गोरखपुर न्यूज़: बांसगांव थाने की पुलिस ने रामसकल और उसके परिवारीजनों के खिलाफ 26 मार्च को मुकदमा दर्ज करने के बाद पूरे परिवार को लगातार डरा-धमका रही थी. रामसकल के परिवारीजनों के साथ ही साथ ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस की मंशा थी कि डरा-सहमा परिवार भागता-फिरता रहेगा तो अपनी तहरीर पर मुकदमा दर्ज कराने का दबाव नहीं बना पाएगा. यही वजह है कि 70 दिनों में पुलिस ने रामसकल के यहां 7 बार पहले भी छापा डाला था.
रामसकल की पत्नी श्रीमती और मासूम बेटी गुड़िया बार-बार यही कह रही थी कि उनके पट्टीदारों के दबाव में पुलिस परिवार को बार-बार डरा-धमका रही थी. गुड़िया का कहना था कि जिस दिन विवाद हुआ उस दिन उसके पिता रामसकल घर पर अकेले थे. पट्टीदारों के पक्ष से आधा दर्जन लोग थे. उन्हीं लोगों ने उसके पिता को बेरहमी से मारापीटा. इतना ही नहीं उसके पिता जमीन पर थे और रामबचन उनके ऊपर थे. उनके अन्य भाई लाठी और कुल्हाड़ी से उसके पिता पर प्रहार कर रहे थे. उसके पिता या दूसरे पक्ष के किसी भी व्यक्ति को जो भी चोटें आईं थीं वह उन्हीं लोगों के हमले की वजह से आई थीं.
गुड़िया और उसकी मां श्रीमती के इन आरोपों को ग्रामीण भी सही बता रहे थे. ग्रामीणों का भी कहना था कि घटना के एक-दो दिन बाद तक रामसकल अपनी रपट दर्ज कराने थाने पर जाते थे लेकिन बाद में न जाने क्या हुआ कि पुलिस उनकी गिरफ्तारी के लिए छापे डालने लगी. बीते 70 दिनों में 7 पुलिस ने रामसकल के यहां छापा डाला था. यही वजह थी कि वह बुरी तरह डर गए थे. पुलिस को देखकर रामसकल डर के कारण ही भागे थे.
100 मीटर ही भाग पाए और बेसुध होकर गिर पड़े
पुलिस कर्मियों ने तख्त पर बैठकर भोजन कर रहे रामसकल को ललकारा. रामसकल बुरी तरह घबरा गए और भोजन छोड़कर भागने लगे. 100 मीटर ही भाग पाए थे कि बेसुध होकर जमीन पर गिर गए. इसके बाद पुलिसवालों ने लात-घूंसे बरसाने शुरू कर दिए. रामसकल ने कोई हरकत नहीं की तो उन्होंने समझा की वह बेहोश होने का नाटक कर रहे हैं लेकिन जब उन्होंने उठाया तो वह सच में बेहोश थे. इसके बाद वे रामसकल को बाइक से बांसगांव सीएचसी ले गए, जहां डॉक्टरों ने बताया कि उनकी मौत हो गई लेकिन पुलिसकर्मियों ने रेफर कराया और जिला अस्पताल लेकर चले गए. वहां भी डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया.