लंदन। पेड़-पौधों में जान होती है, ये सभी जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि वे बातें भी कर सकते हैं। मशरूम आपस में इंसानों की तरह ही बातचीत करते हैं। ये काम वे अपनी जड़ों की मदद से करते हैं, जिसे माईसेलियम कहा जाता है। शोध में पता लगा कि मशरूम्स के पास अपना मस्तिष्क भी होता है, और महसूस करने की चेतना भी। इस शोध के बाद वैज्ञानिकों की दिलचस्पी फंगस प्रजाति की इस वनस्पति में बढ़ने लगी। मशरूम की अलग-अलग किस्मों पर लगातार शोध हो रहे थे। इस बीच ताजा खुलासा ये हुआ कि अपने ब्रेन को तेज करने के लिए वे भी हमारी तरह की सक्रिय रहते हैं।
खाने वाले मशरूम, जिस हेलिसियम एरियासिअस कहते हैं, में ऐसा प्रोटीन होता है, जो नर्व ग्रोथ पर काम करता है। इस प्रोटीन को न्यूरोट्रॉफिन्स कहते हैं। यहां तक कि इस प्रोटीन को खाना हमारे ब्रेन डेवलपमेंट में भी मदद करता है। प्रोटीन फैमिली के तहत आने वाले न्यूरोट्रॉफिन्स का काम है, न्यूरॉन्स की सेहत पक्की करना। ये उसके विकास और मेंटेनेंस पर काम करता है। ये जड़ में भी पाया जाता है और एक दूसरे से जुड़ा होता है। खाने लायक मशरूम की कई प्रजातियों में दिखा कि उनमें मौजूद प्रोटीन लगातार न्यूरॉन्स के विकास में लगा रहता है। एशियाई देशों में खासतौर पर खाए जाने वाले लायन्स मेने मशरूम इसतरह के लोगों को देते हैं, जिनमें मस्तिष्क से जुड़ी कोई परेशानी हो। यानी आम लोगों को बिना किसी रिसर्च या स्टडी के ही कहीं न कहीं इसकी जानकारी थी कि इस तरह के मशरूम को खाना ब्रेन डेवलपमेंट में मदद कर सकता है।
आपकों पता हैं कि मशरूम किस तरह की भाषा बोलते हैं, वैज्ञानिकों का मानना है कि वे लगभग 50 शब्द बोल पाते हैं। उनके हर शब्द की लंबाई में लगभग साढ़े पांच अक्षर होते हैं। हालांकि रोजमर्रा की बातचीत में वे लगभग 20 ही शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। इलेक्ट्रिकल इंपल्स यानी बिजली की तरंगों के जरिए ये शब्द एक से दूसरे तक पहुंचते हैं।