चांदनी चौक के 'नटराज दही भल्ला कॉर्नर' पर पहुंचें दही-भल्ले और आलू की टिक्की खाने

जब भी दही-भल्ले या आलू की टिक्की की बात होगी तो जुबान पर चटपटा स्वाद तैरने लगेगा.

Update: 2021-12-06 07:04 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जब भी दही-भल्ले या आलू की टिक्की की बात होगी तो जुबान पर चटपटा स्वाद तैरने लगेगा. इन आइटमों की किसी भी दुकान पर जाएंगे तो बेचने वाले इनके ऊपर बहुत कुछ डालकर इन्हें सजावटी (Garnish) बनाकर पेश करेंगे, ताकि यह जुबान को स्वादिष्ट लगे और आंखों में भी तरावट पैदा करे. लेकिन आज हम आपको ऐसी दुकान पर लिए चल रहे हैं, जहां इन दोनों व्यंजनों को परोसते वक्त कोई तामझाम नहीं होगा. देखने में भी यह बिल्कुल साधारण से होंगे, पर दुकान पर इन्हें खाने वालों की भीड़ हमेशा दिखाई देगी. देश की राजधानी दिल्ली की दही-भल्ले और आलू की टिक्की की इस दुकान को सबसे पुरानी माना जाता है. अपने इसी नाम को आज भी कायम किए हुए है यह दुकान.

दुकान पर हमेशा लोगों का जमघट दिखाई देगा
पुरानी दिल्ली के मशहूर बाजार चांदनी चांदनी चौक में प्रवेश करेंगे तो आगे चलकर दायीं ओर सेंट्रल बैंक की बिल्डिंग के बगल में कोने की एक छोटी दुकान को 'नटराज दही भल्ला कॉर्नर' के तौर पर जाना जाता है. जब भी आप इस दुकान पर जाएंगे, इन दोनों व्यंजनों को खाने के लिए लोगों की भीड़ नजर आएगी. खाने वालों का हाल यह है कि दुकान वालों ने सिस्टम को बनाने के लिए अपना गार्ड भी नियुक्त कर रखा है. असल में चांदनी चौक में खरीदारी करने के लिए आने वालों का यह ध्येय रहता है कि नटराज पर कुछ खा लिया जाए. न कोई तामझाम और न ही कोई चकमक. इसके बावजूद इस दुकान को दिल्ली की मशहूर दुकानों में शुमार किया जाता है.
दही-भल्ले की अवधारणा यहां टूटती दिखाई देगी
पहले दही-भल्ले की बात करें. आप ऑर्डर देंगे. आपके सामने इसकी प्लेट आएगी तो दही-भल्ले की जो अवधारणा आपने सोची हुई है, वह एकदम से बिसर जाएगी. कारण, भल्लों पर फेट फ्री गाढ़ी दही भरपूर होगी और उसके ऊपर विभिन्न किस्मों के मगज (बीजों) से भरी सौंठ भी खूब होगी. बस ऊपर से खास किस्म का मसाला. न कचालू की चाट, न अदरक के लच्छे और न ही धनिया, या अनारदाने. एकदम सीधी-सादी प्लेट.
लेकिन जैसे ही यह मुंह में जाएगा, आपको महसूस हो जाएगा कि कुछ अलग ही स्वाद है इस दही-भल्ले का. मुलायमियत से भरपूर, गाढ़े दही का अलग सा स्वाद और हल्का खट्टापन लिए हुए मीठी सौंठ. बस, इस दही-भल्ले की इतनी सी दास्तान है. असल में दही-भल्ले में अनार और ड्राई-फ्रूट्स की फीलिंग है, जो इसे दूसरे दही भल्लों से अलग बनाती है. एक प्लेट 60 रुपये की है.
ऊपर से ब्राउन और कुरकुरी लेकिन अंदर से मक्खन की तरह मुलायम है टिक्की
इसी तरह यहां की आलू की टिक्की भी मोहक है. चौड़े तवे पर आपको हमेशा तलती और सौंधी-सौंधी खुशबू उड़ाती सी महसूस होगी. ऊपर से ब्राउन व कुरकुरी टिक्की पर मीठी व हरी चटनी अलग ही स्वाद पैदा कर देती है. अंदर से यह टिक्की इतनी मुलायम है कि मुंह में डालते ही घुलना शुरू हो जाती है. टिक्की की एक प्लेट की कीमत भी 60 रुपये की है. कई लोग तो इस दुकान की टिक्कियों को प्राथमिकता देते हैं. एकदम सादी लेकिन स्वाद में दिलकश.
अंग्रेजों के जमाने से जलवे बिखेर रही है यह दुकान
चांदनी चौक में यह दुकान आजादी से पहले की है. तब इस बाजार में आम आदमी, पुरानी दिल्ली के रईस और अंग्रेज घुमा करते थे. वर्ष 1940 में इन्हीं लोगों के स्वाद को देखते हुए तब प्यारेलाल शर्मा ने इस दुकान को शुरू किया. उसके बाद उनके बेटे चांद शर्मा ने इस दुकान को संभाला. आज उनके दो भतीजे जीतिन शर्मा व राजीव शर्मा इस काम को देख रहे हैं. जब यह दुकान शुरू हुई थी, तब देसी घी में टिक्की तली जाती थी. साल भर पहले ही देसी घी का चलन खत्म कर दिया गया है.
कारण यह है कि ओनर को मन-मुताबिक देसी घी नहीं मिल रहा था. इसके बावजूद इस दुकान का जलवा आज भी कायम है. सुबह 11 बजे दुकान खुल जाती है और रात 9 बजे तक इन व्यंजनों का स्वाद लिया जा सकता है. कोई अवकाश नहीं है.


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