पूर्व इंटरनेशनल फुटबॉलर प्रभाकर मिश्रा नहीं रहे

Update: 2023-07-15 10:07 GMT

बिहार न्यूज: प्रभाकर मिश्र- इस नाम से आज के लोग भले वाकिफ न हों, लेकिन यह शख्स 1960-1970 के दशक में देश के फुटबॉल जगत का एक चमकता सितारा हुआ करता था। वह पिछले बीस सालों से मुफलिसी की जिंदगी काटते रहे और अब गुमनामी के बीच बीमारियों से जूझते हुए उन्होंने हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं। रांची के धुर्वा इलाके में एक छोटे से घर में रह रहे प्रभाकर मिश्र को उचित इलाज तो नहीं ही मिला, उन्हें मौत के बाद एक सम्मानजनक आखिरी विदाई तक हासिल नहीं हो सकी। वह अपने पीछे पत्नी और सात-आठ साल के बेटे को छोड़ गए हैं, जिनके सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनकी आगे की जिंदगी कैसे कटेगी? प्रभाकर मिश्रा ने फुटबॉल के मैदान में अपना करियर 1966 में बिहार के मुंगेर से शुरू किया था। भागलपुर यूनिवर्सिटी टीम की ओर से खेलते हुए वह इतने लोकप्रिय हुए कि उन्हें उस वक्त बिहार का सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर माना जाता था।

वह 1977 में देश की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम की ओर से खेले। 1976 में देश के सबसे बड़े राष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट संतोष ट्रॉफी के थर्ड टॉप स्कोरर रहे। इस टूर्नामेंट में उन्होंने छह गोल दागे थे। इसके पहले वह कोलकाता के मशहूर फुटबॉल क्लब मोहम्मडन स्पोर्टिंग, खिदिरपुर स्पोर्टिंग, एरियंस स्पोर्टिंग क्लब की ओर से खेलते रहे। कुछ वक्त तक उन्होंने बांग्लादेश में भी क्लब फुटबॉल खेला। 1980 के दशक में उन्हें रांची स्थित पब्लिक सेक्टर की कंपनी एचईसी (हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन) में स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी कर ली। कंपनी की ओर से वह 1994 तक खेलते रहे और इस दौरान रांची में फुटबॉल से जुड़े कई बड़े आयोजनों में उनकी अहम भागीदारी रही। राज्य की फुटबॉल सेलेक्शन कमिटी में भी कुछ वर्षों तक शामिल रहे। जब तक सक्रिय रहे, वह रांची में नवोदित फुटबॉलरों को गैरे पेशेवर तरीके से कोचिंग देते रहे।

वरिष्ठ खेल पत्रकार अजय कुकरेती बताते हैं कि 2002 में एचईसी से रिटायरमेंट के बाद प्रभाकर मिश्रा की माली हालत खराब होती गई। दरअसल एचईसी की खुद की आर्थिक स्थिति खराब होती गई। उन्हें यहां से पेंशन के तौर पर मात्र छह-सात सौ रुपए मिलते थे। पिछले कुछ सालों से उनकी तबीयत बेहद खराब थी, लेकिन उसके पास इलाज तक को पैसे नहीं थे। वर्ष 2018 में राज्य के तत्कालीन खेल मंत्री अमर बाऊरी ने उनकी कुछ मदद जरूर की थी, लेकिन इसके बाद कोई उनका पुरसाहाल नहीं रहा।

फुटबॉल के प्रति जुनून के चलते उन्हें घर-परिवार की भी खास सुध नहीं रही। शादी उन्होंने बहुत देर से की। परिवार के नाम पर पत्नी और एक नाबालिग बेटा है। मुश्किल ये है कि उनके सामने जीवन-यापन का कोई जरिया नहीं है। शुक्रवार को प्रभाकर मिश्र का अंतिम संस्कार उनके दोस्तों ओमप्रकाश ठाकुर, आशीष बोस, इम्तियाज आलम, मोहम्मद फरीद आसिफ आदि ने मिलकर धुर्वा के स्थानीय श्मशान घाट पर किया। राज्य सरकार के खेल विभाग ने भी उनकी खबर न तो जीते-जी ली, न ही उनकी मौत पर किसी राजनेता का कोई शोक संदेश आया।

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