जनता से रिश्ता वेबडेस्क : जिला में 20 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। सभी केंद्रों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनाया जाना है। लेकिन, अब तक जमीन की उपलब्धता नहीं होने व अन्य तकनीकी कारणों से नालंदा में इस्लामपुर, गिरियक, सरमेरा, रहुई व एकंगरसराय में सिर्फ पांच सीएचसी ही बन सके हैं। इन केंद्रों पर भी अब तक पर्याप्त डॉक्टरों की बहाली नहीं हो सकी है। इस कारण कई सेवाएं अब भी बंद है। सीएचसी पर चार एमबीबीएस, एक एक स्त्री रोग, शिशु रोग, डेंटिस्ट, सर्जन, एनेस्थेटिक्स समेत 12 पद स्वीकृत हैं। लेकिन, इन अस्पतालों में कहीं भी मानक के अनुसार डॉक्टर नहीं हैं।
रहुई सीएचसी में तो डेंटिस्ट की तैनाती भी है। मशीनें भी उपलब्ध हैं। लेकिन, टेक्निशियन व हेल्पर नहीं रहने के कारण वहां रोगियों का इलाज नहीं हो पा रहा है। उनसे ओपीडी में काम लिया जाता है। दांत रोगियों का भी ओपीडी में ही इलाज कर दवाएं दी जाती हैं। सरमेरा सीएचसी में मात्र तीन डॉक्टर ही तैनात हैं। वहां भी प्रसव में जटिलता आने पर आज भी रोगियों को सदर अस्पताल रेफर करना पड़ता है।
सदर, राजगीर, बिहारशरीफ, पावापुरी, कल्याणबिगहा व हिलसा अस्पताल में पाइपलाइन से ऑक्सीजन की आपूर्ति शुरू हो चुकी है। हालांकि, सदर अस्पताल में अब भी बेडों तक
190 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर सीएचओ महज 76 में:ग्रामीण स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं व सुविधाएं उपलब्ध कराने को लेकर जिला में 190 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर काम कर रहे हैं। हालांकि, इसकी हकिकत धरातल पर कुछ और ही है। अधिकतर सेंटरों पर न तो डॉक्टर नियमित तौर से तैनात हैं। न ही अन्य स्वास्थ्यकर्मी। बस एएनएम व जीएनएम के सहारे ही वे चल रहे हैं। इसका अंदाजा सहज इससे लगता है कि महज 76 में ही सामुदायिक हेल्थ ऑफिसर (सीएचओ) की तैनाती है। अन्य ग्रामीण अस्पतालों के हालत भी कमोबेश यही हैं। चेरो, इसुआ, केवाली व अन्य अस्पतालों में तो पशु बांधे जाते हैं या भूसा कट्टू (जानवर के खाने का सामान) रखा हुआ है।
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