पटना न्यूज़: राज्य के 90 फीसदी स्कूलों में 25 से 30 फीसदी बच्चे गैरहाजिर रहते हैं. 10 से 15 बच्चे ऐसे हैं, जो केवल नामांकन लेते हैं. बिहार शिक्षा परियोजना परिषद और राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) की ओर से किये गये अध्ययन में देखा गया कि स्कूलों में सौ फीसदी बच्चों की उपस्थिति नहीं होती है.
जो बच्चे कक्षा नहीं आते हैं, उसका कारण भी जानने की कोशिश स्कूल प्रशासन द्वारा नहीं की जाती है, जबकि शिक्षा विभाग द्वारा सभी स्कूलों को यह आदेश दिया गया है कि अगर कोई बच्चा स्कूल नहीं आता है तो उसकी समीक्षा की जाये. शिक्षक बच्चे के घर जाएंगे और अभिभावकों को बच्चे को स्कूल भेजने के प्रति जागरूक भी करेंगे. लेकिन, कोरोना के बाद स्कूल तो खुला, बच्चों का नामांकन भी हुआ,पर अनुपस्थित बच्चों की समीक्षा नहीं की गयी. एक से आठवीं तक की कक्षा में जिन बच्चों की 70 फीसदी उपस्थिति होगी, उन्हें ही पोशाक योजना का लाभ मिलेगा. लेकिन ऐसा होता नहीं है. खासकर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में अभिभावकों का स्कूल प्रशासन के ऊपर काफी दबाव होता है. ऐसे अभिभावक के बच्चे स्कूल आयें या नहीं आयें, प्राचार्य को बच्चे की उपस्थिति 70 फीसदी करनी पड़ती हैं.
अनुपस्थित बच्चों की बढ़ रही संख्या: बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो वार्षिक परीक्षा और अद्धवार्षिक परीक्षा में अनुपस्थित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है. कोरोना संक्रमण के बाद 2022 में वार्षिक परीक्षा हुई. इसमें राज्यभर से 12 फीसदी बच्चे एक से आठवीं तक की कक्षा में अनुपस्थित थे. वहीं इसके बाद अर्द्धवार्षिक परीक्षा अक्टूबर 2022 में ली गयी. इसमें एक से आठवीं तक के 15 फीसदी बच्चों ने परीक्षा नहीं दी. वार्षिक परीक्षा 2023 में अनुपस्थित बच्चों की संख्या बढ़ कर 20 फीसदी के लगभग हो गई हैं.
राजकीय कन्या मध्य विद्यालय अदालतगंज में 654 बच्चे नामांकित हैं. इनमें से लगभग दो सौ बच्चे सालभर से नियमित स्कूल नहीं आ रहे हैं. बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं, इसके लिए स्कूल प्रशासन द्वारा जानने का प्रयास भी नहीं किया गया. यही स्थिति लोहियानगर मध्य विद्यालय की है. स्कूल में 276 बच्चे नामांकित हैं. इनमें से केवल 143 ही स्कूल आते हैं. यह हाल केवल इन दो स्कूलों का नहीं है बल्कि हर जिले के स्कूलों का है