बिहार : महागठबंधन में सीट शेयरिंग पर रार! कांग्रेस की मांग पर सियासी संग्राम
2024 के चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन अपनी रणनीतियों को धार देने में लगा है. गठबंधन के नेता हर मंच से विपक्षी एकता का राग अलाप रहे हैं, लेकिन जहां इस गठबंधन की नींव रखी गई है. वहीं, विपक्षी एकता के रास्ते में सीट शेयरिंग के रोड़े आने लगे हैं. विपक्षी गठबंधन के नेता बार-बार ये कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में सीटों की शेयरिंग में कोई बाधा नहीं आएगी, लेकिन बिहार में कांग्रेस ने सीट शेयरिंग पर अपना रुख साफ कर दिया है. जहां कांग्रेस इस बार 12 लोकसभा सीटों की मांग कर दी है. ये मांग कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने की. हालांकि इस बयान से पहले भी वो अखिलेश सिंह अपनी इच्छा जाहिर कर चुके थे कि बिहार में कांग्रेस इस बार 9 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी.
सीट शेयरिंग को लेकर बीजेपी ने कसा तंस
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की मांग के बाद इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर पेंच फंसता नजर आ रहा है और इसी के साथ बीजेपी को एक बार फिर बिहार में बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया. जिसको भुनाने का मौका बीजेपी नहीं छोड़ रही और सीट को लेकर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की मांग पर तंज कसते हुए बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद ने कहा कि इस गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर कांग्रेस है और कांग्रेस नहीं चाहती है. बीजेपी के वार पर JDU ने पलटवार किया. साथ ही कांग्रेस नेता के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए JDU MLC नीरज कुमार ने कहा कि सीट शेयरिंग के मापदंड राष्ट्रीय स्तर पर विमर्श का विषय है. बात करें कांग्रेस की तो पार्टी ने अखिलेश सिंह के बयान से किनारा कर लिया है. पार्टी प्रवक्ता की मानें तो ये प्रदेश अध्यक्ष का अधिकार है कि वो किन बातों पर बोलते हैं और ये शीर्ष नेतृत्व ही तय करेगा.
कांग्रेस की मांग पर सियासी संग्राम
बयानबाजी से इतर अगर बात करें पिछले चुनावी नतीजों की तो बिहार में कुल लोकसभा की सीटें 40 हैं. अभी इनमें एनडीए के पास 23 सीटें हैं, 17 सीटें बीजेपी के पास हैं, तो 6 सीटें अविभाजित लोजपा के पास. नीतीश कुमार ने 2019 का चुनाव बीजेपी के साथ लड़ा था. नतीजतन जेडीयू भी 16 सीटें जीत गई थी. आरजेडी शून्य पर आउट हो गया था तो कांग्रेस के खाते में एक सीट आई थी. बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनाव में कैसा था ये तो आंकड़ों से ही साफ हो गया. अब देखना ये होगा कि पिछली चुनावी नतीजों को देख कर भी क्या इस बार कांग्रेस की मांग मानी जाएगी. अगर नहीं तो क्या कांग्रेस कम सीटों पर समझौता कर पाएगी.