महाराष्ट्र में एनसीपी में बड़ी फूट हो गई है. नतीजा ये हुआ है कि चाचा-भतीजे यानी शरद पवार और अजित पवार के रास्ते अलग हो चुके है. चाचा को गच्चा देकर भतीजे अजित पवार महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गए हैं. अब बिहार में इसी तरह का कयास लगाया जा रहा है. कुछ राजनेताओं का मानना है कि बिहार में जेडीयू के कई नेता पार्टी और सीएम नीतीश कुमार से नाराज चल रहे हैं. जेडीयू में भगदड़ सी मची हुई है. हालांकि, इस तरह के दावे बीजेपी और उपेंद्र कुशवाहा द्वारा किया जा रहा है. लेकिन अगर आंकड़ों पर गौर डालें तो जेडीयू में भी भगदड़ की स्थिति होने वाली है. हो सकता है ये टूट लोकसभा चुनाव 2024 के बाद हो लेकिन होना है ऐसा फिलहाल आंकड़े इशारा कर रहे हैं. आइए जानते हैं उन कारणों के बारे में जो इस तरफ इशारा कर रहे हैं कि जेडीयू में भगदड़ हो सकती है.
क्या आरजेडी-जेडीयू करेंगी समझौता?
मौजूदा बिहार विधानसभा में फिलहाल जो दलीय स्थिति है उसे देखकर तो ऐसा ही लग रहा है कि हो सकता है महागठबंधन में शामिल दलों के बीच लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति बन जाए लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सहमति बनती बिल्कुल भी नहीं दिख रही है. जहां आरजेडी अपनी जीती हुई यानि मौजूदा सीटों को नहीं छोड़ना चाहेगी तो वहीं जेडीयू भी अपनी मौजूदा सीटों से समझौता नहीं करेगी. दूसरी तरफ, कांग्रेस व दूसरे दल ये चाहेंगे कि अगर महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ा जाता है तो ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा जाए. अगर कांग्रेस और दूसरे दलों को ज्यादा सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिलती हैं तो निश्चित तौर पर आरजेडी और जेडीयू को ही सीटों पर समझौता करना पड़ेगा.
क्या है दलीय स्थिति?
बात मौजूदा विधानसभा सत्र के सीटों की करें आरजेडी इस समय 79 सीटों के साथ शीर्ष पर है. वहीं, जेडीयू 45, कांग्रेस 19, भाकपा (माले) 12, भाकपा (2), माकपा (2) और निर्दलीय 2 हैं. इस प्रकार सरकार में 164 विधायक हैं जबकि विपक्ष में बीजेपी 78, हम 4, AIMIM के साथ 78 विधायक हैं. बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं.
बड़ा सवाल?
अब सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ 79 सीटों पर आरजेडी चुनाव लड़ेगी? जवाब होगा नहीं! क्योंकि 79 सीटों पर तो आरजेडी के सिटिंग एमएलए है और यही बात जेडीयू के लिए लागू होगी कि क्या जेडीयू सिर्फ 45 सीटों पर चुनाव लड़ेगी? तो यहां भी जवाब होगा कि नहीं! क्योंकि जेडीयू के 45 सीटों पर सिटिंग एमएलए हैं. इसी तरह कांग्रेस व दूसरे दलों के लिए भी यही फार्मूला लागू होगा. जीता हुआ एमएलए अपनी सीट छोड़ना नहीं चाहेगा. अगर छोड़ता भी है तो कहीं ना कहीं असंतोष रहेगा और उसका प्रभाव चुनावी परिणामों पर निश्चित तौर पर होगा.
अब बात करते हैं बीते विधानसभा चुनाव की. आरजेडी ने लगभग सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. आरजेडी लगभग हर हारे हुए सीटों पर नंबर दो पर रही थी. ऐसे में जो पिछली बार जेडीयू से आरजेडी के प्रत्याशी हारे थे उनके और जेडीयू के मौजूदा जीते हुए विधायकों के बीच खीचातानी होगी. जहां मौजूदा समय के आरजेडी व जेडीयू एमएलए अपनी सीट दूसरे को देने के लिए तैयार नहीं होंगे तो वहीं नंबर दो पर आने वाले प्रत्याशी भी विधायक बनना चाहेंगे.
क्या सच साबित होगा विपक्ष का दावा?
कुल मिलाकर यह कहना सही होगा कि सीटों को लेकर लड़ाई बगावत का रूप ले सकती है. विपक्षी नेताओं का ये दावा भी सच साबित हो सकता है कि आनेवाले समय में जेडीयू में बड़ी टूट हो सकती है. वहीं, आरजेडी में भी कुछ विधायकों का खुलकर विरोध जताना भी सामने आता रहता है. पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं. वहीं, जेडीयू के भी कुछ नेताओं में असंतोष है. वहीं, दूसरी तरफ राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी के लिए खुला मैदान है. बीजेपी को सीटों को लेकर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करना है. अगर समझौता करना भी होता है तो ज्यादा से ज्यादा 20 या 30 सीटों पर, जिसे करना बीजेपी के लिए कोई बड़ी बात नहीं है.
अब ऐसे में ये देखना दिलचश्प होगा कि आरजेडी और जेडीयू अपने नाराज लोगों को कैसे मनाती है. क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान, पशुपति पारस जैसे तमाम नेता निश्चित तौर पर आरजेडी-जेडीयू में फूट डालने का पूरा प्रयास करेंगे और उसका सीधा-सीधा फायदा बीजेपी को होगा.