हड्डियों में छिपा है ओमिक्रॉन का इलाज

ओमिक्रॉन से निपटने के लिए सभी देश अपने स्तर पर प्रयास कर रहै हैं. साउथ अफ्रीका से फैले इस वैरिएंट से पूरी दुनिया ग्रस्त है

Update: 2022-01-04 07:39 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  साउथ अफ्रीका से फैले कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट से पूरी दुनिया इस वक्त जूझ रही है. हालांकि, डेल्टा वैरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन वैरिएंट ज्यादा खतरनाक नहीं है. साउथ अफ्रीका में ओमिक्रॉन के मामले अब लगातार कम दर्ज हो रहे हैं. दिसंबर महीन में ओमिक्रॉन का पहला मामला दर्ज हुआ था. एक महीने बाद साउथ अफ्रीका में कोरोना के मामले में कमी दर्ज हो रही है. ऐसे में सभी यही सोच रहे हैं कि आखिर साउथ अफ्रीका ने इतनी जल्दी इस वायरस को कैसे मात दी? साउथ अफ्रीका के केप टाउन यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में सामने आया है कि हड्डियों (बोन मैरो) में छिपी खास कोशिकाओं 'टी सेल' से साउथ अफ्रीका ने ओमिक्रॉन को मात दी है. अफ्रीका के गाउटेंग प्रोविंस में ओमिक्रॉन पर यह रिसर्च की गई. गाउटेंग प्रोविंस वही जगह है, जहां सबसे पहला ओमिक्रॉन का मामला दर्ज किया गया था.

हड्डियों में छिपी कोशिकाओं का योगदान
ओमिक्रॉन को हराने में हड्डियों (बोन मैरो) में छिपी कोशिकाओं (टी सेल) का अहम योगदान है. इंसान के शरीर में दो तरह की कोशिकाएं होती हैं. पहली व्हाइट दूसरी ब्लड सेल. यह इंसान के शरीर में होने वाले किसी वायरस अटैक को पहचानकर उसे मारने का काम करती है. माना जाता है कि बी सेल्स में शरीर में बीमारी के लक्षण की पहचान कर पाता है. वहीं टी सेल्स बिमारी के वायरस से लड़ने का काम करती है.
वैक्सीनेशन पर ज्यादा फोकस
ऐसे में साउथ अफ्रीका में कोरोना वैक्सीन ले चुके या संक्रमितों में 70-80 फीसद मरीजों में टी सेल्स के खिलाफ अच्छा रिस्पॉन्स किया. टी सेल आपको संक्रमित होने से रोकता है, लेकिन संक्रमण के बाद शरीर के अंदर पहुंचते ही वायरस को मार देता है. साउथ अफ्रीका में लोगों के टी सेल्स को मजबूत करने के लिए वैक्सीनेशन को तेज करके ओमिक्रॉन को हराया है. तो भारत भी साउथ अफ्रीका के इस तरीके से सीख सकता है और कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट को मात दे सकता है.


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