बिहार : नदियों में हिचकोले खाती 'जिंदगी', हर रोज जान हथेली पर रखते हैं लोग
शहर हो या गांव, बिहार में हर तरफ बाढ़ से हाहाकार है. उफनती नदियां लोगों को डरा रही हैं और लोगों को नदियों से दूर रहने की नसीहत भी दी जा रही है. अभी भी कुछ गांव और वहां की आबादी आज भी उफनती नदियों में नाव पर हिचकोले खा रही हैं. पूर्णिया के अमौर प्रखंड के बिसनपुर गांव में नदी की उपधारा के दोनों ही तरफ गांव हैं, लेकिन गांव को जोड़ने वाला पुल नहीं है. यहां तक की ग्रामीणों के पास एक तरफ से दूसरी तरफ जाने के लिए नाव तक नहीं है. जिसका नतीजा है कि लोग जुगाड़ू नाव बनाकर नदी को पार करते हैं.
ग्रामीणों को एक अदद पुल की दरकार
भागलपुर के खरीक प्रखंड में बसे दो गांवों सिहकुंड और लोकमानपुर के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं. दोनों गांव कोसी के बीच टापू पर बसे हैं. चारों तरफ कोसी की उफनती धारा और बीच में बसे गांव का दृश्य देखते ही बनता है, लेकिन प्रकृति की खूबसूरती के बीच ग्रामीणों के जद्दोजहद की कहानी है. जिनके लिए आज भी आवाजाही का सहारा नाव है. ग्रामीणों के 25 हजार की आबादी सिर्फ एक नाव पर निर्भर है. हालांकि इन गांवों में दूसरी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं. दोनों ही गांवों में शासन प्रशासन की अनदेखी के चलते शहनाईयां बजनी बंद हो गई हैं. सुविधायों से वंचित इन गांवों में युवाओं की शादी नहीं हो रही है.
5 सालों से अधर में लटकी योजना
इतना ही नहीं अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उसका इलाज भगवान भरोसे ही होता है. हालांकि इन दो गांवों में जाने के लिए राज्य पुल निर्माण निगम की ओर से लोकमानपुर गांव से विजय घाट तक 44.47 करोड़ की लागत से 456 मीटर लंबा और 8.4 मीटर चौड़ा पुल बनाने की योजना है. जो पिछले 5 सालों से अधर में लटका है. प्रशासन से सवाल किया जाता है तो जल्द निर्माण का आश्वासन मिल जाता है.
दोनों ही जिलों की तस्वीरें बताने को काफी हैं कि सरकार और अधिकारी अपनी जिम्मेदारी कितनी गंभीरता से निभा रहे हैं. जनता की सेवा का वादा करने वाले जनप्रतिनिधि हों या सरकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने वाले अधिकारी... सभी मानो अपनी जवाबदेही भूल गए हैं.