Patna: डीआरडीओ की तकनीक से साफ होगा सीवरेज

Update: 2024-07-16 05:46 GMT

पटना: सूबे में नदियों के प्रदूषण की मुख्य वजह बिना उपचारित सीवेज को प्रवाहित करना है. इसके कारण नदियों में टोटल कोलीफार्म और फीकल कोलीफार्म जीवाणुओं की संख्या मानक से अधिक है. इसकी संख्या कम करने में हरित तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हरित तकनीक अपनाने के लिए पहल करने जा रहा है. हरित तकनीक स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सरकारी कार्यालयों और अपार्टमेंट में लगाया जा सकता है. यह छोटे शहरों के लिए भी उपयोगी साबित होगा. डीआरडीओ की ओर से विकसित ‘बायो एसटीपी’ हरित तकनीक है. इसका पटना में जगह ट्रायल कर इसकी क्षमता का आकलन किया जाएगा. हरित तकनीक अपनाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सभी नगर निकायों को दिशा-निर्देश भी जारी करेगा ताकि विद्यालय, कॉलेज, अस्पताल, बड़े-बड़े अपार्टमेंट और सरकारी कार्यालयों में हरित तकनीक का इस्तेमाल हो सके. डीआरडीओ की ओर से विकसित बायो एसटीपी को लेकर पिछले दिनों प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुख्यालय में संवाद भी स्थापित किया गया था. इसमें इस तकनीक की खासियतों के बारे में बताया गया था. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. डीके शुक्ला ने बताया कि छोटे शहरों में हरित तकनीक का उपयोग कर सीवरेज की सफाई कम खर्च पर हो सकती है. नगर निकायों को दिशा-निर्देश जारी किया जाएगा ताकि अपनी सुविधा के अनुसार उन शहरों में हरित तकनीक का उपयोग किया जा सके.

बोर्ड को दी गई है जानकारी: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एस चंद्रशेखर ने बताया कि हरित तकनीक के कई विकल्प है. उसमें से डीआरडीओ का भी है. जिन्होंने इस तकनीक के बारे में विस्तार से जानकारी बोर्ड को दी है. इस तकनीक को अपनाने से सीवरेज ट्रीटमेंट का विकेन्द्रीकृत व्यवस्था बना सकता है. यह तकनीक छोटे स्तर पर लगाया जा सकता है जिसकी क्षमता कम होती है. पटना में जगह बायो एसटीपी को लगाकर ट्रायल किया जाएगा.

कैसे करेगा काम: डीआरडीओ की ओर से विकसित बायो एसटीपी गुरुत्वाकर्षण के आधार पर कार्य करता है. पूरी प्रक्रिया में किसी प्रकार की ऊर्जा (बिजली) की खपत नहीं होती है. इस तकनीक के तहत विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं के समूह का उपयोग कर सीवेज का शोधन किया जाता है. एनोरोबिक डायजेस्टर टैंक बनाया जाता है. टैंक में निश्चित मात्रा में जीवाणुओं के समूह को बार ही डालना पड़ता है, जो स्वयं ही अपनी संख्या बढ़ाते हैं और सतत अपने काम में लगे रहते हैं. सीवेज को टैंक में दिनों तक रखने पर ये जीवाणु उप करते हैं. यह नई तकनीक है.

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