जानिए " अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम

हर वर्ष विश्व भर में 8 मार्च को "अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" ("इंटरनेशनल वीमन्स डे") मनाया जाता है.

Update: 2021-03-03 11:11 GMT

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | हर वर्ष विश्व भर में 8 मार्च को "अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" ("इंटरनेशनल वीमन्स डे") मनाया जाता है. यह दिन महिलाओं के अधिकारों के लिए आंदोलन का प्रतीक है, और इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य भी महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना है. इस वर्ष के लिए "अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" 2021 की थीम ("महिला नेतृत्व: COVID-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना") रखी गयी है.

" अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस " की थीम

इस वर्ष के लिए "अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" की थीम 'Women in leadership: an equal future in a COVID-19 world' ("महिला नेतृत्व: COVID-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना") रखी गयी है. यह थीम COVID-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों, इनोवेटर आदि के रूप में दुनिया भर में लड़कियों और महिलाओं के योगदान को रेखांकित करती है. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को थीम के साथ पहली बार 1996 में मनाया गया था. उस वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने इसके लिए थीम रखी थी 'अतीत का जश्न, भविष्य की योजना'.

"अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" की शुरुआत वर्ष 1908 में अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में हुए, एक महिला मजदूर आंदोलन से हुई थी. जब क़रीब 15 हज़ार महिलाएं अपने अधिकारों की मांग के लिए सड़कों पर उतरी थीं. ये महिलाएं काम करने के समय को कम करवाने, अच्छी तनख़्वाह और वोटिंग के अधिकार की मांग के लिए प्रदर्शन कर रही थीं. महिलाओं के इस विरोध प्रदर्शन के लगभग एक वर्ष बाद, अमरीका की सोशलिस्ट पार्टी ने पहले राष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने की घोषणा की थी. जिसके बाद महिला दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का विचार एक महिला क्लारा ज़ेटकिन ने दिया था.

क्लारा उस वक़्त यूरोपीय देश डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में कामकाजी महिलाओं की अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में शिरकत कर रही थीं. कांफ्रेंस में उस समय लगभग 100 महिलाएं मौजूद थीं, जो 17 देशों से आई थीं. इन सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से क्लारा के इस प्रस्ताव को मंज़ूर किया था. क्लारा ज़ेटकिन ने वर्ष 1910 में विश्व स्तर पर महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव किया था. पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस वर्ष 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटज़रलैंड में मनाया गया था.लेकिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को औपचारिक मान्यता वर्ष 1975 में उस समय मिली थी जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे मनाना शुरू किया था.

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का उद्देश्य

'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' मनाने का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य महिलाओं और पुरुषों में समानता बनाने के लिए जागरूकता लाना है. साथ ही महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है. आज भी कई देशों में महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त नहीं है. महिलाएं शिक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से पिछड़ी हुई है. साथ ही महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले भी सामने आते रहते हैं. यही नहीं, नौकरी में जहां महिलाओं को पदोन्नति में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, तो वहीं स्वरोजगार के क्षेत्र में भी महिलाएं पिछड़ी हुई हैं. जब 19वीं शताब्दी में महिला दिवस की शुरुआत की गई थी, तब महिलाओं ने मतदान का अधिकार प्राप्त किया था.

देश और दुनिया में ऐसे मनाया जाता है महिला दिवस

"अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" को पूरे विश्व में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है. ये एक ऐसा दिन बन गया है, जिसमें हम समाज में, राजनीति में और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में महिलाओं की तरक्की का जश्न मनाते हैं. भारत में इस दिन महिलाओं पर आधारित, अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन होता है. लोग महिलाओं को शुभकामना सन्देश और तरह-तरह के तोहफे देते हैं. साथ ही नारी शक्ति पुरस्कार भी इस अवसर पर प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार व्यक्तियों, समूहों, गैर सरकारी संगठनों या संस्थानों को प्रदान किया जाता है. यह महिलाओं को सशक्त बनाने के क्षेत्र में किए गए असाधारण कार्यों के लिए दिया जाता है. 

वहीं रूस, चीन, कंबोडिया, नेपाल और जार्जिया जैसे कई देशों में इस दिन अवकाश रहता है. चीन में बहुत सी महिलाओं को "अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" के दिन काम से आधे दिन की छुट्टी दी जाती है. इसके साथ ही इटली की राजधानी रोम में महिलाओं को इस दिन मिमोसा (छुईमुई) के फूल देने का रिवाज़ है. वहीं कुछ देशों में इस दिन बच्चे अपनी मां को गिफ्ट देते हैं. तो कई देशों में इस दिन पुरुष अपनी पत्नी, फ़्रेंड्स, माँ और बहनों को उपहार भी देते हैं.

आइए जाने डॉक्टर रेखा दावर के बारे में...

मुंबई स्थित सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर में मेडिकल एजुकेशन की हेड और ऑब्स्टेट्रिक्स और गायनिकॉलजी में कंसल्टेंट डॉक्टर रेखा डावर उन चुनिंदा शख्सियतों में से एक हैं, जो दिल की सुनते हैं और मानव सेवा के लिए अपना जीवन लगा देते हैं.

अमेरिका में अपने शानदार करियर को हमेशा के लिए अलविदा कहकर भारत लौटने वाली डॉक्टर रेखा डावर ने ऑब्स्टेट्रिक्स और गायनिकॉलजी की फील्ड में डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एमडी) की पढ़ाई पूरी करने के बाद औरंगाबाद में गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज जॉइन किया और जिन्दगी बचाने के अपने मिशन में दिलो-जान से जुट गईं. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. परिवार नियोजन और स्तनपान के प्रचार-प्रसार के अलावा उन्होंने महिलाओं के भीतर कॉन्ट्रासेप्शन को लेकर भी जागरूकता जगाई, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में. हॉस्पिटल के अपने नियत कामों के अलावा वह लगातार इन कामों में लगी रहीं. वह आईसीएमआर और एचआरआरसी से भी जुड़ी रहीं. बाद में वे नाको से भी जुड़ी रहीं और मां से बच्चे को एचआईवी संक्रमण न हो, इस दिशा में काम करती रहीं.

वह कहती हैं, 'महिलाओं का इलाज करके और भविष्य के डॉक्टरों को प्रशीक्षित करके जो संतुष्टि मुझे मिलती है, उसकी कोई तुलना नहीं है.' महिलाओं के स्वास्थ्य की बेहतरी की दिशा में किए गए उनके कार्यों के लिए यूनाइटेड नेशन्स प्रोग्राम ऑन एचआईवी एंड एड्स ने भी सम्मान दिया. अपने शानदार काम के लिए उन्हें दुनिया भर में अनुशंसा मिली. साल 2009 में अमेरिका में उन्हें लबशेतवर इंटरनेशनल अवॉर्ड फॉर फैमिली प्लानिंग से भी नवाजा गया.

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