर्जापुर डाउनस्ट्रीम, चुनार, मालवीय पुल पर वाराणसी डाउन-स्ट्रीम, गोमती नदी भुसौला और गाजीपुर में तारी घाट शामिल है। जनवरी 2022 में पश्चिम बंगाल में 14 स्टेशनों से नमूने लिए गए. सभी में उच्च मल प्रदूषण मिला।

लगातार बढ़ रहे प्रदूषण (pollution) की वजह

22 जुलाई, 2022 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (NGT) गंगा प्रदूषण से जुड़े 1985 के मामले की सुनवाई कर रहा था. सुनवाई में एनजीटी ने कहा कि गंगा के 60 प्रतिशत हिस्से में बिना किसी ट्रिटमेंट के गंदगी बहाई जा रही है।

नमामि गंगे (Namami Gange) मिशन-2 को मंजूरी

नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत 31 मार्च, 2021 तक गंगा और उसकी सहायक नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए 20,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ जून, 2014 में शुरू की गई थी. केंद्रीय मंत्री विश्वेश्वर टुडू ने बीते फरवरी माह में राज्य सभा में लिखित उत्तर में बताया था कि केंद्र सरकार द्वारा एनएमसीजी (नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा) को वित्तीय वर्ष 2014-15 से 31 जनवरी, 2023 तक 14084.72 करोड़ रिलीज किए जा चुके हैं. वहीं 31 दिसंबर, 2022 तक 32,912.40 करोड़ की लागत से कुल 409 प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया जिनमें से 232 प्रोजेक्ट को पूरा कर चालू कर दिया गया है

अब 2026 तक के लिए 22500 करोड़ रुपये के बजटीय प्रावधान के साथ नमामि गंगे मिशन-2 को केंद्र सरकार ने अपनी स्वीकृति दी है. यह बात दीगर है कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट ने कई महत्वपूर्ण आयाम हासिल किए हैं, परिदृश्य बदलेगा भी. लेकिन, यह भी कटु सत्य है कि जनभागीदारी के बगैर गंगा नदी की अविरलता व निर्मलता सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी

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