बिहार का 'खजुराहो' आज बदहाल, अस्त्तिव बचाने के लिए कर रहा 'भगीरथ' की तलाश
हाजीपुर (आईएएनएस)| बिहार का 'खजुराहो' आज बदहाल है। अपने गौरवशाली इतिहास को समेटे यह आज उस 'भगीरथ' की तलाश कर रहा है, जो इसे बदहाली से उबार सके। आज इस परिसर में लोग दोपहर के समय ताश खेलकर समय गुजार रहे हैं तो कई लोग रात में यहां चारपाई बिछाकर सोते हैं।
दरअसल, हाजीपुर के कौनहारा घाट पर स्थित नेपाली मंदिर को बिहार का खजुराहो या मिनी खजुराहो कहा जाता है, जो आज रखरखाव के अभाव में जर्जर होता जा रहा है। इस मंदिर को देखने कभी दूर-दूर से पर्यटक आया करते थे। आज इस नेपाली मंदिर को देखने पर्यटक आते तो जरूर हैं लेकिन इसकी हालत देख मायूस होकर लौट जाते हैं।
वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर के गंगा-गंडक नदी के संगम के कौनहारा घाट पर बना नेपाली मंदिर है। भगवान शिव के इस मंदिर में काष्ठ कला की खूबसूरत कारीगरी की गई है। इसी काष्ठ (लकड़ी) कला में कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्रण है। यही कारण है कि इसे बिहार का खजुराहो कहा जाता है।
पैगोडा शैली के इस मंदिर का प्रवेश द्वार लकड़ी का है, जिस पर खूबसूरत कारीगरी देखने को मिलती है, चौकोर जालियां बनी हैं। मंदिर में अंदर शिवलिंग है, तो लकड़ी के 16 आयताकार पैनल लगे हैं। पैनल के निचले हिस्से में कामकला की अलग-अलग मुद्राओं में स्त्री-पुरुष को दिखाया गया है। माना जाता है कि यह मंदिर तकरीबन 500 साल पुराना है।
फिलहाल मंदिर के कई हिस्से ढह रहे हैं। अंदरूनी हिस्से की दीवारों पर प्रेमी-प्रेमिकाओं ने एक-दूसरे के नाम संदेश लिख रखे हैं। लकड़ी के बेशकीमती पैनल्स को दीमक चाट रहा है।
हाजीपुर के आर.एन. कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रोफेसर बी.के. पांडेय ने बताया कि ऐतिहासिक इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में नेपाली सेना के कमांडर मातबर सिंह थापा ने करवाया था। नेपाली वास्तुकला शैली के इस मंदिर में कामकला के अलग-अलग आसनों के जरिए जीवनचक्र का चित्रण लकड़ी पर किया गया है। इस मंदिर का संरक्षण ठीक से नहीं हो पाया, इसलिए इन बेशकीमती लकड़ियों में दीमक भी लग गई है। उन्होंने कहा कि यह मंदिर सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है।
नेपाली मंदिर जिस घाट पर स्थित है, वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। गंगा-गंडक संगम पर स्थित नेपाली मंदिर के पास कबीर मठ है। बुटन दास घाट पर स्थित कबीर मठ के महंत अर्जुन दास बताते हैं कि मंदिर को नेपाली सेना के कमांडर ने बनवाया था, इसलिए आम लोग इसे 'नेपाली छावनी' भी कहते हैं। मंदिर के मध्य कोने के चारों किनारों पर कलात्मक काष्ठ स्तंभ हैं, जिनमें युगल प्रतिमाएं रोचकता लिए हुए हैं। मंदिर के निर्माण में ईंट, लौहस्तंभ, पत्थरों की चट्टानें, लकड़ियों की पट्टियों का भरपूर इस्तेमाल हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है।
वे बताते हैं कि 18 वीं शातब्दी के इस मंदिर में कई अष्टधातु की मूर्तियां थी तथा एक अदभुत शिवलिंग भी था, लेकिन 2008 में चोरी हो गई। उन्होंने कहा कि अलग-अलग आसनों का चित्रण से कामशास्त्र के बारे में पूरी जानकारी दी गई है। साथ में नियंत्रित रहना भी बताया गया है। उन्होंने बताया कि चारों दिशाओं वाले प्रवेश द्वार वाले शिव मंदिर को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है और इस मंदिर में चारों दिशा में दरवाजे हैं।
मंदिर के केयर टेकर विजय शाह इसकी देखरेख कर रहे हैं, लेकिन उसे कई वर्षों से वेतन नहीं मिला है, जिस कारण का अब चना (भूंजा) बेचने का काम करते हैं। वे बताते हैं कि जब भी यहां कोई अधिकारी या नेता आते हैं, तब उन्हें इस ऐतिहासिक धरोहरों की स्थिति में बताते हैं, लेकिन किसी ने इसे सहेजने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
बहरहाल, यह मंदिर आज भले ही अपनी दुर्दशा पर रो रहा है, लेकिन लोगों का कहना है कि इतिहास को सहेजने का दावा करने वाली नीतीश सरकार अगर इस मंदिर को सहेज दे तो पर्यटन को बढ़ाने के लिए ये बहुत मददगार साबित होगा।
वैसे लोगों को उम्मीद है कि कभी न कभी सरकार अवश्य जागेगी, जिससे इस प्राचीन वास्तुकला को संजोया और सहेजा जा सके। अगर जल्दी ऐसा नहीं होता है, तो यह नेपाली छावनी इतिहास के ही पन्नों में सिमट कर रह जाएगी।
--आईएएनएस