बिहार न्यूज: पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने शिक्षा विभाग में उभरे विवाद के बीच गुरुवार को कहा कि मंत्री चंद्रशेखर और विभागीय अवर सचिव एक-दूसरे को औकात बताने पर तुले हैं। उन्होंने कहा कि मंत्री के आप्त सचिव को शिक्षा विभाग में घुसने पर पाबंदी लगा दी गई और उनकी डाक्ट्रेट डिग्री पर सवाल उठा दिये गए। उन्होंने कहा कि इतने अपमान के बाद तो शिक्षा मंत्री को खुद इस्तीफा दे देना चाहिए। इधर, मोदी ने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि पथ निर्माण और स्वास्थ्य जैसे बड़े विभाग तेजस्वी यादव से सँभल नहीं रहे हैं। उनकी एक मात्र योग्यता लालू-राबड़ी का पुत्र होना है।
उन्होंने कहा कि दो दिन की बरसात से शहरी इलाके में लोग जल-जमाव झेल रहे हैं, दरभंगा मेडिकल कालेज बंद कर दिया गया है और उपमुख्यमंत्री तथा कई विभागों के मंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव एक महीने से विदेश में राहुल गांधी की तरह छुट्टियां मना रहे हैं। मोदी ने कहा कि गरीबों के मसीहा होने का नाटक करने वालों को बिहार की गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही है। वे विदेश से ट्वीट कर रहे हैं और अब सीधे 10 जुलाई को विधानसभा सत्र के समय सदन में प्रकट होंगे। उन्होंने कहा कि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव 'डीफैक्टो ' मुख्यमंत्री हैं, इसलिए नीतीश कुमार किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। वे मंत्री-अफसर टकराव के मूकदर्शक बने हुए हैं।
एक-दूसरे को औकात बताने पर तुले अधिकारी
बीजेपी नेता ने कहा कि शिक्षा विभाग की बर्बादी के लिए लालू प्रसाद के एक बड़बोले विधायक का मंत्री बनना ही काफी था. ऊपर से मुख्यमंत्री ने कोढ़ में खाज की तरह एक बद्जुबान अफसर को इस विभाग का प्रधान सचिव भी बना दिया. अब मंत्री और प्रधान सचिव की लड़ाई में दोनों स्तरों से तुगलकी फरमान जारी हो रहे हैं. दोनों एक-दूसरे को औकात बताने पर तुले हैं. एक पर लालू प्रसाद और दूसरे पर नीतीश कुमार का वरदहस्त है.
'विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 40 फीसद पद खाली'
अधिकारी पर हमला करते हुए सुशील मोदी ने कहा कि प्रधान सचिव की जुबान ही इस महकमे का कानून है. नीचे के अधिकारी सस्पेंड करने की धमकी और पैंट गीला करने जैसी गाली के बीच कैसे काम कर रहे हैं इसका अनुमान लगाया जा सकता है. नीतीश सरकार की विफलता के चलते राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में सत्र अनियमित है. स्नातक स्तर पर हजारों सीटें खाली रह जाएंगी. छात्र यहां दाखिला नहीं लेना चाहते. विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 40 फीसद पद खाली पड़े हैं.