बिहार : कब सुधरेगी बिहार की शिक्षा व्यवस्था, टीचरों को शिक्षा मंत्री का नाम नहीं पता
बिहार में जिस तरह से शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक सक्रिय नजर आ रहे हैं, इससे उनका खौफ स्कूलों व कॉलेजों में दिख रहा है. केके पाठक लगातार शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए नए-नए फैसले ले रहे हैं. शिक्षा व्यवस्था में की गई सख्ती और निलंबन की कार्रवाई को देखते हुए शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा हुआ है. वहीं, एक बार फिर स्कूलों में शिक्षा की स्थिति को सुधारने के लिए केके पाठक नए नए फैसले ले रहे हैं. लगातार नए नए फैसलों को लेकर स्कूल और शिक्षकों में क्या कुछ बदलाव हुआ है. इसको जानने के लिए ग्राउंड जीरो से इस रिपोर्ट के जरिए समझते हैं.
स्कूलों में शिक्षकों की कमी
बिहार के सभी सरकारी विद्यालयों में नियमों के अनुसार 9:00 बजे से लेकर शाम 4:00 बजे तक विद्यालय संचालित होना है. जिसमें सभी विद्यालयों के शिक्षकों को 9:00 बजे स्कूल पहुंच जाना है. ऐसे में हमारे रिपोर्टर जब समस्तीपुर जिले के खानपुर प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय भगवानपुर 9 बजे स्कूल पहुंचे तो शिक्षक 9 बजे नहीं पहुंचे थे, लेकिन तुरंत ही एक शिक्षक भागे-भागे स्कूल पहुंचे और उन्होंने बताया कि इस विद्यालय में 80 बच्चे नामांकित है और दो शिक्षक हैं, लेकिन अभी एक शिक्षक ट्रेनिंग में है. मतलब एक प्रधानाध्यापक के सहारे 80 बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. यंहा केके पाठक के नियमों का पालन होता तो दिखा, लेकिन शिक्षा और सरकारी व्यवस्था काफी लचर दिखी.
कब सुधरेगी बिहार की शिक्षा व्यवस्था?
दूसरी तरफ समस्तीपुर जिले के खानपुर प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय अमतौर की है. तस्वीर वहां भी शिक्षक समय पर पहुंच तो गए थे, लेकिन वहां के छोटे-छोटे बच्चे स्कूल परिसर और स्कूल की साफ सफाई में लगे हुए थे. शिक्षा विभाग के निर्देशों के अनुसार बच्चों को स्कूल की साफ-सफाई में नहीं लगाना है. वहां के प्रधानाचार्य बताते हैं कि रसोईया साफ सफाई का काम करती है, लेकिन आज रसोईया नहीं पहुंची, तो बच्चों ने ही बाल संसद के सफाई मंत्री के निर्देश पर सफाई का काम चल रहा है. जब हमारे रिपोर्टर ने उन बच्चों से सवाल किया और उससे पूछा कि किस वर्ग में वह पढ़ते हैं, तो उन्होंने खुद को कक्षा 4 का छात्र बताया. शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया, क्योंकि जिस वर्ग में वो पढ़ रही थी, उसका अंग्रेजी की स्पेलिंग ही उसे नहीं आ रहा था.
शिक्षा मंत्री का नाम ही नहीं पता
उसी विद्यालय के आगे 1 प्राथमिक विद्यालय लक्ष्मीपुर है, जहां शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार वर्ग का संचालन काफी देरी से किया जा रहा था. वहां की प्रधानाध्यापिका ने बताया कि कुल 180 बच्चे हैं और 3 शिक्षक यहां कार्यरत हैं, जिसमें एक शिक्षिका ट्रेनिंग में गई हुई है. प्रधानाध्यापिका की जेनरल नॉलेज को जरा जान लीजिए. इन्हें बिहार के शिक्षा मंत्री का नाम ही नहीं पता और ना ही स्वास्थ्य मंत्री का यहां तक की बिहार के राज्यपाल का नाम भी नहीं पता है.
भगवान भरोसे शिक्षा व्यवस्था
तीसरी तस्वीर खानपुर प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय रंजीतपुर की है, यहां की व्यवस्था काफी लचर दिख रहा है. यहां बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ने को विवश है, लेकिन सबसे बड़ी बात वर्ग 1 और 2 मैं पढ़ा रही महिला शिक्षिका का ज्ञान तो बिहार सरकार के शिक्षा व्यवस्था का पोल खोल कर रख दिया है. उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए बोर्ड पर सप्ताह का नाम अंग्रेजी में लिख कर बच्चों को पढा रही थी, लेकिन बोर्ड पर लिखा सप्ताह के नाम में उनकी अंग्रेजी का ज्ञान झलक रहा था. बच्चे इंग्लिश में वेडनसडे, थर्सडे और सैटरडे भी सही से नहीं लिखा पा रहे हैं. यंहा तक कि बोर्ड पर लिखा दिन का नाम हिंदी में होने के बाबजूद भी गलती लिखा है. उसी वर्ग की दूसरी महिला शिक्षिका भारत के शिक्षा मंत्री और राज्य के शिक्षा मंत्री का नाम पूछा गया, तो वह कैमरे पर कुछ भी बोलने से बचती नजर आई और गलती बोले गए मंत्री के नाम को हटाने का ज़िक्र करने लगी.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि बिहार सरकार के शिक्षा विभाग से क्या ऐसे पढ़ेंगे. देश के नौनिहाल उनके लिए ऐसे शिक्षकों के सहारे ही सूबे को गढ़ा जाएगा. सबसे बड़ा सवाल ऐसे शिक्षकों की बहाली हुई तो हुई कैसे जिसे सप्ताह का नाम भी सही से मालूम ना हो.