एक्सपर्ट्स के सुझाव से बच्चों का स्क्रीन टाइम कम कर सकते है जानिये
महामारी के दौर में पूरी दुनिया एक वर्चुअल वर्ल्ड (Virtual World) में तब्दील हो गई है. मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप और इंटरनेट अब स्टूडेंट लाइफ (Student Life) का हिस्सा बन चुके हैं. ऐसे में माता-पिता को इस बात की चिंता सताने लगी है
जनता से रिश्ता बेबडेस्क | महामारी के दौर में पूरी दुनिया एक वर्चुअल वर्ल्ड (Virtual World) में तब्दील हो गई है. अब मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप और इंटरनेट अब स्टूडेंट लाइफ (Student Life) का हिस्सा बन चुके हैं. ऐसे में पैरेंट्स को इस बात की चिंता सताने लगी है कि इसका असर बच्चों की आंखों के साथ-साथ उनके दिमाग पर भी पड़ रहा है. ऐसे में उनके मन में ये सवाल दौड़ रहा है कि बच्चों की जिंदगी में डिजिटल इंटरफेस (Digital Interface) को किस तरह कम किया जा सकता है? साइकाइट्रिस्ट (Psychiatrist) डॉ समीर पारीख (ने इसे लेकर कुछ सुझाव दिए हैं.
महामारी के दौर में पूरी दुनिया एक वर्चुअल वर्ल्ड (Virtual World) में तब्दील हो गई है. मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप और इंटरनेट अब स्टूडेंट लाइफ (Student Life) का हिस्सा बन चुके हैं. ऐसे में माता-पिता को इस बात की चिंता सताने लगी है कि इसका असर बच्चों की आंखों के साथ-साथ उनके दिमाग पर भी पड़ रहा है. ऐसे में उनके मन में ये सवाल दौड़ रहा है कि बच्चों की जिंदगी में डिजिटल इंटरफेस (Digital Interface) को किस तरह कम किया जा सकता है. जिससे बच्चों की लर्निंग भी न रुके और स्क्रीन टाइम भी मॉनिटर हो जाए.
आपको बता दें कि पहले भी कई स्टडीज में ये बात निकलकर सामने आई है कि बच्चे कितना समय स्क्रीन पर बिता रहे हैं, ये तो महत्वपूर्ण है कि लेकिन उससे ज्यादा ये भी जरूरी है कि वो कौन सा कंटेंट देख रहे हैं? दैनिक भास्कर अखबार की न्यूज रिपोर्ट में साइकाइट्रिस्ट (Psychiatrist) डॉ समीर पारीख ने इसे लेकर कुछ सुझाव दिए हैं. डॉ समीर पारीख का कहना है कि आज भले इस डिजिटल इंटरफेस को कम करने की बात हो रही है, लेकिन इसकी अहमियत को नकारा नहीं जा सकता है. ये स्टूडेंट्स को स्ट्रेस (Stress) कम करने का मौका देती है लेकिन इसके बावजूद सबसे जरूरी बात जो समझने की है वो ये कि इन माध्यमों को बच्चे कितना समय देते हैं? मतलब उनका स्क्रीन टाइम (Screen Time) कितना है?
डॉ समीर के मुताबिक गैजेट्स के इस्तेमाल के दौरान बच्चों को थोड़ी-थोड़ी देर में ब्रेक लेना चाहिए. इस ब्रेक का मतलब ये होना चाहिए कि बच्चा थोड़ी देर के लिए डिजिटल वर्ल्ड से पूरी तरह से दूर रहे. ये नहीं होना चाहिए वो लैपटॉप से हटा और मोबाइल या टैबलेट में फिर से कुछ करने बैठ गया.
डॉ समीर पारीख कहते हैं कि जब आपका बच्चा ऐसी किसी स्थिति से गुजर रहा हो तो माता-पिता को चाहिए उन्हें बच्चे की पसंद को देखते हुए उसे अलग-अलग एक्टिविटीज की क्लासेज में भेजें, जैसे गिटार या डांसिंग क्लास, पेंटिंग क्लास आदि. इसके साथ ही माता-पिता को चाहिए कि बच्चों के पसंदीदा स्पोर्ट्स में उन्हें बढ़ावा दें. जिससे की वो गैजेट्स से दूर रहें.
पैरेंट्स बच्चे के साथ स्पेंड करें टाइम
डॉ समीर के मुताबिक, ऐसा नहीं है कि सारे स्टेप्स बच्चों के लिए ही हैं. पैरेंट्स को भी चाहिए कि वो भी कुछ समय के लिए इन गैजेट्स से दूरी बनाएं और बच्चों के साथ खुद भी ऑफलाइन्स गेम्स खेलें. आपकी इस पॉजिटिव अप्रोच का बच्चों पर सीधा असर होगा.
खाने की मेज पर फोन से रखें दूरी
डॉ समीर पारीख (Dr Samir Parikh) कहते हैं कि पैरेंट्स भी खाने की टेबल पर खुद को फोन से दूर रखें. और इस नियम को घर का हर सदस्य अपनाए. होना ये चाहिए कि खाने की मेज घर के माहौल को खुशनुमा बनाने में मदद करें. बच्चों की आंखें काने की खाली पर रहें ना कि मोबाइल की स्क्रीन पर. प