मेलों के सिमटने से स्थानीय उत्पादों का बाजार सिमटा

Update: 2023-07-13 12:45 GMT

गोपालगंज न्यूज़: मेला संस्कृति का दर्पण और मानव जीवन का अभिन्न अंग है. जिले में लगने वाले मेले में स्थानीय उत्पादों को बाजार मिलता था. जिले के बड़े मेले आज पूरी तरह से खत्म तो नहीं हुए, लेकिन कुछ सिमट जरूर गए हैं. मेला आर्थिक रूप से प्रभावित हुए हैं. जानकार इसका मुख्य कारण समाज पर बढ़ते आधुनिकता के प्रभाव ,शहरीकरण, ई-मार्केटिंग के साथ बदलते समाजिक परिवेश को मानते हैं. जिले में मेले खत्म होने से स्थानीय उत्पादों की बिक्री पर प्रभाव प्रभाव पड़ा है .

स्थानीय उत्पादों का एक बड़ा बाजार छीन गया है . इसका ग्रामीण कलाकारों पर सबसे बुरा असर पड़ा है . बढ़ई, लोहार, टोकरी बनाने वाले बांसफोर, चारपाई, खिलौना, मिट्टी के बर्तन, हस्त निर्मित व दूसरे घरेलू उत्पादों की मेले में बिक्री होती थी. वयोवृद्ध भाठवां गांव निवासी कैलाश मिश्रा ने बताया कि बढ़ई समाज के लोग लकड़ी के सामान बनाकर मेले में बेच कर अपने जीवनकोपार्जन करते थे . जो अब बड़े-बड़े दुकानदार करते हैं . बांसफोर समुदाय के लोग बांस की टोकरी बनाकर स्थानीय मेले में बेचा करते थे. कुम्हार जाति के लोग मिट्टी के खिलौने और बर्तन बेचते थे. मेलों के सिमटने से स्थानीय उत्पादों का बाजार संकट में है . उन्होंने बताया कि मेले में मिठाई बनाने वाले हलवाई पूरे परिवार के साथ लोग दुकान लगाते थे. डॉ. दुर्गाचरण पाण्डेय कहते हैं कि मेला अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है विशेष कर ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को. बहुत सारे परिवार पूरी तरह से मेले पर निर्भर रहते हैं. मसलन मिठाई बनाने वाले, खिलौने बनाने वाले.

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