बिहार में 17 वर्षीय कैंसर पीड़िता ने लोगों से लगायी मदद की गुहार

बिहार के गोपालगंज (Gopalganj News) की बेटी की यह खबर आपको अंदर से झकझोर कर रख देगी. दरअसल, जिले के उचकागांव प्रखंड के मकसूदपुर गांव में कैंसर से जूझ रही 17 साल की एक लड़की ने रो-रोकर सरकार और लोगों से मदद की

Update: 2021-11-21 06:49 GMT

जनता से रिश्ता। बिहार के गोपालगंज (Gopalganj News) की बेटी की यह खबर आपको अंदर से झकझोर कर रख देगी. दरअसल, जिले के उचकागांव प्रखंड के मकसूदपुर गांव में कैंसर से जूझ रही 17 साल की एक लड़की ने रो-रोकर सरकार और लोगों से मदद की (Bihar Cancer Patient Daughter Appeals) गुहार लगा रही और कह रही कि मैं मर रही हूं…प्लीज मुझे बचा लीजिए…कैंसर पीड़ित बेटी के इलाज के लिए उसके पिता अब तक 7 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं, लेकिन परिवार की हालत अब ऐसी नहीं कि इलाज का खर्च वहन हो सके. ऐसे में इस लड़की ने ईटीवी भारत के जरिए आम लोगों के साथ-साथ सरकार से हाथ जोड़ कर मदद मांगी है. पीड़ित के पिता शेषनाथ महतो पेशे से दिहाड़ी मजदूर हैं. पांच बेटी व एक बेटे के भरण पोषण की जिम्मेदारी उनके कंधे पर है.

वहीं पांच बेटियों में सबसे बड़ी बेटी 17 वर्षीय रिंकू कुमारी वर्ष 2018 में सातवीं कक्षा की छात्रा थी. पढ़ने में काफी तेज थी, उसकी लगन और मेहनत देख परिवार के अलावा आस-पास के लोग काफी खुश थे. रिंकू चाहती थी कि पढ़ाई कर के अधिकारी बने और मां बाप का नाम रोशन करे, लेकिन दुर्भाग्य से उसे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में आ गई. उसका सपना धीरे-धीरे दम तोड़ रहा है. अचानक तबीयत खराब हो जाने के कारण जब इलाज कराया गया तो डॉक्टरों ने जांच रिपोर्ट देख कर कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के बारे में जानकारी दी.
कैंसर से पीड़ित होने की जानकारी मिलते ही रिंकू व उसके परिवार के लोगों के पांव तले की जमीन खिसक गई. बावजूद पिता ने मजदूरी करके और कर्ज लेकर अपने बेटी को इस गंभीर बीमारी से बचाने के लिए काफी प्रयास किया, जो जहां बताता उसे वहां ले जाकर इलाज करवाया. मजबूर पिता ने हार नहीं मानी और उसके इलाज में अब तक 7 लाख रुपये खर्च कर दिए. लेकिन इलाज के बावजूद उसे कोई फायदा नहीं हुआ. अब डॉक्टरों द्वारा लखनऊ ले जाने की सलाह दी जा रही है. जिसमें करीब 5 लाख रुपए और खर्च होने की बात कही जा रही है. अब ऐसे में पिता के पास उतने पैसे नहीं है कि वह अपनी बेटी की इलाज करा सके. फिलहाल अब उसका इलाज बंद हो चुका है. दो सालों से रिंकू बिना इलाज के एक ही जगह बैठी रहती है.


पिता शेषनाथ की जेब खाली हो चुकी है लेकिन वो अपनी बिटिया को इलाज के लिए अस्पताल लेकर जाना चाहते हैं. रिंकू पढ़ना चाहती हैं और जीना चाहती है. अन्य लड़कियों की तरह सुकून से, खुशी से रहना चाहती है. लेकिन कैंसर के कारण पढ़ाई भी नहीं कर पा रही है. रिंकू की बातों को सुनकर एक बार जरूर आपका दिल पसीज जाएगा. उसके पास जो भी जाता उसके पास वह फफक- फफक कर रोने लगती है. हाथ जोड़कर सरकार और लोगों से मदद की गुहार लगाती है.


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