बाहुबली राजनेता के जीवन से प्रेरित है यह कहानी, संकेतों को समझेंगे तो चौंक जाएंगे

अगर आप ने अभी तक यह सीरीज नहीं देखी है, तो इसे देख सकते हैं.

Update: 2022-07-29 01:56 GMT

सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्में और वेब सीरीज एंटरटेनमेंट की नई धारा है. सच बता भी दिया और छुपा भी लिया. वेब सीरीज रंगबाज इसी तरह से सामने आती रही है. ओटीटी जी5 पर आज रिलीज हुआ तीसरा सीजन भी बिहार की राजनीति का एक ऐसा ही अध्याय सामने आता है. जिसमें राज्य की राजनीति और एक नेता की कहानी सामने आती है. जो बताती है कि एक राजनीतिक दल से जुड़ा बाहुबली सांसद कैसे एक छोटे इलाके से निकल कर, संसद भवन तक पहुंचता है. लेकिन कहानी में अचानक ट्विस्ट आता है. बात रीयल के काल्पनिक हो जाती है. अगर आप राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं और राजनीतिक संकेतों को समझते हैं तो यह सीरीज आपके लिए है. अगर ऐसा नहीं है, तब भी आप अपराध और राजनीति के गठजोड़ की कहानी के रूप में इसे देख सकते हैं. यह सीरीज बोर नहीं करेगी.


थोड़ा फ्लैशबैक, थोड़ा प्रेजेंट
रंगबाज: डर की राजनीति बिहार के सांसद शाह हारुन अली बेग (विनीत कुमार सिंह) की कहानी है. यूं तो उस पर बीस साल में 34 केस थानों में दर्ज हुए, लेकिन किसी मामले में ऐसा गवाह नहीं है कि सिस्टम उसे अंदर कर सके. किसी दौर में जेपी आंदोलन की राजनीति से उभरे राज्य की सत्ता के दो बड़े शातिर नेताओं, लखन राय (विजय मौर्य) और मुकुल कुमार (राजेश तैलंग) में शाह हारुन को लेकर मनमुटाव है. मगर राजनीति के लिए दोनों हाथ मिला लेते हैं और एक केस में शाह हारुन की गिरफ्तारी हो जाती है. क्या है यह केस, कैसे वह शाह हारुन की जिंदगी को तबाह करता है, यह कहानी में सामने आता है. मगर इस सबके बीच कहानी कभी फ्लैशबैक में और कभी प्रजेंट में आती हुई शाह हारुन की जिंदगी की झलकियां दिखाती जाती है.

जंगल, शिकार और ताकत
शाह हारुन का बचपन, उसके नेता बनने का सफर, उसकी जिंदगी का प्यार और शादी, उसके दोस्त और दुश्मन, उसका रॉबिनहुड अंदाज और उसकी दबंगई. सब कुछ एक-एक करके सामने आता है. निर्देशक यहां जब एक चुनावी भाषण में शाह हारुन अली बेग के पीछे लगे हुए बैनर पर 'वीर शाहबु, मत घबराना. तेरे पीछे सारा जमाना' बैनर टंगा दिखाते हैं, तो वह साफ संकेत देते हैं कि किस बाहुबली राजनेता की कहानी कह रहे हैं. जेल में बंद शाह हारुन अली बेग अपनी बीवी सना अली बेग से राजनीति के बारे में कहता है, 'यह जंगल है. सब यहां अपने शिकार की तलाश में बैठे हैं. बचेगा वही जिसके पास ताकत हो.' बेग भी अपनी ताकत के दम पर दूसरों को दबाता और खुद को बचाता है. यहां तक कि कोर्ट का फैसला भी उसकी रिहाई के हक में आता है.



क्रूरता से कुछ कम
अच्छी बात यह है कि निर्माताओं ने रंगबाज: डर की राजनीति के तीसरे सीजन को जबर्दस्ती नहीं खींचा. पूरी कहानी को औसतन पैंतीस-पैंतीस मिनट की छह कड़ियों में समेट दिया गया है. ऐसा नहीं है कि इस तरह का कंटेंट पहले नहीं आया, मगर जिस बाहुबली नेता की कहानी की तरफ संकेत करते हुए रंगबाज बढ़ती है, आप उसे देखना-समझना चाहते हैं तो यह सीरीज निराश नहीं करेगी. बेग की भूमिका में विनीत कुमार अच्छे लगे हैं. हालांकि क्रूरता उनके चेहरे पर देर तक ठहर नहीं पाती. जिस बाहुबली से यह कहानी प्रेरित है, उसकी क्रूरता बहुत मशहूर रही है. लेखकों-निर्देशकों ने सच्ची घटनाओं से यहां प्रेरणा जरूर ली है, लेकिन कुछ किरदार अपनी तरह से गढ़ कर सीरीज को सहज बनाने की कोशिश की है. सीरीज के ट्रीटमेंट में कहीं इस बात पर जोर नहीं है कि रीयल को रीयल माना जाए. कोशिश यही है कि रीयल से प्रेरित चीजें फिक्शन नजर आएं.

राजनीतिक विविशता
बेग की रिहाई पर कोर्ट के फैसले पर पुलिस प्रमुख राघव कुमार (प्रशांत नारायणन) के सवाल पर मुख्यमंत्री (राजेश तैलंग) कहता है कि कुछ 'राजनीतिक विवशताएं' होती हैं. यही विविशता इस सीरीज की भी है. बावजूद इसके यह देखने योग्य है. सभी कलाकारों ने अपनी भूमिकाएं अच्छे ढंग से निभाई हैं. अगर आप रंगबाज के पिछले दो सीजन देख चुके हैं, तो उसके फ्लेवर से परिचित होंगे और तीसरा सीजन भी आपको संतुष्ट करेगा. अगर आप ने अभी तक यह सीरीज नहीं देखी है, तो इसे देख सकते हैं.

सोर्स: ज़ी न्यूज़ 

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