विवान आखिर बन ही गए अदाकारी के ‘शाह’, नसीर के बेटे की ये फिल्म भीतर तक झकझोर देगी

नसीर के बेटे की ये फिल्म भीतर तक झकझोर देगी

Update: 2023-08-08 07:19 GMT
हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता संजय मिश्रा की फिल्म 'वध' जब रिलीज हुई, तो इस फिल्म को लोगों ने खूब पसंद किया। फिल्म में बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए संजय मिश्रा को सोशल मीडिया पर खूब बधाइयां मिली, उन्हें व फिल्म बनाने वालों को पुरस्कार भी मिले। संजय मिश्र ने सबका आभार वक्त करते हुए जवाब दिया, ‘धन्यवाद, कहां देखे?’ ये संजय मिश्रा की पीड़ा है जो शब्दों में बयां हो ही गई। हाल ही में मुंबई में हुए फिक्की फ्रेम्स के दौरान सूचना और प्रसारण मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि कथ्य आधारित अच्छी फिल्में दर्शकों तक पहुंचें, इसके लिए एक ओटीटी की संकल्पना पर मंत्रालय विचार कर रहा है। लेकिन, बात उसके बाद फिर आई गई हो गई और जो देसी विदेशी ओटीटी देश में इन दिनों सक्रिय हैं, वहां ‘अच्छी’ सामग्री की समझ रखने वाले लोग गिनती के हैं। हालत ये है कि करीब सात साल पहले बनी संजय मिश्रा की फिल्म 'कोट' इस हफ्ते देश के गिनती के सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। और, सवाल फिर वहीं है कि ऐसी फिल्मों को दर्शक देखें कहां?
किसी भी क्षेत्र में कामयाब होने के लिए सपने देखने का बहुत जरूरी है। अगर आपके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है तो दूर दूर तक आपके जीवन में कुछ भी नजर नहीं आएगा। फिल्म 'कोट' ऐसे ही एक दलित परिवार की कहानी है। उसके जीवन का यही लक्ष्य है कि किसी तरह से रात के खाने का इंतजार हो जाए। दिन तो मंदिर के प्रसाद से गुजर जाता है, लेकिन क्या होगा जब रात होगी? परिवार के लिए रात के खाने का मुश्किल से इंतजाम हो पाता हैं। लेकिन कहानी का नायक जब सपना देखता है कि उसे भी पढ़े लिखे आदमी की तरह कोट पहनना है, तो उसकी जिंदगी में धीरे- धीरे परिवर्तन आना शुरू हो जाता है।
फिल्म की कहानी बिहार के एक ऐसे दलित परिवार की है, जिन्हें भोजन के लिए 21वीं सदी में भी संघर्ष करना पड़ रहा है। एक दिन माधो के गांव में कुछ एनआरआई आगंतुक आते हैं। माधो देखता है कि उनके महंगे कोट के कारण इनकी प्रशंसा हो रही है। तो वह भी कोट खरीदने का मन बनाता है। जब वह अपने पिता से कोट के लिए पैसे मांगता तो उसके पिता को लगता कि उस पर भूत प्रेत का साया है। जिस घर में खाने के दाने नहीं, और जिस परिवार ने जिंदगी में कभी नए कपड़े नहीं पहने, ऐसे परिवार में ऐसा सोचना भी गलत है। मिठाई की दुकान को ललचाई नजरों से देखना। पेट भरने के लिए चूहे भूनकर खाना, या किसी के मरने का इंतजार करना कि कोई मरे तो उसकी तेरहवीं में भर पेट खाना खाने को मिलेगा। जिस परिवार की ऐसी दशा हो, वहां कोट के लिए पिता से पैसे मानना तारे तोड़ लाने की इच्छा करने जैसा है।
लेकिन एक कहावत है कि जहां चाह है वहा राह । माधव कोट खरीदने के लिए गांव के कुछ लोगों को इकट्ठा करके बांस से बनी टोकरियों और पंखे का व्यापार शुरू करता है। लेकिन जैसे ही उसकी जिंदगी पटरी पर धीरे- धीर चलनी शुरू होती है। उसकी जिंदगी में एक विलेन आ जाता है। समाज में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो खुद तो कुछ करना नहीं चाहते, और अगर कोई इंसान कुछ करना चाहता है तो उन्हें बर्दाश्त नहीं होता। ईर्ष्या के चलते टोकरियां जला दी जाती हैं और माधव के सपने एक बार फिर खुद टूटकर बिखर जाते हैं। वैसे सफलता इतनी आसानी से मिलती ही कहा है, और अगर सफलता आसानी से मिल भी जाए तो जिंदगी में उसका कोई मोल नहीं रह जाता है। माधव लकड़ी से बने ट्राली बैग का निर्माण करता है। और, देखते ही देखते एक अनपढ़ और दलित परिवार का लड़का सबसे सफल बिजनेसमैन बनकर लोगों के लिए प्रेरणा बनता है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के एक टीवी इंटरव्यू के साथ फिल्म खत्म होती है जिसमें वह कहते हैं कि हमारे नौजवान रोजगार के लिए इधर उधर भटक रहे हैं, लेकिन स्व रोजगार के जरिए वह लोग भी माधव की तरह अपनी जिंदगी बदल सकते हैं।
फिल्म के लेखक -निर्देशक अक्षय दित्ती ने बहुत ही खूबसूरत विषय चुना है और सात साल की कड़ी मेहनत के बाद फिल्म को सिनेमाघरों में लाने के लिए सफल रहे। फिल्म की रिलीज डेट कई बार टली, लेकिन फिल्म के नायक माधव की तरह उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लेकिन सवाल यह उठता है कि दर्शक अगर फिल्म देखना भी चाहे तो कैसे और कहां देखें? इस तरह की फिल्मों की सबसे बड़ी समस्या फिल्म के रिलीज को लेकर होती है। और, फिल्म के निर्माण में प्रोड्यूसर इतना टूट जाता है कि फिल्म को प्रमोट करने के लिए उसके पास बजट नहीं बचता है। अब सवाल यह उठता है कि फिल्म तो बेहतरीन है, पर जंगल में मोर नाचा किसने देखा!
फिल्म के कलाकारों की परफॉर्मेंस की जहां तक बात है, संजय मिश्रा का फिल्म में जबरदस्त काम तो है ही दलित लड़के माधव की भूमिका में नसीरुद्दीन शाह के बेटे विवान शाह ने अपने अभिनय से जबर्दस्त तरीके से प्रभावित किया है। फिल्म में माधव की प्रेमिका की भूमिका अभिनेत्री शालिनी पांडे की छोटी बहन पूजा पांडे ने निभाई है, फिल्म में उनको कुछ खास स्पेस नहीं मिला है। फिल्म के बाकी कलाकार काफी हद तक अपनी भूमिका के साथ न्याय करने में सफल रहे। फिल्म के संवाद बहुत अच्छे हैं। फिल्म बीच-बीच में जहां अपनी पकड़ खोने लगती है वहां सूत्रधार की भूमिका में आकर नसीरुद्दीन शाह उस कमी को पूरी कर देते हैं। फिल्म का गीत संगीत अच्छा है, लेकिन उसका प्रचार ही फिल्म की तरह नहीं हुआ है। इस तरह की फिल्मों को अगर सही ढंग से प्रमोट करके रिलीज किया जाए तो निश्चित रूप से दर्शक सिनेमा घरों में फिल्म देखने आ सकते हैं
Tags:    

Similar News

-->