बिहार : जूट की खेती को लेकर किसान परेशान, न्यूनतम रेट तय करने की मांग

Update: 2023-09-08 11:01 GMT
मनिहारी में सदियों से हल चला कर धरती से सोना उगाने वाले किसान इस दिनों परेशान हैं. पहले गेहूं, मक्का, आलू की खेती की उपज बंद हो गई. अब किसानों का कहना है कि अब जूट की खेती के जाने की बारी आ गई है. मनिहारी विधानसभा के कई क्षेत्रों में सभी पंचायत में जूट की खेती करने वाले किसान काफी चिंतित हैं. उत्पादकों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. बावजूद किसान तमाम कठिनाइयों को झेलते हुए पाटवा तैयार करते हैं, लेकिन सरकार द्वारा उचित व्यवस्था नहीं करने से सरकारी निर्धारित न्यूनतम मूल्य से भी काफी कम कीमत मिलती है.
 जूट की खेती को लेकर किसान परेशान
आर्थिक तंगी की वजह से किसान पाट के बाजार मूल्य में वृद्धि होने की प्रतीक्षा भी नहीं कर पाते हैं. किसानों को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए औने-पौने कीमत पर जूट बेचना पड़ता है. किसानों का कहना है कि कुछ वर्षों से नवाबगंज बौलिया अमदाबाद बैरिया फततेह, नगर कुमारीपुर मनोहरपुर में पटवन की खेती काफी अधिक होती थी, लेकिन उचित मूल्य नहीं मिलने से लोग खेती करने में डरते हैं.
जूट खरीदार दे रहे कम कीमत
अभी बहुत किसान खेती कर रहे हैं. वहां के व्यापारी किसानों से जूट खरीदकर कोलकाता और देश के अन्य जूट मिलों में भेजते थे. समय के साथ बाजारों में जूट के व्यापारियों की संख्या कम हो गई है. दलाल केजरिये से जूट को कम पैसा में बेचना पर रहा है. किसानों ने बताया कि जूट का बाजार में वर्तमान मूल्य करीब चार हजार से साढ़े चार हजार रुपये क्विंटल है. मनिहारी में जूट की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि पिछले साल लगभग ₹6000 क्विंटल बेचा गया था और इस बार इतने कम में बेचना पड़ रहा है.
न्यूनतम रेट नहीं होने की वजह से परेशान
सरकारी कोई न्यूनतम रेट नहीं होने की वजह से परेशान होना पड़ता है. गौरतलब है कि सरकार जूट उत्पादक किसानों को प्रोत्साहन देने व उत्पादन बढ़ाने के लिए तरह-तरह प्रोजेक्ट लागू करके किसानों को लाभान्वित करने की योजनाएं चला रही है, लेकिन मनिहारी प्रखंड में यह योजना अब तक शुरू नहीं हो पाई है. जूट के रेशे बोरे, दरी, तंबू, तिरपाल, टाट, रस्सी, कपड़े और कागज बनाने के काम आते हैं.
Tags:    

Similar News