मोटे अनाज की खेती की ओर मुखातिब होने लगे जिले के किसान

Update: 2023-08-13 03:10 GMT

बक्सर: आधुनिकता के इस दौर में न सिर्फ जीवनशैली में बदलाव आया है. बल्कि, खानपान से भी पारंपरिक चीजें गायब होने लगी. परिणाम यह हुआ कि शरीर को जरुरी पोषक तत्व मिलना बंद हो गया. लोग तरह-तरह की बीमारियों की चपेट म़ें आने लगे. मोटे अनाज का महत्व सामने आने के बाद सरकार भी इसके उत्पादन को बढ़ावा देने लगी है.

इसी उद्देश्य से सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष को मिलेट वर्ष घोषित किया गया है. अब मोटे अनाज के उत्पादन को लेकर किसान भी जागरुक होने लगे हैं.

गांवों से गायब हुए मोटे अनाज 60 के दशक म़ें गांवों के खेतों में मोटे अनाज लहलहाते नजर आते थे. लेकिन, जैसे-जैसे समाज पर आधुनिकता का रंग चढ़ता गया. वैसे-वैसे खेती में बदलाव आने लगे. किसान बताते हैं कि सिमरी व चक्की सहित दियारे के इलाके में पहले बड़े पैमाने पर मोटे अनाज की खेती होती थी. पटवन की सुविधा मिलने के साथ मोटे अनाज की जगह खेतों में धान, गेहूं और सब्जी की बड़े पैमाने पर बुआई होने लगी. गांवों से बाजरा, ज्वार और मडुआ गायब होते गए. इस बदलाव के कारण शरीर को पर्याप्त पोषक तत्व मिलना बंद हो गया. जिसके कारण लोग बीमारियों की चपेट में अधिक आने लगे.

जिले में मोटे अनाज का बढ़ा लक्ष्य

सरकार के अभियान के बाद किसानों का मोटे अनाज की प्रति आकर्षण बढ़ा है. कृषि विभाग के अनुसार पहले जिले के विभिन्न क्षेत्रों में 14 हेक्टेयर से अधिक में मोटे अनाज की खेती होती थी. जो घटकर सात हजार हेक्टेयर हो गया था. सिमरी, चक्की और ब्रह्मपुर के इलाके के किसान खेतों में बाजरे की फसल लगा रहे थे. लेकिन, इस बार मोटे अनाज की खेती का रकबा बढ़ा है. कृषि अधिकारी के अनुसार इस बार जिले के विभिन्न प्रखंडों म़ें 4 हजार 546 हेक्टेयर में खेती हो रही है. इसी तरह बाजरा, ज्वार और मडुआ की खेती 3238 हेक्टेयर में हो रही है. प्रखंड कृषि पदाधिकारी गोपालजी प्रसाद ने बताया कि अभियान के बाद किसानों में जागरूकता आई है. किसान अब मोटे अनाज की खेती की ओर मुखातिब हो रहे है. यह खेतों की मिट्टी व इंसान की सेहत दोनों के लिए लाभदायक है.

Tags:    

Similar News

-->