108 साल से चल रहे जमीन विवाद में कोर्ट का अहम फैसला, जानें पूरी कहानी
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आरा: बिहार के आरा स्थित सिविल कोर्ट ने ब्रिटिश शासन काल के वक्त दायर किए गए एक जमीन विवाद के मामले में अहम फैसला सुनाया. सिविल कोर्ट सप्तम ऐडीजे श्वेता कुमारी सिंह ने 108 साल से चल रहे टाइटल सूट का इसी साल 11 मार्च को अपना निर्णय सुनाया और उक्त मामले में अब जब्त जमीन को मुक्त करने का फैसला दिया गया है.
मिली जानकारी के अनुसार कोईलवर निवासी नथुनी खान की 1911 में मृत्यु हुई थी. उसके बाद उनकी बीवी जैतून, बहन बदलन और बेटी सलमा के बीच जमीन बंटवारे को लेकर झगड़ा शुरू हो गया था. स्थिति यह हुई कि 1914 में मामला कोर्ट तक जा पहुंचा था. तब 14 फरवरी 1931 को तत्कालीन कार्यपालक दंडाधिकारी की ओर से 146 के तहत जमीन जब्त कर ली गई. उसके बाद कोर्ट में टाइटल शूट किया गया. उसमें फैसला आने बाद अपील दायर करने का दौर शुरू हो गया.
केस के रिस्पांडेड अधिवक्ता सतेंद्र कुमार सिंह के मुताबिक, पहले 1914 हिस्सेदारी को लेकर वाद दाखिल किया गया. जिसके बाद जमीन के एक हिस्सेदार से कोईलवर पठानटोला निवासी स्वर्गीय दरबारी सिंह ने तीन एकड़ जमीन खरीद ली.
इधर, कोईलवर के ही रहने वाले दिवंगत लक्ष्मण सिंह ने भी स्वर्गीय नथुनी खान के वारिसान से कुछ हिस्से की जमीन खरीदी. जिसके बाद दोनों खरीदारों के बीच खरीदी हुई संपत्ति को लेकर मुकदमा शुरू हो गया. फिर 1927 में भी केस फाइल किया गया था. अंतिम केस फाइल 1970 में किया गया था, जिसमें फैसला आने पर 1992 में अपील दायर की गई थी. उसमें सुनवाई करते हुए सप्तम एडीजे श्वेता कुमारी सिंह ने मामले का निपटारा किया. साथ ही जब्त जमीन को भी मुक्त करने का आदेश दे दिया है.
लंबे कानूनी पेंच की लड़ाई लड़ने के बाद आए इस फैसले से जहां अपीलार्थी पक्ष यानी स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह के अधिवक्ता राजनाथ सिंह इस फैसले से नाखुश नजर आ रहे हैं. उनका मानना है कि इतने लंबे समय के बाद जो फैसला दिया गया है वो कागजात और कानून के अनुकूल नहीं हुआ है. इसलिए उनके पक्ष की ओर से इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में चुनौती देने की बात कही जा रही है.
जबकि 108 सालों के बाद रिस्पांडेड पक्ष में फैसला आने के बाद स्वर्गीय दरबारी के वंशजों में काफी खुशी देखी जा रही है. फैसला आने के बाद स्वर्गीय दरबारी सिंह के पोते अरविंद सिंह का कहना है कि हम लोगों को काफी खुशी महसूस हो रही है. लेकिन अफसोस ये है कि हमारे देश की न्याय प्रणाली इतनी जटिल है कि उसके फैसले का इंतजार सालों-सालों तक करना पड़ता है. काश हमारे दादा जी के समय ही यह फैसला आ जाता तो कितना अच्छा रहता. हमारी चार पीढ़ियों के बाद यह फैसला आया. खैर देर से ही सही इस फैसले का हम लोग आदर करते हैं.
इधर, रिस्पांडेड पक्ष के अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह ने कहा कि इस केस को हमारे तीन पीढ़ी द्वारा बतौर अधिवक्ता के रूप में लड़ा गया है. जिसके बाद यह फैसला आया है. हम लोग इस फैसले को सम्मान करते हैं. बहरहाल, कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से ना केवल जिनके पक्ष में फैसला आया है, वह लोग चर्चा कर रहे हैं बल्कि इस फैसले को लेकर अधिवक्ता सहित आम लोगों के बीच भी काफी तेजी से चर्चा हो रही है.