पृथ्वी की 40 फीसदी जमीन खराब, आने वाले दशकों में और ज्यादा बिगड़ेंगे हालात : रिपोर्ट
दुनिया की करीब आधी आबादी पर असर hindinews jantaserishta
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : दुनिया महामारी से उबरी ही नहीं है और हमारे पास पर्यावरण से सम्बंधित कई समस्याएं और बड़ी होती जा रही है,
बीते दशक के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे में भी कोई कारगर समाधान देखने को नहीं मिले, वहीँ लगातार हर वर्ष स्थिति और गंभीर हो गयी है. जमीन की दशा खराब होने से यहां मतलब है उसकी मिट्टी, पानी या जैव विविधता में लगातार कमी,
जिसके पीछे कई कारण हैं. इसमें जंगलों की कटाई से लेकर खेती में कीटनाशकों और उर्वरकों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल और जलवायु परिवर्तन के कारण आए दिन मौसमों के मिजाज की बढ़ती उग्रता शामिल है.
दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी तटों पर इसी साल अप्रैल महीने में अभूतपूर्व बारिश के कारण आई अचानक बाढ़ में न सिर्फ फसलें बह गईं, बल्कि कई जगहों पर गड्ढे बन गए. भूस्खलन हुआ,
सैकड़ों घर और सड़कें टूटीं और 430 लोगों की जान चली गई.केन्या के पहाड़ी जंगल देश के वाटर टावर कहे जाते हैं. इमारती लकड़ी, चारकोल और कृषि के विस्तार के कारण इनकी अंधाधुंध कटाई ने नदियों में पानी का बहाव कम कर दिया है.
खराब हुई जमीन पर कृषिवानिकी यानी फसलों के बीच पेड़ लगाकर और चारागाहों के बेहतर प्रबंधन से जमीन को हुए नुकसान की भरपाई की जा सकती है.
नहीं मिल रहा पर्याप्त पानी
नतीजा- खेती की जमीनों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है.दुनिया के 3 अरब से ज्यादा लोगों पर मरुस्थलों का विस्तार, जमीन की खराब दशा और सूखा असर डाल रहा है, स्वस्थ जमीन को खोने से खाद्य असुरक्षा बढ़ती है,
तो जंगलों के नुकसान से समुदाय सूखा, बाढ़ और जंगल की आग जैसे मौसमी आपदाओं के शिकार बनते हैं.जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक चारागाहों का बनना, बेशुमार खेती, जंगलों की कटाई और शहरीकरण के कारण पृथ्वी की 40 फीसदी जमीन की दशा खराब हो चुकी है.
मरुस्थलीकरण के खिलाफ काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने बुधवार को एक रिपोर्ट जारी की है. यह रिपोर्ट बताती है कि इसका नतीजा दुनिया की करीब आधी आबादी पर असर डाल रहा है.
इससे भी बुरा यह आसार है कि आने वाले दशकों में उप-सहारा के देशों समेत दुनिया के कई हिस्सों में हालात अभी से और ज्यादा बिगड़ने वाले हैं.हालांकि, यह भी सच है कि अभी इतनी भी देर नहीं हुई है कि हालात सुधारे न जा सकें या फिर बंजर, सूखी जमीनों पर हरियाली लौटाई न जा सके.
रिपोर्ट में उन सारे उपायों का भी जिक्र है, जिन्हें बुरकिना फासो से लेकर मालावी तक आजमाया जा रहा है.
यूनाइटेड नेशन कंवेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन की रिपोर्ट में अफ्रीका पर काफी कुछ कहा गया है.
चिंताजनक स्थिति
भारत में कृषि विभाग ने 2017 से 2019 के बीच प्रदेश के 75 जिलों के खेतों की जांच कराई थी। मिट्टी के कुल एक करोड़ 72 लाख 41 हजार नमूने लिए गए।इसकी रिपोर्ट में केवल श्रावस्ती की मिट्टी में ही कार्बन और नाइट्रोजन औसत स्तर पर मिला है।
कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञ खेती के लिए इसे चिंताजनक स्थिति मान रहे हैं।अगर यह इसी तरह जारी रहा, तो 2050 तक 1.6 करोड़ वर्ग किलोमीटर यानी पूरे दक्षिणी अमेरिका के बराबर अतिरिक्त जमीन इस दुर्दशा की शिकार होगी.
लगभग 15 फीसदी कृषि भूमि, चारागाह और प्राकृतिक इलाकों में लंबे समय के लिए उत्पादकता कम होगी.इसमें उप सहारा के देश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे.