क्या है मारबर्ग वायरस? 88 फीसदी तक मृत्यु दर, कोई इलाज नहीं इसलिए इसे तुरंत रोकना होगा
इससे पता चलता है कि यह एक गंभीर संक्रमण है। घाना में दो लोग संक्रमित हुए और दोनों की मौत हो गई।
लागोस : घाना में जुलाई 2022 में घातक मारबर्ग वायरस के पहले दो मामलों की पुष्टि हुई। अत्यंत संक्रामक यह वायरस उसी परिवार से संबंधित है, जिससे इबोला होता है। 'द कन्वरसेशन' अफ्रीका के वेले फाटाडे और उसिफो ओमोजोकपीया ने विषाणु विज्ञानी ओयेवाले तोमोरी से इसकी उत्पत्ति के बारे में पूछा और जानना चाहा कि लोग इस बीमारी से खुद को कैसे बचा सकते हैं।
क्या है मारबर्ग वायरस?
मारबर्ग वायरस 'मारबर्ग वायरस रोग' (एमवीडी) का कारण बनता है, जिसे पहले मारबर्ग रक्तस्रावी बुखार के रूप में जाना जाता था। इबोला वायरस के समान परिवार से संबंधित यह वायरस इंसानों में गंभीर वायरल रक्तस्रावी बुखार का कारण बनता है, जिसमें औसत मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत है। यह दर वायरस के स्वरूप और मामलों के प्रबंधन के आधार पर विभिन्न प्रकोपों में 24 प्रतिशत से 88 प्रतिशत के बीच होती है।
कहां से आया खतरनाक वायरस?
पहली बार 1967 में जर्मनी के मारबर्ग नामक शहर और बेलग्रेड, यूगोस्लाविया (अब सर्बिया) में इसका मामला आया था। दोनों शहरों में एक साथ यह बीमारी फैली। मारबर्ग पर प्रयोगशाला में अध्ययन के लिए युगांडा से लाए गए बंदरों से इसका प्रसार हुआ। बंदरों से संबंधित सामग्री (रक्त, ऊतक और कोशिकाओं) के साथ काम करने के परिणामस्वरूप प्रयोगशाला के कर्मचारी संक्रमित हो गए। इन बीमारियों से जुड़े 31 मामलों में से सात लोगों की मौत हो गई।
चमगादड़ की एक प्रजाति से जुड़ा वायरस?
शुरुआती प्रकोप के बाद दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मामले सामने आए हैं। अधिकतर मामले अफ्रीका में युगांडा, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और हाल में गिनी और घाना में आए। सीरोलॉजिकल अध्ययनों से नाइजीरिया में पूर्व में मारबर्ग वायरस के संक्रमण के प्रमाण भी सामने आए हैं। वायरस के वाहक या स्रोत की निर्णायक रूप से पहचान नहीं हो पाई है लेकिन इसका संबंध फ्रूट बैट (चमगादड़ की एक प्रजाति) से जोड़ा गया है। वर्ष 2008 में, युगांडा में एक गुफा का दौरा करने वाले यात्रियों में दो मामले सामने आए थे।
यह वायरस कैसे फैलता है?
यह वायरस संक्रमण के वाहक या भंडार (तरल पदार्थ, खून, उत्तक और कोशिकाओं) के संपर्क में आने से फैलता है। युगांडा के बंदरों से मारबर्ग के प्रसार के मामले में प्रयोगशाला के कर्मचारी बंदरों की कोशिकाओं और खून के संपर्क में आने से प्रभावित हुए थे। यह संक्रमित लोगों के रक्त, अंगों या शरीर से जुड़े अन्य तरल पदार्थों और सतहों तथा सामग्रियों के साथ सीधे संपर्क (टूटी हुई त्वचा या श्लेष्मा झिल्ली के माध्यम से) के माध्यम से इंसान से इंसान में भी फैल सकता है। बिस्तर, और इन तरल पदार्थों से दूषित कपड़े जैसी सामग्री से भी इसका प्रसार होता है। लेकिन, बहुत कुछ ऐसा है जिसके बारे में हम नहीं जानते। उदाहरण के लिए, क्या गुफाओं में चमगादड़ वाले स्थानों के संपर्क में आने से लोगों में संक्रमण हो सकता है।
क्या हैं लक्षण और ये कितने खतरनाक?
दो से 21 दिनों की अवधि में कुछ लक्षण दिखने के बाद, बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द की समस्या होती है। लक्षणों की शुरुआत के करीब पांचवें दिन, छाती, पीठ, पेट पर कुछ दाने दिखाई दे सकते हैं। मतली, उल्टी, सीने में दर्द, गले में खराश, पेट में दर्द और दस्त की समस्या भी हो सकती है। लक्षण तेजी से गंभीर हो जाते हैं और इसमें पीलिया, अग्नाशय सूजन, तेजी से वजन घटने, लिवर फेल होना, बड़े पैमाने पर रक्तस्राव तथा कई अंगों के सही से काम नहीं करने की समस्या होती है। इस बीमारी में औसत मृत्यु दर 50 प्रतिशत है और अधिकतम 88 प्रतिशत या न्यूनतम 20 प्रतिशत हो सकती है। इससे पता चलता है कि यह एक गंभीर संक्रमण है। घाना में दो लोग संक्रमित हुए और दोनों की मौत हो गई।