Jharkhand : रिम्स में बिना सहमति के हो रहा था ड्रग ट्रायल, कैंसर मरीजों से खिलवाड़, विभागाध्यक्ष हटाए गए

रांची : अगर हमारे शरीर में छोटी-छोटी भी दिक्कते आती है तो हम डॉक्टर की ओर रुख करते हैं, और इस उम्मीद में जाते है की हम जल्द ही स्वस्थ हो जाए. लेकिन आजकल ऐसे कई मामले सामने आरहे है जिसे सुन सबका भरोसा डॉक्टरों से उठता जा रहा है. रिम्स की बदहाली और डॉक्टरों …

Update: 2024-01-16 02:54 GMT

रांची : अगर हमारे शरीर में छोटी-छोटी भी दिक्कते आती है तो हम डॉक्टर की ओर रुख करते हैं, और इस उम्मीद में जाते है की हम जल्द ही स्वस्थ हो जाए. लेकिन आजकल ऐसे कई मामले सामने आरहे है जिसे सुन सबका भरोसा डॉक्टरों से उठता जा रहा है. रिम्स की बदहाली और डॉक्टरों की लापरवाही अक्सर सामने आती रहती है. वहीं, अब एक नया मामला सामने आया है. बता दें, रिम्स के कैंसर विभाग में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) की इजाजत के बिना मरीजों पर दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल किया गया है. डीसीजीआई की रिपोर्ट की माने तो रिम्स प्रबंधन ने ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख और मुख्य शोधकर्ता डॉ. अनुप कुमार को पद से बर्खास्त कर दिया है. और अब उनकी जगह पर डॉ. रश्मी सिंह को विभागाध्यक्ष बनाया गया है.

यह आदेश रिम्स निदेशक डॉ. राजीव कुमार गुप्ता ने 29 दिसंबर 2023 को ही जारी कर दिया था. बता दें, DCGI ने अपनी 26 प्वाइंट रिपोर्ट में दवा के क्लिनिकल ट्रायल के नियमों का पालन नहीं करने का भी आरोप लगाया है. साथ ही यह भी खुलासा किया कि रिसर्च के नाम पर कंपनी से मिले पैसों को मुख्य शोधकर्ता ने अपनी जेब के अंदर दबा लिया यानी की अपने खाते में ट्रांसफर कर लिया.

रिपोर्ट के अनुसार ऐसा बताया गया है कि उक्त मामले की सूचना मिलने पर केंद्रीय औषधि निरीक्षक डॉ. जयज्योति राय, अरविंद कुमार पंवार, रामकुमार झा और डॉ. कल्याण कुसुम मुखर्जी ने 20 और 21 सितंबर 2022 को रिम्स के कैंसर विभाग का निरीक्षण किया यानी की जायजा लिया. इस जांच में कई कमियां पाई गईं. निरीक्षण के बाद केंद्रीय औषधि निरीक्षकों की टीम वापस लौट आई और 7 पेज की रिपोर्ट तैयार की. वहीं, राज्य औषधि निदेशालय के निर्देश पर ड्रग इंस्पेक्टर रामकुमार झा ने 18 जुलाई 2023 को निरीक्षण किया. इसमें यह पाया गया कि दवा कंपनी इंटास के प्रतिनिधि डॉ. कुणाल कुमार अनधिकृत रूप से कैंसर रोगियों के परिजनों को ड्रग ट्रायल दवाएं बेच रहा था. इसके साथ ही वार्ड के फ्रिज में भी दवाएं रखी हुई मिली. जांच के बीच दवा का कोई हिसाब-किताब की जानकारी नहीं मिली.

दवा कंपनी ने DCGI से अनुमति नहीं ली
बता दें, दवा निर्माता कंपनी 'इंटास' ने कैंसर की दवा लिपोसोमल डोसेटेक्सेल इंजेक्शन के ट्रायल के लिए DCGI से अनुमति नहीं ली थी. जिसे बाद रिम्स में जिन कैंसर मरीजों पर इस दवा का परीक्षण किया गया, लेकिन उनको इस बात से बेखबर रखा. आम कैंसर मरीजों ने भी इस दवा के उपयोग का आरोप लगाया. वहीं, मुख्य रिसर्चर्स ने दवा के यूज और शोध स्थल के लिए डीसीजीआई से इजाजत भी नहीं ली थी.

बरहाल, दस्तावेज़ पर यह दिखाया गया कि मरीजों के परिजनों से सहमति ली गई है. लेकिन, इसकी विश्वसनीयता सस्पेंस है. नियमानुसार किसी भी दवा के ट्रायल के दौरान मरीज को सभी तरह की सुविधाएं मुफ्त में मिली है. इसमें मरीज का भोजन, रहने का खर्च, परीक्षण, परिचारक का खर्च यह सभी शामिल है. इसके अलावा मरीजों को शोध की गंभीरता के अनुसार एक निश्चित राशि का भरना पड़ता है. लेकिन इन सभी मानकों का पालन नहीं किया गया. इतना ही नहीं दवा के बदले मरीजों से मोटी रकम ली गई.

क्या है ड्रग ट्रायल की प्रक्रिया ?
बता दे, अगर किसी नई दवा का क्लिनिकल ट्रायल करना रहता है तो पहले नियमों का पालन करना होता है. ट्रायल से पहले रोगियों की अनुमति ली जाती है. अगर इस दौरान उन्हें किसी तरह की परेशानी हुई तो इसका पूरा जिमा उस कंपनी और शोधकर्ताओं की होती है.

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