Buxar: खिलौनों से छुड़ाई बच्चों में मोबाइल की लत

Update: 2024-08-03 05:34 GMT

बक्सर: पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले ऋषि के हाथ में स्कूल से आने के बाद हमेशा मोबाइल होता था. मम्मी के मोबाइल छिनने पर वह चिल्लाने लगता था. जब उसे खेलने के लिए कहा जाता तो भी वह बाहर नहीं जाता. टीवी या फिर मोबाइल में ही उसके तीन-चार घंटे बीतते थे. लेकिन, पिछले एक महीने से उसके हाथ में मोबाइल की जगह अब अलग-अलग कलाकृतियां होती हैं. इसे बनाने में वह जुटा रहता है. माता-पिता भी दंग हैं कि जो बच्चा मोबाइल छोड़ता नहीं था, अब छूता नहीं है. कभी पेपर मैस से खिलौने तो कभी मिट्टी से मूर्तियां बनाने में वह व्यस्त रहता है. यह बदलाव अकेले ऋषि में नहीं है, बल्कि सैकड़ों बच्चे अब जिले में इस सुखद बदलाव की तस्वीर पेश कर रहे हैं.

सुखद यह कि कागज के खिलौने बच्चों की मोबाइल की लत छुड़ा रहे हैं. यह बदलाव आया है किलकारी केन्द्र से जुड़ने के बाद. जिला स्कूल कैम्पस में शिक्षा विभाग के अंतर्गत चलने वाले किलकारी से जुड़े 800 से अधिक स्कूली बच्चों को खिलौना बनाना सिखाया जा रहा. इनमें से अधिकतर बच्चे घर लौटते ही मोबाइल या टीवी देखने की जिद करते थे. अब पढ़ाई के बाद किलकारी केंद्र में तीन से चार घंटे खिलौने बनाना सीखने में ये बिता रहे हैं. कई बच्चे केंद्र में बने जंगल ट्रेल की फूल-पत्तियों से विभिन्न तरह के आर्ट भी बनाते हैं. अभिभावकों का कहना कि बच्चों में बड़ा बदलाव आया है. दो-तीन घंटे स्क्रीन पर बिताने वाले बच्चे अब मिनट भी मोबाइल नहीं लेते हैं. जिले में स्थित प्रमंडल स्तरीय किलकारी ने अभिभावकों से फीडबैक लिया, जिसमें 90 फीसदी अभिभावकों का जवाब था कि किलकारी में आने के बाद बच्चों की मोबाइल की लत छूट रही है.

प्रशिक्षु शिक्षक भी आ रहे सीखने: रामबाग टीचर ट्रेनिंग कॉलेज में लगातार शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जा रही है. ट्रेनिंग में किलकारी में आकर यह सीखना भी रखा गया है कि बच्चों को यहां कैसे मोबाइल से दूर रखने को अलग-अलग चीजों से जोड़ा जा रहा. किलकारी की प्रमंडलीय समन्वयक पूनम कुमारी ने बताया कि हर बैच के शिक्षक यहां आकर एक्सपोजर विजिट करते हैं. खिलौने बच्चों की पहली पसंद हैं. इसे जब वे खुद बनाते हैं तो इससे जुड़ते भी हैं.

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