बिहार : स्वतंत्रता सेनानी के परिवार की दुर्दशा, दो वक्त की रोटी पर भी आफत
पूरा देश स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में डूबा है. लोग देश के वीर शहीदों को याद कर रहे हैं. उन्हें सम्मान दे रहे हैं, लेकिन इस सब के बीच कुछ देश के सपूत ऐसे भी हैं जिन्हें देश ने भुला दिया है. जिनके परिवार आज गुमनामी में जीने को मजबूर हैं. ऐसे ही आजादी के मतवालों में से एक हैं स्वतंत्रता सेनानी अनूप लाल पासवान. जिनका परिवार दयनीय हालत में जीने को मजबूर हैं. देश में 76वें स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां जोरों पर है और इस मौके पर देश आजादी के 76 साल के गौरवगाथा को याद करा रहा है.
गरीबी की मार झेल रहा परिवार
देश याद कर रहा है उन वीर शहीदों को जिन्होंने अपना बलिदान देकर देश को आज़ादी दिलाई. याद कर रहा है उन स्वतंत्रता सेनानियों को जिन्होंने अपने सीने पर गोली खाई, लेकिन भारत मां पर आंच नहीं आने दी. आप भी ऐसे कई आजादी के मतवालों को जानते होंगे. उनके बारे में कहीं पढ़ा होगा या कहीं सुना होगा, लेकिन कुछ आजादी के दीवाने ऐसे भी हैं जिन्होंने देश के लिए तो बहुत कुछ किया, लेकिन आज उनका अपना परिवार गुमनामी में जी रहा है. जिन्हें सरकारी मदद तो दूर दो वक्त की रोटी भी बामुश्किल मिल पाती है. ऐसे ही आजादी के मतवालों में से एक हैं स्वतंत्रता सेनानी अनूप लाल पासवान. जिन्हें देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों सम्मान मिला, लेकिन आज स्वतंत्रता सेनानी का परिवार दयनीय हालत में जीने को मजबूर हैं.
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी थी जंग
स्वतंत्रता सेनानी अनूप लाल पासवान के सबसे बड़े बेटे गर्व से बताते हैं कि उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे. जिन्हें इंदिरा गांधी ने 1972 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिल्ली बुलाकर ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था. दरअसल, अनूप लाल पासवान ने देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने अंग्रेजों के जहाज और कई सरकारी दस्तावेज जलाये थे. जहाज लूटने के दौरान हुई मुठभेड़ में उन्हें गोली लग गई. जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. जेल में कई साल बिताने के बाद देश के आजाद होने पर उन्हें रिहा कर दिया गया.
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शासन-प्रशासन से मदद की आस
परिवार में जब तक अनूप लाल को पेंशन मिलती रही तब तक सब कुछ ठीक था, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद परिवार पाई पाई के लिए मोहताज हो गया. आज आलम ये है कि परिवार का ढंग से भरन पोषण भी नहीं हो पा रहा है. अनूप लाल के दूसरे बेटे रिक्शा चलाते हैं. उससे जो कमाई होती है उससे जैसे-तैसे घर चलता है. कभी-कभी तो नौबत ऐसी भी आ जाती है जब परिवार को दो जून की रोटी तक नसीब नहीं होती. विडंबना ऐसी कि परिवार को आज तक इंदिरा आवास का लाभ भी नहीं मिल पाया है. देश की आजादी का जश्न मानाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं, लेकिन इसी आजादी के लिए अपनी जान गंवाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार गुमनामी के अंधेरे में जीने को मजबूर है. जरूरत है कि शासन और प्रशासन इन परिवारों पर अपनी नजर-ए-इनायत करें ताकि स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों की ये दुर्दशा ना देखने को मिले.