बिहार : रोड नहीं तो वोट नहीं सालों से जर्जर सड़क की समस्या से लोग परेशान
लोकसभा चुनाव मुहाने पर है, तो जनप्रनिधियों का दौरा तेज हो गया है. मंचों से लोक लुभावने वादे किए जा रहे हैं. विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन इन दावों और वादों के भंवरजाल से इतर बात करते हैं जमीनी हकीकत की, जो ये तस्वीरें बयां कर रही है. विकास तो दूर ग्रामीणों के नसीब में तो एक अदद सड़क भी नहीं है. रोड नहीं तो वोट नहीं. अब जनता के पास प्रदर्शन और नारेबाजी के अलावा कोई और चारा नहीं है क्योंकि शिकायत और अपील कर कर के ग्रामीण थक चुके हैं. कटिहार के आजमनगर प्रखंड में महानंदा नदी के दाएं तटबंध पर बसा ये गांव सालों से पक्की सड़क की बाट जोह रहा है. लाखों की आबादी वाले इस गांव में आवाजाही का यही जरिया है, लेकिन सड़क की बदहाली लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है.
जर्जर सड़क की समस्या से लोग परेशान
झोवा रेलवे लाइन से चौकिया पहाड़पुर तक महानंदा तटबंध पर पक्की सड़क का निर्माण 20-25 साल पहले हुआ था, लेकिन अब पक्की सड़क का नामोनिशान मिट गया है. अब सड़के जर्जर हो चुकी है. बारिश के बाद रास्ते कीचड़ से सराबोर हो जाते हैं. क्षेत्र के विधायक निशा सिंह और सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी हर चुनाव के समय महानंदा तटबंध पर पक्की सड़क निर्माण का वादा करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही उनके वादे कहां हवा हो जाते हैं. इसका अंदाजा तो शायद खुद सांसद और विधायक को भी नहीं होगा. इस सड़क पर गाड़ियां चलाना तो दूर लोग पैदल भी बामुश्किल चल पाते हैं.
रोड नहीं तो वोट नहीं!
कई बार गड्ढे और कीचड़ की वजह से लोग हादसे का शिकार भी हुए हैं, लेकिन जनप्रतिनिधियों के साथ ही अधिकारी भी मानों कुंभकर्णी नींद में सोए हैं. ग्रामीणों ने बाढ नियंत्रण प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता को भी इसको लेकर पत्र लिखा है, लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है. चुनाव के दौरान विधायक हो या सांसद गांव-गांव, गली-गली घूमकर वोट मांगते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही यही जनप्रतिनिधि अपने वादों के साथ ही इन गांवों का रास्ता भी भूल जाते हैं. लिहाजा इस बार ग्रामीणों ने ठान लिया है कि जब तक गांव की बदहाल सड़कों की सूरत नहीं बदलेगी तब तक वो चुनाव का बहिष्कार करेंगे. अब देखना ये होगा कि ग्रामीणों के ऐलान के बाद भी नेताओं और अधिकारियों की नींद खुलती है या नहीं.