World Aids Day: दुनियाभर के वैज्ञानिक आज तक क्यों नहीं बना पाए एड्स की वैक्सीन...जानें ये बड़े कारण

देश और दुनिया में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच हर किसी को इसकी वैक्सीन का इंतजार है.

Update: 2020-12-01 04:41 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्कदेश और दुनिया में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच हर किसी को इसकी वैक्सीन का इंतजार है. किसी बीमारी की वैक्सीन बनाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है, जिसमें सालों लग जाते हैं. लेकिन इस कोरोना महामारी काल में भारत समेत कई देशों ने एक साल से कम समय में ही वैक्सीन विकसित कर ली है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, वैक्सीन बनाना इतना आसान नहीं होता. कई महामारियों की वैक्सीन बनाने में दशकों भी लग सकते हैं, जबकि कई बार तो वैक्सीन बनने की संभावना ही नहीं रहती. जानलेवा बीमारी एचआईवी एड्स के लिए भी आज तक कहां कोई वैक्सीन बन पाई है!

इस लाइलाज बीमारी की वैक्सीन के लिए वैज्ञानिक दशकों से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आज तक सफलता नहीं मिली. हालांकि असुरक्षित यौन संबंध नहीं बनाने, कंडोम का इस्तेमाल करने जैसे बचाव और रोकथाम के सामूहिक प्रयासों की बदौलत इस महामारी को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सका है.

अमेरिका में 1980 के दशक में जब इस बीमारी सामने आई थी, तब हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विस डिपार्टमेंट ने कहा था कि वे दो साल के भीतर इसकी वैक्सीन तैयार कर लेंगे. हालांकि तमाम प्रयासों के बाद भी उनके हाथ खाली हैं. दुनियाभर के वैज्ञानिक इसकी वैक्सीन बना पाने में अब तक असफल हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों वैज्ञानिकों के निरंतर शोधों के बावजूद एचआईवी की वैक्सीन आज तक नहीं बन पाई?

1. इम्यून रेस्पॉन्स नहीं दिखना

इंसानों के शरीर में बीमारियों से लड़ने वाला इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक तंत्र, एचआईवी वायरस के खिलाफ प्रतिक्रिया नहीं देता है. मरीज के शरीर में एंटीबॉडी बनती तो है, लेकिन वह केवल एचआईवी बीमारी बढ़ने की गति को कम करती है, उसे पूरी तरह रोक नहीं पाती. एचआईवी पर इम्यून सिस्टम की कोई प्रतिक्रिया न दिखने के कारण वैज्ञानिक वैक्सीन नहीं बना सकते, जो शरीर में पैदा होने वाली एंटीबॉडी को रेप्लिकेट यानी नकल कर सके.

2. वायरस का डीएनए में छिपा होना

एचआईवी के संपर्क में आने के बाद मरीज का पूरी तरह रिकवर होना लगभग असंभव है. वह सामान्य जीवन तो जी सकता है, लेकिन एचआईवी से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाता. इंसानी शरीर में एचआईवी संक्रमण फैलने की एक लंबी अवधि होती है, जिस दौरान वायरस इंसान के डीएनए में छिपकर मौजूद रहता है. शरीर के लिए डीएनए में छिपे वायरस को ढूंढ कर उसे खत्म करना बहुत ही मुश्किल काम है. वैक्सीन बनाने की राह में यह बड़ी और मुश्किल चुनौती है.

3. निष्क्रिय वायरस का कारगर न होना

किसी बीमारी की वैक्सीन बनाने में सामान्यत: कमजोर या इनेक्टिव यानी निष्क्रिय वायरस का इस्तेमाल होता है, लेकिन एचआईवी के मामले में निष्क्रिय वायरस शरीर में इम्यूनिटी को ठीक से प्रोड्यूस नहीं कर पाता है. ऐसे में इसकी वैक्सीन बनाने के लिए सक्रिय वायरस का इस्तेमाल बेहद खतरनाक साबित हो सकता है.

4. एचआईवी वायरस का म्यूटेशन

एचआईवी वायरस काफी तेजी से रूप बदलता है. वैक्सीन तैयार करने के लिए वायरस के एक रूप को लक्षित किया जा सकता है. ऐसे में वायरस के म्यूटेट होते ही यानी उसके रूप बदलते ही वैक्सीन बेअसर हो जाती है.

5. संक्रमण का जरिया

शरीर में रेस्पिरेटरी और गैस्ट्रो-इंटसटाइनल सिस्टम से दाखिल होने वाले वायरस की वैक्सीन बनाने में तो वैज्ञानिकों को सफलता मिलती रही है, लेकिन एचआईवी का संक्रमण जननांग की सतह या फिर संक्रमित ब्लड के जरिए शरीर में फैलता है.

6. ट्रायल के लिए जानवरों का मॉडल नहीं

किसी भी वैक्सीन को विकसित करने की प्रक्रिया में जानवरों पर टेस्ट जरूरी होता है. पहले जानवरों को वायरस से संक्रमित किया जाता है और उन पर वैक्सीन टेस्ट की जाती है. सफलता मिलने के बाद ही इंसानों पर ट्रायल शुरू किया जाता है. एड्स के मामले में दिक्कत यह है कि एचआईवी के लिए जानवरों का कोई मॉडल ही नहीं है. जानवरों पर ट्रायल ​के बिना इंसानों के लिए वैक्सीन बनाई ही नहीं जा सकती.

इन्हीं वजहों और चुनौतियों के कारण एड्स की वैक्सीन अबतक नहीं बनाई जा सकी है.

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