देशी मछलियों के लिए प्रसिद्ध कुशेश्वरस्थान में अब आंध्र प्रदेश से आ रही मछली

स्वादिष्ट देशी मछलियों के लिए प्रसिद्ध दरभंगा जिले के कुशेश्वरस्थान व आस पास के इलाकों से देशी मछलियां गायब हो रही हैं।

Update: 2022-02-10 15:44 GMT

दरभंगा, स्वादिष्ट देशी मछलियों के लिए प्रसिद्ध दरभंगा जिले के कुशेश्वरस्थान व आस पास के इलाकों से देशी मछलियां गायब हो रही हैं। देश के विभिन्न राज्यों में अब से एक दशक पूर्व तक यहां से स्वादिष्ट मछलियां भेजी जाती थीं, लेकिन अब आंध्र प्रदेश की मछलियों से यहां की थाली सजती है। जानकार बताते हैं कि अब से एक दशक पूर्व तक यहां के हजारों एकड़ चौर एवं नदियों में रेहू, कतला, नैनी, टेंगरा, ग्रासकार्प, सिंघी, पोठिया, गैची, बामन, मांगूर, सौरा, भोरा, इचना ( झींगा ) सहित दो दर्जन से अधिक प्रजाति की महत्वपूर्ण स्वादिष्ट मछलियां भारी मात्रा में पाई जाती थीं। हाल के दिनों में इनकी संख्या नगण्य हो गई है।

फाइटो और जू-प्लेनटोन मछलियों का करता आकर्षित
यहां के चौर पर अध्ययन करनेवाले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शोधकर्ता व मोतिहारी के मत्स्य विकास पदाधिकारी ललित नारायण साह, एमआरएम कालेज के प्राचार्य व वनस्पति विभाग के विज्ञानी डा. विद्यानाथ झा तथा डा. टुनटुन सिंह बताते हैं- कुशेश्वरस्थान व इसके आसपास के चौर एवं नदियों में पर्याप्त रूप से मछली का प्राकृतिक भोजन (फाइटो और जू-प्लेनटोन) प्रचूर मात्रा में पाया जाता हैं। इतना ही नहीं यहां के चौर की मिट्टी दोमट है। इस कारण है कि यहां की मछलियां अत्यधिक स्वादिष्ट होती हैं। मछलियां माइग्रेट (दूसरे जगह से आकर) कर यहां के चौर एवं नदी में निवास करती है।
सिल्टेशन के कारण घट रही नदी व चौर की जलग्रहण क्षमता
विशेषज्ञों की माने तो यहां के लरैल, मरैल, बरारी, मदरिया, नदियामी, महिसोत, सहित दो दर्जन से अधिक चौरों में बाढ़ के दौरान भारी मात्रा में जलोढ़ मिट्टी आती है। इस कारण से संबंधित चौर एवं नदी सिल्टेशन होता है। चौर एवं नदियों की जलग्रहण क्षमता कम होती जा रही है। दूसरी ओर मछलियों की प्राकृतिक भोजन फाइटो और जूप्लेनटोन में भी कमी होती जा रही है। प्राकृतिक भोजन और जल ग्रहण क्षमता कम होने के कारण मछलियों की आवक कम हो रही है।
किसानों ने कहा- सरकारी स्तर पर ध्यान देने की जरूरत
इस इलाके के किसान देशी मछलियों की संख्या घटने से परेशान हैं। बड़गांव के किसान अखिलेंद्र कुमार सिंह, असमा के उपेंद्र पासवान, सकीरना के चंद्रशेखर साह, हिरणी के ताराकांत चौधरी आदि ने बताया कि यहां के चौर सरकारी देख रेख के अभाव में दिनों दिन अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। राज्य सरकार इस विषय पर ध्यान दे और यहां के चौर एवं नदियों को अपने नियंत्रण में लेकर खुदाई करा दे तो स्वादिष्ट मछलियों के रूप में यहां का गौरव पूर्ण इतिहास पुनः लौट सकता है।
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