जानिए उग्र ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव से बचने का बहुत ही सरल और ये अचूक उपाय

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक का समय होलाष्टक कहा जाता है।

Update: 2022-03-10 04:43 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक का समय होलाष्टक कहा जाता है। वहीं हिन्दू पंचांग के अनुसार आज 10 मार्च से होलाष्टक प्रारंभ हो जाएंगे और संपूर्ण जगत उग्र ग्रहों के प्रभाव में आ जाएगा और वहीं होलाष्टक काल में शादी-ब्याह, सगाई, मुंडन, ग्रह प्रवेश और भूमि पूजन जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं, इस दौरान सभी प्रकार के शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। लेकिन होलाष्टक के दौरान स्नान-दान, जप-तप और पुण्य आदि कार्य किए जा सकते हैं और वहीं होलाष्टक काल में किया गया स्नान-दान, जप-तप आदि कार्य बहुत ही शुभ और चमत्कारी प्रभाव आपके जीवन में लाता है। तो आइए जानते हैं होलाष्टक के दौरान किए गए स्नान-दान और जप-तप आदि से हमारे जीवन में क्या प्रभाव होता है और यह हमारे लिए कैसे फायदेमंद होता है।

होलाष्टक के दौरान अधिक से अधिक जप-तप और अपने आराध्य का ध्यान करना चाहिए। ऐसा करने से आपके और आपके परिवार पर आपके ईष्ट की कृपा बनी रहेगी और उग्र ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव से आप दूर रहोंगे।
होलाष्टक के दौरान स्नान-दान करने से उग्र ग्रहों का प्रभाव आपके ऊपर सकारात्मक रुप में होता है और वे ग्रह आपको शुभ फल प्रदान करते हैं।
होलाष्टक के दौरान स्नान दान आदि पुण्य कार्य करने से आपके पितृ प्रसन्न होते हैं और वे आपको सुखी जीवन का वरदान देते हैं। खासकर होलाष्टक और होली के दिन पितृों को जल अवश्य देना चाहिए।
होलाष्टक काल में आपको भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करना चाहिए। क्योंकि भगवान विष्णु ही संपूर्ण जगत के पालनहार है और उनकी कृपा से आपके जीवन में किसी प्रकार की कोई दिक्कत और परेशानी नहीं होगी।
होलाष्टक काल में प्रतिदिन शिवलिंग पर दूध, दही, जल, बेलपत्र और पुष्प आदि अर्पित करते हुए भगवान शिव का ध्यान करें और उनके मंत्रों का जप करें। इससे भी आपके जीवन पर उग्र ग्रहों का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं होगा।


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