फेफड़ों में ओमिक्रॉन के संक्रमण का खतरा बेहद कम

कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोन का संक्रमण हालांकि तेजी से बढ़ रहा हो, लेकिन वैज्ञानिक अध्ययनों में पुष्टि हुई है कि फेफड़ों में इसके संक्रमण की आशंका बेहद क्षीण है। यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि ओमीक्रोन का संक्रमण गले तक ही ज्यादा रहता है तथा फेफड़े तक इसके पहुंचने के आसार सीमित हैं।

Update: 2022-01-08 03:21 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोन का संक्रमण हालांकि तेजी से बढ़ रहा हो, लेकिन वैज्ञानिक अध्ययनों में पुष्टि हुई है कि फेफड़ों में इसके संक्रमण की आशंका बेहद क्षीण है। यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि ओमीक्रोन का संक्रमण गले तक ही ज्यादा रहता है तथा फेफड़े तक इसके पहुंचने के आसार सीमित हैं।

यदि वायरस वहां तक पहुंचता भी है तो वह फेफड़ों की कोशिकाओं में प्रसार नहीं हो पाता है। दरअसल, संक्रमण के बाद वायरस तेजी से प्रतिकृति बनाता है, जिससे संक्रमित अंग को क्षति पहुंचती है। डेल्टा संक्रमण में वायरस फेफड़ों में पहुंचकर तेजी से अपनी प्रतिकृति बना रहा था।
नेचर जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में चूहों को ओमीक्रोन और अन्य कोरोना वरिएंट से संक्रमित कराया। जो चूहे ओमीक्रोन से संक्रमित थे उनके फेफड़ों में वायरस की मौजूदगी अन्य वेरिएंट की तुलना में न के बराबर थी। यह भी देखा गया है कि ओमीक्रोन से संक्रमित चूहों के वजन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ जबकि दूसरे वेरिएंट से संक्रमित चूहों का वजन तेजी से गिरने लगा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके फेफड़े संक्रमित होने लगे थे जिसके चलते उनकी बीमारी भयावह रुप धारण करने लगी। इस शोध के प्रमुख माइकल डायमंड ने कहा कि ओमीक्रोन संक्रमित चूहों में अन्य वेरिएंट से संक्रमित चूहों की तुलना में बीमारी दस गुना हल्की पाई गई। इसकी मुख्य वजह फेफड़ों में संक्रमण का नहीं फैलना है।
वायरस का फेफड़ों में प्रसार नहीं हो पाता
सैन फ्रांसिस्को की ग्लेडस्टोन इस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की विशेषज्ञ मेलनाई ओट के अनुसार कई अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि ओमीक्रोन का संक्रमण या तो फेफड़ों तक पहुंचता नहीं है और यदि वायरस वहां तक पहुंचता भी है तो वह कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाता है। क्योकि फेफड़ों में वायरस मल्टीप्लाई नहीं हो पाता है। यह राहत की खबर है। इससे संक्रमण में आक्सीजन निर्भरता, बीमारी की भयावहता अपेक्षाकृत कम रहेगी।
निचले श्वसन तंत्र को नहीं पहुंचा रहा नुकसान
रिपोर्ट में कैंब्रिज यूनिवसिर्टी के रवीन्द्र गुप्ता के शोध का भी जिक्र किया गया है। उन्होंने भी यह नतीजा निकाला है कि वायरस निचले श्वसन तंत्र (फेफड़ों) को क्षति नहीं पहुंचा रहा है लेकिन ऊपरी श्वसन तंत्र (गले) में संक्रमण तेजी से होता है तथा यह तेजी से प्रतिकृतियां बना रहा है। दक्षिण अफ्रीका में जिस प्रकार 30 दिसंबर को करीब डेढ़ महीने के भीतर पीक गुजर जाने का ऐलान किया और मौतें सीमित हुई, ब्रिटेन में भी कम खतरनाक रहा।


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