हिंदी का वजूद आज भी हैं कायम : प्रधानाचार्य

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Update: 2022-09-14 18:10 GMT
बांका। जिला मुख्यालय स्थित पंडित वासुदेव टेक नारायण झा सरस्वती शिशु मंदिर करहरिया में बुधवार को हिंदी दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सेवानिवृत प्रो. श्याम सुंदर ठाकुर, विद्यालय के प्रधानाचार्य संतोष आनंद व हिंदी के आचार्य पंकज कुमार मिश्र के द्वारा दीप प्रज्वलन एवं बंदना के साथ किया गया। मौके पर सेवानिवृत प्रोफेसर ने कहा कि हिंदी दिवस प्रत्येक वर्ष भारत में 14 सितंबर को देश भर में मनाया जाता है। देश आजादी के 2 साल बाद 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के कहने पर 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। विद्यालय के प्रधानाचार्य ने हिंदी को जनमानस की भाषा बताया। कहा कि शुरू से ही इसे वरीयता मिली है।
यह न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक संप्रेषण और परिचायक भी है। सरल सहज और सुगम होने के कारण यह पूरे देश को एक सूत्र में बांधती है। तकनीकी और आर्थिक विकास के कारण बेशक अंग्रेजी पूरे देश पर हावी होती जा रही है, लेकिन हिंदी का वजूद आज भी कायम है। हिंदी के आचार्य ने कहा कि 1947 में जब भारत ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुआ तो बहुभाषी इस देश में किसी एक भाषा को राजभाषा बनाने का संकट खड़ा हो गया। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार और जाने-माने इतिहासकार राजेंद्र सिंह, हजारी प्रसाद द्विवेदी, काका कालेकर, हरिवंश राय बच्चन, गोविंद दास ने इस मुद्दे को संसद में उठाया था। आचार्य किशोरी प्रसाद द्वारा अभिवादन ज्ञापन का कार्य हुआ और शांति मंत्र के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया। इस मौके पर विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य विश्वजीत वर्मा, पंकज कुमार मिश्र, प्रसाद सिंह, किशोरी प्रसाद, मनोज मिश्रा, शानू प्रिया, सुषमा पाठक, संतोष झा, नीलम दत्ता सहित सभी आचार्य एवं कर्मचारी आदि मौजूद थे।
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